विभिन्न प्रकार के हवि पदार्थों के विभिन्न विधानों और विभिन्न प्रक्रियाओं के साथ हवन करने से उनके परिणाम अलग-अलग प्रकार के होते हैं। जिस प्रकार विभिन्न रोगों की अलग-अलग औषधियां, परिचर्या एवं उपचार-विधियां अलग-अलग होती हैं, उसी प्रकार अनेक प्रयोजनों के लिये यज्ञों के विनियोग भी भिन्न-भिन्न हैं। प्राचीन काल में याज्ञिक लोग उन सब विधानों की विस्तृत प्रक्रियाओं को भली प्रकार जानते थे और उनसे समुचित लाभ प्राप्त करते थे। खेद है कि आज वह वैदिक और तान्त्रिक यज्ञ विद्या लुप्तप्राय हो रही है। यज्ञों के रहस्यमय विधानों के ज्ञाता अब दिखाई नहीं पड़ते। केवल उन विधानों के संकेत मात्र ही यत्र-तत्र उपलब्ध होते हैं, जिनका निर्देश नीचे किया जा रहा है। भारतीय प्राचीन विज्ञान में रुचि रखने वालों का कर्तव्य है कि इन रहस्यमय विधानों की शोध के लिए शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक रीति से अनुसंधान करें और पूर्वजों के उस रत्न-भण्डार को जन-समाज के कल्याणार्थ सांगोपांग विधि-व्यवस्था के साथ उपस्थिति करें। नीचे कुछ विधियों के अस्त-व्यस्त संकेत उपस्थित कर रहे हैं।
घृतसक्तुमधु से किया हुआ हवन सब दुःखों को दूर करता है और व्याधियों का नाश करता है। तिलों का हवन वैभव को देता है। एक हजार आहुति देन से अत्यन्त धन-वैभव बढ़ता है। सौ आहुति से व्याधि का नाश होता है।
हस्रेण ज्वरो याति क्षीरेण जुहोतियम् ।
ऋिकालं मासमेकं तु सहस्रं जुहुयात्पयः ।।
मासेन सिद्धयते तस्य महा सौभाग्यमुत्तमम् ।
सिद्धते चाब्द होमेन क्षौद्राज्यदधि संयुतम् ।।
यवक्षीराज्य होमेन जाति तण्डुलकेन वा ।
प्रीयते भगवानीशो ह्यघोरः परमेश्वरः ।।
दाघ्ना प्रष्टिर्नृपाणां च क्षीर होमेन शान्तिकम् ।
षण्मासन्तु घृतं हुत्वा सर्व व्याधि विनाशनम् ।।
राजयक्ष्मा तिलैर्होमान्नध्यते वत्सरेण तु ।
यव होमन यायुष्य घृतेन च जयस्तदा ।।
सर्व कुष्ठ क्षयार्थं च मधुनाक्तैश्च तण्डुलैः ।
जुहुयादयुतं नित्यं षण्मासान्नियतः सदा ।।
—लिंग पु. अ. 49 श्लोक 8—13
अर्थ—एक हजार खीर की आहुतियों से ज्वर नष्ट हो जाता है। एक महीने तक तीनों कालों में खीर की सहस्र आहुतियों से हवन करना चाहिए। एक महीने में सिद्धि हो जाती है और उत्तम सौभाग्य की वृद्धि होती है।
क्षौद्र, घी, दही का हवन एक वर्ष करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
यव, खीर, घी, अथवा चावलों के हवन से भगवान् शंकर प्रसन्न होते हैं।
दही का हवन करने से राजाओं की पुष्टि होती है।
खीर का हवन शान्ति का देने वाला होता है। छह महीने तक घी का हवन करने से सब प्रकार की व्याधियों का नाश हो जाता है।
तिलों का एक वर्ष तक हवन करने से राजयक्ष्मा का नाश हो जाता है। जौ के हवन से आयु की वृद्धि होती है और घी के हवन करने से जय की प्राप्ति होती है।
