धन का सदुपयोग

धन का अपव्यय बन्द कीजिए

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
ईमानदारी और सत्य व्यवहार के उपदेश सुनते हुए भी बहु-संख्यक व्यक्ति इनका पालन नहीं कर सकते इसका मुख्य कारण है हमारी अपव्यय की आदत । जिन लोगों को दूसरों की देखा-देखी अपनी सामर्थ्य से अधिक शान-शौकत दिखलाने तरह-तरह के बेकार खर्च करने की आदत पड़ जाती है वे इच्छा करने पर भी ईमानदारी पर स्थिर नहीं रह सकते । ऐसे लोगों की आर्थिक अवस्था किन कारणों से नहीं सुधर पाती उसका एक चित्र यहाँ दिया जाता है ।

आप १०० रुपये मासिक कमाते हैं, पास-पड़ोस वाले आपको आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न समझते हैं आपके हाथ में रुपये आते-जाते हैं किन्तु आपको यह देखकर अत्यन्त दुःख होता है कि आपका वेतन महीने की बीस तारीख को ही समाप्त हो जाता है । अन्तिम दस दिन खींचतान, कर्ज, तंगी और कठिनाई से कटते हैं । आप बाजार से उधार लाते हैं जीवन रक्षा के पदार्थ भी आप नहीं खरीद पाते । आपके नौकर बच्चे पत्नी आपसे पैसे माँगते हैं, बाजार वाले तगादे भेजते हैं आप किसी प्रकार अपना मुँह छिपाये टालमटोल करते रहते हैं और बड़ी उत्सुकता से महीने की पहली तारीख की प्रतीक्षा करते हैं । वर्ष के बारहों महीने यह क्रम चलता है । कुछ बचत नहीं होती, वृद्धावस्था में दूसरों के आश्रित रहते हैं बच्चों के विवाह तक नहीं कर पाते, पुत्रों को उच्च शिक्षा या अपनी महत्त्वाकांक्षाएँ पूर्ण नहीं कर पाते, लेकिन क्यों ?

कभी आपने सोचा है कि आपका वेतन क्यों २० तारीख को समाप्त हो जाता है ? आप असंतुष्ट झँझलाये से क्यों रहते हैं ? अच्छा अपने घर के समीप वाली जो पान-सिगरेट की दुकान है, उसका बिल लीजिए । महीने में कितने रुपये आप पान-सिगरेट में व्यय करते हैं ? प्रतिदिन कम से कम ५-६ सिगरेट और दो- चार पान आप प्रयोग में लेते हैं । बढ़िया सिगरेट या बीडी़-माचिस आपकी जेब में पड़ी रहती है । यदि चार-पाँच आने रोज भी आपने इसमें व्यय किये तो महीने के आठ-दस रुपये सिगरेट में फुँक गये । सिगरेट वाले का यह तो न्यूनतम व्यय है । बहुत से १५ से २० रुपये प्रतिमास तक खर्च कर डालते हैं ।

चाट-पकौड़ी, चाय वाला, काफी हाउस, रेस्तरां, चुसकी, शरबत, सोडा़, आइसक्रीम, लाइट रिफ्रेशमेंट वालों से पूछिए कि वे आपकी कमाई का कितना हिस्सा ले लेते हैं? यदि अकेले गये तो ५० पैसे या ७५ पैसे का अन्यथा एक रुपया-सवा रुपया का बिल मित्रों के साथ जाने पर बन जाता है । एक प्याली चाय (या प्रत्यक्ष विष) खरीद कर आप अपने पसीने की कमाई व्यर्थ गँवाते हैं । चुस्की, शरबत, सोडा़ क्षण भर की चटोरी आदतों की तृप्ति करती हैं । इच्छा फिर भी अतृप्त रहती है । मिठाई से न ताकत आती है, न कोई स्थाई लाभ होता है, उलटे पेट में भारी विकार उत्पन्न होते हैं ।

