‘अब फिर से सतयुग आयेगा’-यह बोल रहा है महाकाल।
निश्चय ही दुनिया बदलेगी, निश्चित ही परिवर्तन होगा।
नव-भव्य भावना जागेगी, नवयुग का आरोहण होगा।
है कौन शक्ति जो रोक सके, अब काल-चक्र की प्रबल चाल॥
हैं वर्ष हजारों बीत चुके, अन्यायों को सहते-सहते।
हैं बीत चुकीं सदियाँ अनेक, इस कलियुग में रहते-रहते।
चल चुकी बहुत पर अब न चलेगी, कलि की कोई कुटिल चाल॥
अन्यायी, अत्याचारी की अब खैर नहीं, निश्चित जानो।
सत्ता-लोलुप मिट जायेंगे, चाहे मानो या ना मानो।
अब खड़ा हो चुका जन मानस, क्रांति की कर में ले मशाल॥
क्यों है निराश? क्यों है हताश? तू है भारत का सपूत।
आने वाले कल का तो तुझको ही बनना है अग्रदूत।
इसलिये भीरुता छोड़, प्रकट कर दे अपना पौरुष कराल॥
अब दूर नहीं है, वह दिन जब सब में मानवता आयेगी।
सब ओर विश्व में सत्य-न्याय की, धर्म-ध्वजा फहरायेगी।
टूटेंगे सब ये क्षुद्र बाँध, लहराएगा सागर विशाल॥
‘अब फिर सतयुग आयेगा’.........!
-रामकुमार ‘भारतीय’