सब प्रकार के काष्ठों को दूर करने के लिए शहद से मिश्रित चावलों का हवन करना चाहिए। नियमपूर्वक छह महीने तक हजार नित्य प्रति हवन करें।
ऋषिगणों के ब्रह्म, दैव एवं अग्निहोत्र के सम्बन्ध में पूछने पर सूतजी कहते हैं—
सोमवारे च लक्ष्म्यादीन्सम्पदथ यजेद्बुधः ।
आज्यान्नेन तथा विप्रां सपत्नी कांश्च भोजयेत् ।।29।।
काल्यादीन्भौमवारेतु यजेत् रोग प्रशान्तये ।
माष मुद्गाढ़कान्नेन ब्राह्मणांञ्चैव भोजयेत् ।।30।।
सौम्यवारे तथा विष्णुं दध्यन्ननेन यजेद्बुधः ।
पुत्र मित्र कलत्रादि पुष्टिर्भवति सर्वदा ।।31।।
आयुष्यकामो गुरुवारो देवानां पुष्टिसिद्धये ।
उपवीतेन वस्त्रेण क्षीराज्येन यजेद् बुधः ।।32।।
भोगार्थं मृगुवारेतु यजेद्देवान्समाहितः ।
षड्रसोपेत्तमन्नं च दद्यात् ब्राह्मण तृप्तये ।।33।।
स्त्रीणां च तृप्तये तद्वद्देयं वस्त्रादिकं शुभम् ।
अपमृत्यु हरे मन्दे रुद्रादीश्च यजेद् बुधः ।।34।।
तिल होमेनदानेन तिलान्नेन च भोजयेत् ।
इत्थंयजच्च विवुधानारोग्यादि फलं लभेत् ।।35।।
अर्थ—जो लक्ष्मी और सम्पत्ति की कामना करते हैं, उन्हें सोमवार के दिन घृतान्न का हवन करके विप्र पत्नी को खिलाना चाहिए। ।।29।। रोग की शान्ति के लिए तथा कालादि दोष निग्रह के लिए चार सेर माष (उड़द) एवं मूंग से हवन करना चाहिए तथा ब्राह्मण को खिलाना चाहिए ।।30।। सोम, बुध, गुरु एवं शुक्र को दधि अन्न से विष्णु भगवान् को आहुति देने से पुत्र, मित्र, स्त्री आदि की परिपुष्टि होती है ।।31।। आयुवृद्धि की कामना वाले इसकी पुष्टि और सिद्धि के लिए गुरुवार को उपवीत, वस्त्र एवं दूध तथा घृत के द्वारा देवों को आहुति प्रदान करते हैं ।।32।। भोग की प्रवृद्धि के लिए शुक्रवार को शान्त चित्त से देवों के लिए आहुति देनी चाहिए तथा ब्राह्मणों को षट्रस पूरित भोजन कराके तृप्त करना चाहिए ।।33।। अपमृत्यु से बचने के लिए स्त्रियों को वस्त्रादि से प्रसन्न करके रुद्रयज्ञ का अनुष्ठान करना चाहिए ।।34।।
आयषे साज्य हविषा केवले नाथ सर्पिषा ।
इर्वात्रिकैस्तिलैर्मन्त्री जुहुयात् सहस्नकम् ।।
अर्थ—दीर्घ जीवन की इच्छा करने वाला मनुष्य घृत अथवा घी युक्त खीर, इर्वा एवं तिलों से तीन हजार आहुतियां दे।
शतशतं च सप्ताह्यपमृत्युं व्यपोहति ।
प्रग्गोध समिधो हुत्वा पायसं होमयेत्ततः ।।
अर्थ—वट वृक्ष की समिधाओं से प्रतिदिन सौ आहुतियां देने से मृत्यु का भय टल जाता है।
रक्तानां तण्डुलानां च घृताक्तानां हुताशने ।
हुत्वा बलमवाप्नोति शत्रुभि र्नासि जीयते ।।
अर्थ—लाल चावलों को घी में मिलाकर अग्नि में हवन करने से बल की प्राप्ति होती है और शत्रुओं का क्षय होता है।
हुत्वा करवीराणि रक्तानि ज्वाला मे ज्वरम् ।।
