इनसे खर्च की अपेक्षा निपुणता और कार्य कुशलता कम प्राप्त होती है । कभी-कभी कार्य कुशलता का ह्रास तक हो जाता है । मनुष्य आलसी और विलासी बन जाता है काम नहीं करना चाहता । रुपया बहुत खर्च होता है, लाभ न्यून मिलता है ।
इस श्रेणी में ये वस्तुएँ हैं-आलीशान कोठियाँ, रेशम या जरी के बढि़या कीमती भड़कीले वस्त्र, मिष्ठान्न, मेवे, चाट-पकौड़ी, शराब, चाय तरह-तरह के अचार-मुरब्बे, माँस भक्षण, फैशनेबिल चीजें, मोटर, तम्बाकू, पान, गहने, जन्मोत्सव, और विवाह में अनाप-शनाप व्यय, रोज दिन में दो बार बदले जाने वाले कपड़े, साड़ियाँ, अत्यधिक सजावट, नौकर-चाकर, मनोरंजन के कीमती सामान, घोड़ा, गाड़ी, बढ़िया फाउन्टेन पेन, सोने की घड़ियाँ, होटल रेस्टरां में खाना, सिनेमा, सिगरेट, पान, वेश्यागमन, नाच-रंग, व्यभिचार, श्रृंगारिक पुस्तकें, कीमती सिनेमा की पत्र-पत्रिकायें, तसवीरें अपनी हैसियत से अधिक दान, हवाखोरी, सफर, यात्रायें, बढ़िया रेडियो, भड़कीली पोशाक, क्रीम, पाउडर, इत्र आदि ।
उपरोक्त वस्तुएँ जीवन रक्षा या कार्य कुशलता के लिए आवश्यक नहीं हैं किन्तु रुपये की अधिकता से आदत पड़ जाने से आदमी अनाप-शनाप व्यय करता है और इनकी भी जरूरत अनुभव करने लगता है । इन्हीं वस्तुओं पर सब से अधिक टैक्स लगते हैं कीमत बढ़ती है । ये कृत्रिम आवश्यकताओं से पनपते हैं । इनसे सावधान रहिए ।
हम देखते हैं कि लोग विवाह, शादी, त्यौहार, उत्सव, प्रीतिभोज आदि के अवसर पर दूसरे लोगों के सामने अपनी हैसियत प्रकट करने के लिए अन्धाधुन्ध व्यय करते हैं । भूखों मरने वाले लोग भी कर्ज लेकर अपना प्रदर्शन इस धूमधाम से करते हैं मानो कोई बड़े भारी अमीर हों । इस धूमधाम में उन्हें अपनी नाक उठती हुई और न करने में कटती हुई दिखाई पड़ती है ।
भारत में गरीबी है, पर गरीबी से कहीं अधिक मूढ़ता, अन्ध-विश्वास, रूढ़िवादिता, मिथ्या प्रदर्शन, घमण्ड, धर्म का तोड़-मरोड़ दिखावा और अशिक्षा है । हमारे देशवासियों की औसत आय तीन-चार आने प्रतिदिन से अधिक नहीं । इसी में हमें भोजन, वस्त्र, मकान तथा विवाह-शादियों के लिए बचत करनी होती है । पैसे की कमी के कारण हमारे देशवासी मुश्किल से दूध, घी, फल इत्यादि खा सकते हैं । अधिक संख्या में तो वे स्वच्छ मकानों में भी नहीं रह पाते, अच्छे वस्त्र प्राप्त नहीं कर पाते, बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दिला पाते, बीमारी में उच्च प्रकार की चिकित्सा नहीं करा सकते, यात्रा, अध्ययन, मनोरंजन के साधनों से वंचित रह जाते हैं । फिर भी शोक का विषय है कि वे विवाह के अवसर पर सब कुछ भूल जाते हैं, मृतक भोज कर्ज लेकर करते हैं, मुकदमेबाजी में हजारों रुपया फूँक देते हैं । इस उपक्रम के लिए उन्हें वर्षों पेट काटकर एक-एक कौड़ी जोड़नी पड़ती है, कर्ज लेना पड़ता है, या और कोई अनीति मूलक पेशा करना पड़ता है ।