प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया

कुछ अतिरिक्त पूछ-ताछ

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इक्कीसवीं सदी की अवधि अनेकानेक चुनौतियों से भरी है। नदी का बहाव और हवा का रुख बदल देना सहज नहीं होता। उस कठिनाई से भी मनुष्य ही पार पाता है; पर इतना निश्चित है कि उसकी प्रतिभा असाधारण होनी चाहिए, साधारण योग्यता के रहते तो वैसा कर गुजरना दुस्साहस ही माना जाएगा और जोखिम भरा भी। ‘अखण्ड ज्योति’ परिजनों की इतनी बड़ी भीड़ आकस्मिक रूप से ही इकट्ठी नहीं हो गई है। अमुक रुचि का पठन- पाठन करने का कौतूहल ही इन्हीं समवेत होने या एक सूत्र में बँधने का कारण नहीं है वरन् इसके पीछे कुछ रहस्यमय कारण भी काम कर रहे हैं। गोताखोर गहरे पानी में डुबकी लगाकर मोतियों का संग्रह करता है। मणि- मुक्तक पाए तो खदानों में ही जाते हैं, पर उन्हें कोई कहीं से भी झट से खुदाई कर एकत्रित नहीं कर सकता ।। दुर्लभ जड़ी- बूटियाँ बड़ी खोज के बाद, किन्हीं विशेष क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं।

निकट भविष्य में कितनों को ही कितनी ही बड़ी भूमिका निभा सकने की क्षमता से सम्पन्न बनाया जाना है। हर काम हर आदमी नहीं करता है। भारी वजन हाथी जैसे समर्थ प्राणी ही उठा सकने में सफल होते हैं। छोटे कद के प्राणी उसे उठा सकना तो दूर, दबाव की अधिकता से अपना ही कचूमर निकाल बैठेंगे। हर मनुष्य हर क्षमता से सम्पन्न नहीं है। रामायण में हनुमान की और महाभारत में अर्जुन की जो भूमिका रही, उसे उन दिनों उपस्थित जनों में से अन्य आसानी से पूरा नहीं कर सकते थे। मनुष्य की समर्थता में सन्देह नहीं; पर बिना संचित सुसंस्कारिता, प्रतिभा और तप- सम्पदा के हर कोई चाहे जो कर गुजरे, ऐसा भी नहीं है। यही कारण है कि हर प्रयोजन के लिए पात्रता तलाशी जाती है और जो काम जिसके करने योग्य है, उसी को सौंपा जाता है। सेनापति के पद पर हर किसी की नियुक्ति नहीं की जा सकती, उसकी बलिष्ठता, हिम्मत, कौशल एवं प्रतिभा आदि गुणों को भी परखा जाता है।

अगले दिनों अनेकानेक ऐसे क्षेत्र सामने खड़े होंगे, जिनमें विशेष पुरुषार्थ दिखाने की आवश्यकता पड़ेगी; उन्हें साधारण लोग न कर सकेंगे। इस साधारण और असाधारण के चयन का अभी से ध्यान रखना होगा। एकाकी बड़े निर्णय नहीं किए जा सकते हैं। प्रतिभाओं की परख प्रतिस्पर्धाओं की कसौटी पर होती रहती है और जो अनेक बार अपनी वरिष्ठता का परिचय दे चुके होते हैं, उन्हें ही दुरूह मोर्चा सम्भालने के लिए नियुक्त किया जाता है। शेष हल्के दर्जे के मोर्चे पर हल्के लोगों को लगाकर किसी प्रकार काम चलाया जाता है। अगले दिन, ऐसी ही अनेक कसौटियाँ और चुनौतियाँ साथ लेकर आ रहे हैं  इस सन्दर्भ में अखण्ड ज्योति परिजनों की जाँच- पड़ताल अभी से आरम्भ की जा रही है। यों उस परिकर को सामान्य लोगों की तुलना में असामान्य समझते हुए ही एकत्रित किया गया है। इन दिनों उथले साहित्य में, उथले स्तर के, उथली अभिरुचि के लोगों का आकर्षण है। उन्हें उत्कृष्टता का महत्त्व समझने में उत्साह ही नहीं उभरता, कहने- समझाने पर भी यह तथ्य गले नहीं उतरता। यही कारण है कि उच्चस्तरीय विवेकशीलता का प्रतिपादन करने वाला साहित्य प्राय: नहीं के बराबर ही बिकता- खरीदा जाता है। लोग उसे आग्रहपूर्वक देने पर भी मुफ्त पढ़ने तक को तैयार नहीं होते। जिसमें रुचि न हो, उसके लिए समय कौन लगाए? माथा- पच्ची कौन करे? यही कारण है कि अखण्ड ज्योति वाले विषय की अन्य पत्रिकाएँ कुछ दिन निकलने के बाद ही बन्द हो जाती हैं। जो निकलती है, उसकी सदस्य संख्या कुछ सौ तक ही सीमित रहती है, सो भी विज्ञापन छापने की नीति अपनाने के बाद ही किसी प्रकार उसकी नाव पर लगती है, पर अखण्ड ज्योति के बारे में बात ही दूसरी है। गरिष्ठ विषय का प्रतिपादन रहने पर भी उसके पाठक इतनी बड़ी संख्या में हैं कि उसकी तुलना तत्सम पत्रिकाओं में से किसी के साथ भी कदाचित ही की जा सके।