अर्थ—लाल कनेर के फूलों से हवन करने पर ज्वर चला जाता है।
आमृस्य जुहुयात्पत्रैः पयोक्तैः ज्वर शान्तये ।।
अर्थ—ज्वर को शान्त करने के लिए दूध में भिगोकर आम के पत्तों का हवन करें।
वचभिः पयसिक्ताभि क्षयं हुत्वा विनाशयेत् ।
मधु त्रितय होमेन राजयक्ष्मा विनश्यति ।।
अर्थ—दूध में वच को अभिषिक्त करके हवन करने से क्षय रोग दूर हो जाता है। दूध, दही, घी, इन तीनों को होमने से भी राजयक्ष्मा नष्ट हो जाती है।
लता वर्वसु विवछद्य सोमत्य जुहुयातदिमा ।
सोपे सूर्पण संयुक्ते प्रयोक्ता क्षय शान्तये ।।
अर्थ—अमावस्या के दिन सांपलता की डाली से हवन करने से क्षय रोग शान्त हो जाता है।
कुसुमैः शंख वृक्षस्य हुत्वा कुष्टं विनाशयेत् ।
अपस्मार विना शस्तादपमार्गेस्य तण्डुलैः ।।
अर्थ— शंख वृक्ष के पुष्पों से होम करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग में आराम हो जाता है। अपमार्ग के बीजों से हवन करने से अपस्मार (मृगी( हिस्टीरिया) रोग विनष्ट हो जाता है।
चन्दन द्वय संयुक्तं कर्पूर तण्डुलं पवम् ।
लवंग सुफलं चाज्यं सिता चाम्रस्य दारुकै ।।
अपन्यून विधिः प्रोक्तो गायत्र्याः प्रीतिकारक ।
अर्थ—दोनों चन्दन (रक्त और श्वेत) कर्पूर, तण्डुल, पव, लवंग, नारकेल, घी, मिसरी तथा आम्र की समिधा, इसका हवन गायत्री तत्त्व के प्रति प्रीति कराने वाला है।
क्षींरोदन तिलान्दूर्बा क्षीरद्रुम सापेद्वरान् ।
पृथक सहस्र त्रितपं जुहूयान मन्त्र सिद्धके ।।
अर्थ—प्रणव युक्त 2400000 चौबीस लाख गायत्री जप करने के बाद उसकी सुसिद्धि के लिये दूध, भात तिल, दूर्वा तथा बरगद, पीपल आदि दूध वाले वृक्षों की समिधाओं
से तीन हजार आहुति प्रदान करे।
सूर्य गायत्री मन्त्र से जिन वस्तुओं का हवन करने से जो भला होता है, उसका वर्णन यों मिलता है।
सप्ररोहाभिराद्राभिर्हुत्वा आयु समाप्नुयात् ।
सामेद्भि क्षीर वृक्षस्यहुत्वा पुत्रमवाप्नुयात् ।।
अर्थ—पलाश की समिधाओं से हवन करने पर आयु की वृद्धि होती है। क्षीर वृक्षों की समिधा से हवन करने से पुत्र की प्राप्ति होती है।
ब्रीहीणां च शतंहुत्वा दीर्घमायुर वाप्नुयात् ।
अर्थ—यवों की सौ आहुतियां प्रतिदिन देने से दीर्घ-जीवन मिलता है।
सुवर्ण कमलं हुत्वा शतमायुरवाप्नुयात् ।
इर्वाभिपयस्य वापि मधुना सर्पिषापिवा ।।
शतं शतं सप्ताहमपमृत्यु व्यपोहति ।
शमी सपिद्भिरन्तेन पयसा वा च सर्पिषा ।।
अर्थ—स्वर्णिम कमल पुष्पों से हवन करने पर मनुष्य शतजीवी होता है। इर्वा, दूध, मधु की सौ आहुतियां देते रहने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। शमी की समिधाओं से तथा दूध और घृत से हवन करने पर भी अपमृत्यु का भय जाता रहता है।
कदम्ब कलिका होमाद्यक्षिणी सिध्यतिध्रुवम् ।
