गायत्री उपासना के साथ-साथ यज्ञ की अनिवार्यता शास्त्रों में पग-पगपर प्रतिपादित की गई है । यह तथ्य अकारण नहीं है अभी तक इस बात को मात्र श्रद्धा का विषय माना जाता था, किन्तु जैसे-जैसे विज्ञानकी प्रगति हुई यह पता चलने लगा है कि यज्ञ एक प्रयोगजन्य विज्ञान है, उसे अन्य भौतिक प्रयोगों के समान ही विज्ञान की प्रयोगशाला में भी सिद्ध किया जा सकता है ।
विज्ञान अब इस निष्कर्ष पर पहुँचता जा रहा है कि हानिकारक या लाभदायक पदार्थ उदर में पहुँचकर उतनी हानि नहीं पहुँचाते जितनी कि उनके द्वारा उत्पन्न हुआ वायु विक्षोभ प्रभावित करता है । किसी पदार्थको उदरस्थ करने पर होने वाली लाभ-हानि उतनी अधिक प्रभावशाली नहीं होती जितनी कि उसके विद्युत् आवेग-सवेग । कोई पदार्थ सामान्य स्थिति में जहाँ रहता है वहाँ के विद्युत कम्पनों से कुछ न कुछ प्रभाव छोड़ता है और समीपवर्ती वातावरण में अपने स्तर का संवेग छोड़ता रहता है, पर यदि अग्नि संस्कार के साथ उसे जोड़ दिया जाय तो उसकी प्रभाव शक्ति असंख्य गुनी बढ़ जाती है ।