सिनेमा हाउस का टिकिट बेचने वाला और गेट कीपर आपको पहिचानता है । आपको देखकर बढ़ मुस्करा उठता है । हँसकर दो बाँते करता है । फिल्म अभिनेत्रियों की तारीफ के पुल बाँध देता है । आप यह फिल्म देखते हैं, साथ हो दूसरी का नमूना देखकर दूसरी को देखने का बीज मन में ले आते हैं । एक के पश्चात् दूसरी फिर तीसरी फिल्म को देखने की धुन सवार रहती है और रुपया व्यय कर, आप सिनेमा से लाते हैं वासनाओं का ताण्डव, कुत्सित कल्पना के वासनामय चित्र, गन्दे गीत, रोमाण्टिक भावनाएँ, शरारत से भरी आदतें । साथ ही अपनी नेत्र ज्योति भी बरबाद करते हैं । गुप्त रूप से वासना पूर्ति के नाना उपाय सोचते, दिमागी ऐय्याशी करते और रोग ग्रस्त होकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं ।

बीमारियों में आप मास में ८- १० रुपये व्यय करते हैं । किसी को बुखार है, तो किसी को खाँसी, जुकाम, सरदर्द या टॉन्सिल । पत्नी प्रदर या मासिक धर्म के रोगों से दुखी है । आप स्वयं कष्ट या अन्य किसी गुप्त रोग के शिकार हैं, तब तो कहने की बात ही क्या है ? कभी इन्जेक्शन, तो कभी किसी को ताकत की दवाई चलती ही रहती है । कुछ बीमारियाँ ऐसी भी हैं जिन्हें आपने स्वयं पाल-पोस कर बड़ा किया है । आप दाँत साफ नहीं करते, फिर आये दिन नये दाँत लगवाते या उन्हीं का इलाज कराया करते हैं । दंत डाक्टर आपकी लापरवाही और आलस्य पर पलते हैं । क्या-आपने कभी सोचा है कि आपके शहर में दवाइयों की इतनी दुकानें क्यों बढ़ती चली जा रही हैं ? हम ही अपना पैसा रोगों के शिकार होकर इन्हें देते हैं और पालते हैं ।

विवाह, झूठा दिखावा, धनी पड़ोसी की प्रतियोगिता ? सैर-सपाटा, यात्राएँ, उत्सवों, दान इत्यादि में आप प्राय: इतना व्यय कर डालते हैं कि साड़ी या किसी अन्य कीमती सामान को जिद की, तो आप अपनी जेब देखने के स्थान पर केवल उसे प्रसन्न करने मात्र के लिए तुरन्त कुछ भी शौक की चीज खरीद लेते हैं ।

आप दिन में एक रुपया कमाते हैं, पर भोजन, वस्त्र या मकान अच्छे से अच्छा रखना चाहते हैं । फैशन में भी अन्तर नहीं करते, आराम और विलासिता की वस्तुएँ-क्रीम, पाउडर, शेविंग, सिनेमा, रेशमी कपड़ा, सूट-बूट, सुगन्धित तेल, सिगरेट भी कम करना नहीं चाहते । फिर बताइये कर्जदार क्यों कर न बनें ?

आपका धोबी महीने में १० रुपये आपसे कमा लेता है । अप दो दिन तक एक धुली हुई कमीज नहीं पहनते । पैण्ट की क्रीज, रंग, एक दिन में खराब कर डालते हैं, हर सप्ताह हेयर कटिंग के लिए जाते हैं, प्रतिदिन जूते पर पालिश करते हैं, बिजली के पंखे और रेडियो के बिना आपका काम नहीं चलता । पैसे पास नहीं, फिर भी अप अख़बार खरीदते हैं, मित्रों को घर पर बुलाकर इष्ट न कुछ चटाया करते हैं । रिक्शा, इक्के, ट्राम, साइकिल की सवारी में आपके काफी रुपये नष्ट होते हैं ।

