लाहौर के प्रसिद्ध सेठ दुनीचन्द को अपनी संपत्ति के ऊपर बहुत नाज था। उनने अपने मकान के ऊपर अनगिनत झण्डे लगा रखे थे जो इस बात के प्रतीक थे कि जितने झण्डे हैं उतने करोड़ रुपया सेठ के खजाने में जमा हैं।
एक दिन गुरु नानक वहाँ पहुँचे उनके धन का इस प्रकार का प्रदर्शन देख, एक सुई देते हुए कहा इसे अभी सुरक्षित रख लें और स्वर्ग में मुझे वापिस कर दें। गुरु की बात सुनकर दुनीचन्द को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने मुस्कुराते हुए पूछा- ‘‘महोदय मैं अपने मरने के बाद यह सुई आपको कैसे लौटा पाऊँगा मरने के बाद तो किसी वस्तु को स्वर्ग नहीं ले जाया जा सकता।”
इस पर गुरु नानक देव मुस्करा उठे और करुणा भरे शब्दों में कहा- ‘यदि तुम अपने मरने पर एक छोटी सी सुई भी नहीं ले जा सकते तो यह करोड़ों की सम्पत्ति तुम कैसे ले जा सकते हो?’ गुरु के इस वचन ने दुनीचन्द के हृदय को छू लिया और उसमें गुरु नानक के उपदेशों का पालन करते हुए त्याग और सेवा का मार्ग अपनाने का संकल्प लिया।