यह चमत्कार अनायास ही नहीं हुआ है। किसी आकर्षण- शक्ति ने अपने चुम्बकत्व के सहारे उन्हें ढूँढ़ा खोजा और प्रयत्नपूर्वक एकत्रित किया है। इसका कारण सामयिक घटनाक्रमों में ही नहीं खोजा जाना चाहिए। संचित सुसंस्कारिता और विलक्षणता उन्हें अपने आकर्षण केन्द्र के साथ जोड़ती रही है। सशक्त चुम्बक के इर्द- गिर्द लौह- कण आकर्षित हो, खिंचे चले आते हैं और उस स्थान पर एकत्रित- एक जुट हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ अखण्ड ज्योति पाठकों के सम्बन्ध में भी हुआ है। इस प्रसंग को लेखन, प्रकाशन, वाचन के साहित्यिक क्षेत्र भर तक सीमित नहीं करना चाहिए। यह किसी बड़े मोर्चे पर जूझने वाले बलिष्ठ योद्धाओं का परिकर है, जो अनेक परीक्षाओं में उत्तीर्ण होते- होते इस शक्तिशाली अक्षौहिणी में एकत्रित हुआ है।

इसे साहित्य की गहराई में उतरकर समझना हो, तो इसी निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ेगा कि कुछ विशेष क्षमता सम्पन्न मधुमक्खियाँ ही इस छत्ते में रानी मक्खी के अनुशासन में रहने के लिए खिंचती चली आई हैं और इस प्रकार सघनतापूर्वक गुँथ गई हैं, मानों कई जन्म- जन्मान्तरों से एक सूत्र में बँधी आ रही हों, जैसे- स्नेह में बँधे हुए आत्मीय जन होते हैं। इसका निरन्तर परीक्षण भी होता रहा है। परिजनों को उनकी शक्ति- सामर्थ्य देखते हुए समय- समय पर ऐसे आदर्शवादी काम सौंपे जाते रहे हैं, जिसमें औसत आदमी की रुचि प्राय: नहीं ही होती। उन्हें भी इतनी तत्परता और तन्मयता के साथ करते रहना इस तथ्य का परिचायक है कि यह रास्ता चलती भीड़ नहीं है, वरन् यह किसी विशेष उद्देश्य के लिए विशिष्ट परिजनों का समुच्चय है।

स्पष्ट है कि इक्कीसवीं सदी के उत्कृष्ट आदर्शवादी मोर्चे पर जुझारू स्तर पर लड़ने वाले प्रचण्ड योद्धाओं का यह परिवार है। उसकी ट्रेनिंग लम्बे समय से होती रही है। पत्रिका प्राय: ५२ साल से निकलती रही है, इनके पाठकों में अधिकांश ऐसे हैं, जो आरम्भ से लेकर अब तक मिशन के साथ घनिष्ठतापूर्वक जुड़े हुए हैं और एकरस प्रशिक्षण एकाग्रतापूर्वक प्राप्त करते रहे हैं। उत्कृष्ट आदर्शवादिता की विचारधारा जन्म- घूँटी की तरह पीते रहने के कारण उनकी नस- नस में रम गई है। यों अखण्ड ज्योति का स्थाई सदस्य होना भी इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि इक्कीसवीं सदी के साथ जुड़े हुए उज्ज्वल भविष्य के साथ उनका अपना विषय भी कहीं न कहीं घनिष्ठतापूर्वक जुड़ा हुआ है। उन्हें कुछ ऐसा करना और बनना है, जिन्हें जनसामान्य को अनुकरणीय और अभिनन्दनीय कहना पड़े।    

अस्तु, परिजनों के पतों के साथ तीन और दिव्य आधार संकलित किए जा रहे हैं- (१) जन्म तिथि, स्थान तथा समय, (२) वर्तमान समय का फोटो, (२) वर्तमान समय का फोटो, (३) हस्तरेखाओं का अंकन। यह तीन आधार किसी को भविष्य- फल बताने के लिए संग्रह नहीं किए जा रहे हैं। इनका उद्देश्य मात्र इतनी ही है कि इस आधार पर परिजनों की विशिष्टता आँकी जा सके और उन्हें जब जो करना है, उसके लिए संकेत एवं मार्गदर्शन किया जा सके। इसके साथ ही विशेष प्रयोजनों में अपना निजी विशेष योगदान देना भी है, जिससे कठिनाइयों को सरल और सुसम्भावनाओं को अधिक उत्साहपूर्वक अग्रगामी बनाया जा सकना सम्भव हो सके।

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