ज्यों-ज्यों आपकी आवश्यकता बढ़ेगी त्यों-त्यों आपको खर्च की तंगी का अनुभव होगा । आजकल कृत्रिम आवश्यकताएँ वृद्धि पर हैं । ऐश, आराम, दिखावट, मिथ्या गर्व प्रदर्शन, विलासिता, शौक, मेले, तमाशे, फैशन, मादक द्रव्यों पर फिजूलखर्ची खूब की जा रही है । ये सब क्षणिक आनन्द की वस्तुएँ हैं । कृत्रिम आवश्यकताएँ हमें गुलाम बनाती है । इन्हीं के कारण हम मँहगाई और तंगी अनुभव करते हैं । चूँकि कृत्रिम आवश्यकताओं में हम अधिकांश आमदनी व्यय कर देते हैं, हमें जीवन रक्षक और आवश्यक पदार्थ खरीदते हुए मँहगाई प्रतीत होती है । साधारण, सरल और स्वस्थ जीवन के लिए निपुणतादायक पदार्थ अपेक्षाकृत अब भी सस्ते हैं । जीवन रक्षा के पदार्थ-अन्न, वस्त्र, मकान इत्यादि साधारण दर्जे के भी हो सकते हैं । मजे में आप निर्वाह कर सकते हैं । अत: जैसे-जैसे जीवन रक्षक पदार्थों का मूल्य बढ़ता जावे वैसे-वैसे आपको विलासिता और ऐशोआराम की वस्तुएँ त्यागते रहना चाहिए । आप केवल आवश्यक पदार्थों पर दृष्टि रखिए वे चाहे जिस मूल्य पर मिलें खरीदिये किन्तु विलासिता और फिजूलखर्ची से बचिए । बनावटी, अस्वाभाविक रूप से दूसरों को प्रम में डालने के लिए या आकर्षण में फँसाने के लिए जो मायाचार चल रहा है, उसे त्याग दीजिए । भड़कीली पोशाक के दंभ से मुक्ति पाकर आप सज्जन कहलायेंगे ।

आप पूछेंगे कि आवश्यकताओं, आराम की वस्तुओं और विलासिता की चीजों में क्या अन्तर है ? मनुष्य के लिए सबसे मूल्यवान उसका शरीर है । शरीर में उसका सम्पूर्ण कुटुम्ब भी सम्मिलित है । वह अपना और अपने परिवार का शरीर ( स्वास्थ्य और अधिकतम सुख) बनाये रखने की फिक्र में है । उपभोग के आवश्यक पदार्थ वे हैं जो शरीर और स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं । ये ही मनुष्य के लिए महत्त्व के हैं ।

जीवन रक्षक पदार्थों के अन्तर्गत तीन चीजें प्रमुख हैं । (१) भोजन (२) वस्त्र (३) मकान । भोजन मिले, शरीर ढकने के लिए वस्त्र ही और सर्दी-गर्मी से रक्षा के निमित्त मकान हो । यह वस्तुएँ ठीक हैं, तो जीवन रक्षा और निर्वाह चलता रहता है । जीवन की रक्षा के लिए ये वस्तुएँ अनिवार्य हैं ।

यदि इन्हीं पदार्थों की किस्म अच्छी है तो शरीर रक्षा के साथ-साथ निपुणता भी प्राप्त होगी । कार्य शक्ति, स्फूर्ति बल और उत्साह में वृद्धि होगी, शरीर निरोग रहेगा और मनुष्य दीर्घ जीवी रहेगा । ये निपुणतादायक पदार्थ क्या हैं ? अच्छा पौष्टिक भोजन, जिसमें अन्न, फल, दूध, तरकारियाँ, घृत इत्यादि प्रचुर मात्रा में हों, टिकाऊ वस्त्र, जो सदी से रक्षा कर सकें, हवादार स्वस्थ वातावरण में खड़ा हुआ मकान जो शरीर को धूप, हवा, जल इत्यादि प्रदान कर सके ।

यदि आपकी आमदनी इतनी है कि निपुणतादायक चीज (अच्छा अन्न, घी, दूध, फल, हवादार मकान, स्वच्छ वस्त्र, कुछ मनोरंजन) खरीद सकते हैं, तो आराम की चीजों को अवश्य लीजिए । इनसे आपकी कार्य कुशलता तो बढ़ेगी, पर उस अनुपास में नहीं जिस अनुपात में आप खर्च करते हैं ।
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118