बन्धूक किंशुकादीनि वश्याकर्षाय होमयेत् ।।
विल्वं राज्याय लक्ष्म्यर्थं पाटलञ्चम्पकानपि ।
पद्मानि चक्रवर्तित्वे भक्ष्य भोज्यानि सम्पदे ।।
दूर्वा व्याधिविनाशायं सर्वसत्व वशी कृतेः ।
प्रियंगं पाटली पुष्पं चूतपत्रं ज्वरान्तकम् ।।
मृत्युञ्जयो मृत्यु जितस्याद् वृद्धि स्यात्तिलहो पतः ।
रुद्रशान्तिः सर्वशान्त्या अथ प्रस्तुत मुच्यते ।।
—आग्ने. पु. अ. 81 श्लोक 49।52
अर्थ—कदम्ब की कलियों के हवन करने से निश्चय पूर्वक यक्षिणी सिद्ध होती है। किसी को वश में करने के लिए वन्धूक किंशुकादि का हवन करना चाहिए।
राज्य-प्राप्ति के लिए विल्व-फलों का हवन करना चाहिए।
लक्ष्मी-प्राप्ति के लिये पाटल और चम्पक का हवन करना चाहिए।
भक्ष्यभोज्य, सम्पत्ति, और चक्रवर्ती राज्य के लिए कमलों का हवन करना चाहिए।
व्याधि नाश के लिये दूब का, सब जीवों को वश में करने के लिये पाटल पुष्पों का, ज्वर दूर करने के लिए आम के पत्तों का, अकाल मृत्यु से बचने के लिए मृत्युञ्जय मन्त्र से हवन, वृद्धि के लिए तिलों का हवन करना चाहिए। रुद्र की शान्ति करने से सबकी शान्ति हो जाती है।
सर्वदाहोम जप्याद्यैः पाठाद्यैश्च रणेजयः ।
अष्टा विंशभुजाध्येया असिखेटकवत्करौ ।।
—आग्ने. पु. अध्याय 134
अर्थ—हमेशा हवन, जप और पाठ आदि से युद्ध में जय होती है। यक्ष करते समय, हाथों में खंग और खेटक धारण किये अट्ठाइस भुजाओं वाली दुर्गा देवी का ध्यान करना चाहिए।
श्रीगेहे विष्णु गेहे वा श्रियं पूज्यं धनं लभेत् ।
आज्याक्तै स्तण्डुलै लक्षि जुहुयात्खदिरानले ।।
राजावश्यो भवेद्वृद्धिः श्रीञ्चस्यादुत्तरोत्तरम् ।
सर्षपाभ्योऽभिषेकेण नश्यते सकला ग्रहाः ।।
—आ. पु. अ. 307 श्लोक 3,4
अर्थ—लक्ष्मी के मन्दिर में अथवा विष्णु के मन्दिर में लक्ष्मीजी की यज्ञ से पूजा करके धन को प्राप्त करे। घी से मिले हुए चावलों से खैर की अग्नि में एक लाख हवन करने से राजा वश में होता है और उत्तरोत्तर लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
सरसों और पानी के अभिषेक करने से सब ग्रह नष्ट हो जाते हैं।
संसाध्येशानमन्त्रेण तिलहोमो वशीकरः ।
जय पद्मैसतु दूर्वाभिः शान्तिकामः पलाशजैः ।।
पुष्टिः स्यात्काक पक्षेण मृतिर्द्वेषादिकं भवेत् ।
ग्रहक्षुद्रभयापत्तिं जवमेव मनुर्भवेत् ।।
—आग्ने. पु. अ. 307 श्लोक 20, 21
अर्थ—सिद्ध किये हुए ईशान मन्त्र से तिलों का हवन करने से सब वश में होते हैं। कमलों के हवन से जय की प्राप्ति होती है। शान्ति की कामना वाले दूब का हवन करें। पलाश के फूलों का हवन करने से पुष्टि होती है। काक पक्ष से सब दोषादिकों का अन्त होता है। क्षुद्रग्रह, भय, आपत्ति, मानों सब नष्ट हो जाती हैं।
पुष्पं क्षिपाययेच्छिश्य मानयेदग्नि कुण्डकम् ।
यवैद्धान्यस्तिलैः राज्यौ मूलविद्या शतं हुनेत् ।।
स्थावरत्वं पुरा होमं सरीसृपमतः परम ।
पक्षिमृग पशुत्वं च मानुषं ब्राह्ममेव च ।।
विष्णुत्वञ्चेव रुद्रत्वमन्ते पूर्णाहुतिर्भवेत् ।
एकयाचैवह्याहुत्या शिष्यस्याद्दीक्षितो भवेत् ।।
मोक्षं यतिपरं स्थानं यद्गत्वा न निवर्त्तते ।
यथा जले जलं क्षिप्तं जलदेही शिवस्तथा ।।
अर्थ—पुष्पों को क्षेपण करावे, शिष्य से अग्नि मंगावे, यव, धान्य, तिल, घी इत्यादि के द्वारा मूल मंत्र से सौ आहुति दें।
पहले स्थावरों के लिए हवन करे, सरीसृपों के लिये, फिर पक्षी, मृग, पशुओं के लिये, मनुष्यों के लिये और ब्रह्म के लिए हवन करे, विष्णु के लिए, रुद्र के लिए हवन करे अन्त में पूर्णाहुति दें।
एक ही आहुति से शिष्य दीक्षिति हो जाता है। इस प्रकार वह स्थान जो मोक्ष है, उसको प्राप्त होता है, जहां जाकर लौटता नहीं। जिस प्रकार जल में जल को डालने से अलग नहीं होता, उसी प्रकार यह देही जल है और शिव भी जल रूप हैं। देही रूपी जल शिव रूपी जल में मिलकर पुनः नहीं लौटता।
अग्नि गायत्री के साथ विभिन्न हव्य पदार्थों के साथ होम करने से, उनके जो परिणाम होते, उनका परिणाम यह है—
1— पलाशीभिरवाप्नोति समदर्भिब्रह्म वर्चसम ।
पलाश कुसुमैर्हुत्वा सर्ममिष्टेमवाप्नुयात् ।।
पलाश की समिधाओं से हवन करने पर ब्रह्मतेज की अभिवृद्धि होती है और पलाश के कुसुमों से हवन करने पर सभी इष्टों की सिद्धि होती है।
2— यवानां लक्ष होमेन घृतात्ताये हुताशने ।
सर्वकाम समृद्धात्मा परां सिद्धिमवाप्नुयात् ।।
यवों में घी मिलाकर एक लाख बार अग्नि में आहुति देने से सब कर्मों की सिद्धि होती है तथा, परमसिद्धि प्राप्त होती हैं।
3— ब्रह्मवर्चस कामास्तु पयसा जुहुयात्तथा ।
घृत प्लुतैस्तिलैर्ब्रीहं जुहुयात्सु समाहित ।।
ब्रह्मतेज की कामना करने वाला व्यक्ति सावधानी के साथ, घृतयुक्त तिलों से और घी से हवन करे।
4— गायत्र्युत होमञ्च सर्वपापैः प्रमुच्यते ।
पापात्मा लक्ष होमेन पातेकभ्यः प्रमुच्यते ।।
एक लाख आहुतियों से गायत्री द्वारा हवन करने से पापी मनुष्य भी बड़े से बड़े पापों से छूट जाता है।
यज्ञ को भारतीय संस्कृति का पिता कहा गया है। पिता पालक पोषक, संरक्षक और सब प्रकार की प्रगति में सहायक होता है। कई बार सांसारिक पिता, अज्ञान वश, प्रमाद वश बच्चों को अनुचित दिशाएं भी दें बैठते हैं किन्तु यज्ञ प्रक्रिया मानवीय जीवन की सर्वांगीण प्रगति और सुख शान्ति का आधार सिद्ध हुआ है उसकी इसी महत्ता ने इस देश को सर्व प्रभुता सम्पन्न बनाया। ब्रह्मवर्चस में प्रयोगशाला की स्थापना आज यज्ञ पिता के प्रति भ्रांत धारणाओं को निर्मूल करना मात्र नहीं उसे मानवी सेवा की उच्च कक्षा में प्रतिष्ठ करना भी है सो एक दिन होना भी यह सुनिश्चित है।