अपना परिवार-उच्च आत्माओं का भाण्डागार

October 1967

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युग परिवर्तन एक बहुत बड़ा प्रयोजन है। उसके लिये तदनुरूप बड़े साधनों एवं उपकरणों की भी आवश्यकता होगी। यह साधन उत्कृष्ट स्तर के व्यक्तियों के रूप में अभीष्ट होंगे। संसार का भावनात्मक परिवर्तन करने के लिये भावनाशील- श्रद्धा और सद्भावना के धनी व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ेगी। इन दिनों वही सब जुटाया जा रहा है विभिन्न क्षेत्रों में, विभिन्न क्षमता सम्पन्न ऐसे व्यक्तियों का इन दिनों सृजन हो रहा है जो आगे चल कर युग निर्माताओं की महत्वपूर्ण भूमिका बड़ी खूबी से सम्पादन कर सकें।

यह एक विचित्र और विलक्षण रहस्य है कि जन्मजात रूप से तो महामानव कोई विरले ही- यदाकदा ही उत्पन्न होते हैं। शेष तो बीच में से ही उस महाकाल की दृष्टि में आते हैं और देखते-देखते कुछ से कुछ बन जाते हैं। पूर्ण अवतारों की बात जाने दीजिए, मध्यावतार अकसर जीवन के किसी मध्यकाल उन्हें अपनी भुजाओं में कस लेते हैं और देखते-देखते वे कुछ से कुछ बन जाते हैं।

बुद्ध जन्मजात अवतार नहीं थे। यदि होते तो उन्हें आरम्भ से ही अपन उद्देश्य का ज्ञान होता और विवाह करने, बच्चा उत्पन्न करने और उन्हें बिलखता छोड़ने की भूल न करते। गाँधी जी जन्मजात अवतार नहीं थे। यदि होते तो उनको लगभग तीस वर्ष तक की आयु तक इधर-उधर भटकना न पड़ता। रामायण के पात्रों में हनुमान, अंगद, सुग्रीव, जामवन्त, जटायु आदि की भूमिकायें बड़ी महत्वपूर्ण हैं। पर वे लोग यदि जन्मजात महापुरुष होते तो उनका जीवन क्रम आरम्भ से ही निर्धारित दिशा में चल रहा होता। बाल्मीकि, अंगुलिमाल, अंबपाली, सूरदास, सम्राट अशोक आदि के जीवन आरम्भ में कलुषित ही तो थे। अगणित सन्त, महात्माओं एवं महापुरुषों के जीवन क्रम ऐसे ही हैं जिन्हें ध्यानपूर्वक देखने से स्पष्ट होता है कि वे जन्मजात रूप से कोई महानता लेकर नहीं आये थे। जीवन का बहुत बड़ा भाग उन्होंने निरर्थक अथवा अस्त-व्यस्त गंवाया। समयानुसार उनकी अन्तः चेतना ने पलटा खाया, दिशा बदली और फिर वे कुछ से कुछ हो गये। इससे प्रकट होता है कि महानता का कोई पूर्व संचित कण यदि अन्तःकरण में विद्यमान है तो वह कभी भी प्रतिफलित हो सकता हैं। महाकाल की एक दृष्टि किरण उसका कायाकल्प कर सकती है। गर्मी के दिनों में घास सूख जाती है। पर वर्षा आते ही उसकी सूखी जड़े फिर हरी हो जाती है और घास की बेल देखते ही देखते भूमि को हरितमा से ढक देती है।

अनेक महात्माओं में पूर्व जन्मों की महानता प्रचुर मात्रा में विद्यमान रहती है। आवश्यक नहीं कि वह जन्मते ही प्रकट हो जाय। ऐसे महामानव आरम्भिक जीवन में सामान्य स्तर की नगण्य जैसी महत्व की गतिविधियों में रहते देखे जाते हैं। पर जैसे ही उपयुक्त अवसर आता है साहसपूर्वक अपनी पूर्व भूमिका में परिणत, परिवर्तित हो जाते हैं। इस दुस्साहस में ही इतनी महानता छिपी रहती है।

महाकाल का प्रबुद्ध आत्माओं में अवतरण स्वाति बूँद की तरह होता है, जिससे साधारण दिखने वाली सीपी को अपने गर्भ से महान मोती उगाने का सौभाग्य मिलता है। इस अनुग्रह से सामान्य व्यक्तित्व देखते-देखते महान हो जाता है।

यह एक प्रकट रहस्य है कि समुद्र मंथन करके चौदह रत्न ढूंढ़ निकालने की तरह उन आत्माओं को तलाश कर लिया गया है जो पिछले युगों में महाकाल का पुण्य प्रयोजन पूरा करने में शानदार भूमिका सफलतापूर्वक प्रस्तुत करती रही हैं। जब आवश्यकता पड़ी है महाकाल ने उन्हें सेवा निवृत्त सैनिकों की तरह युद्धकाल की आवश्यकताओं को देखते हुए पुकार बुलाया है और वे खुशी-खुशी अपने चारों ओर बिखरे हुए मकड़ी के जाले जैसे जाल-जंजालों को तोड़-मरोड़ कर उस पुकार को पूरा करने के लिये उपस्थित होते रहे हैं। जिन्होंने अतीत में अपने-अपने समय पर महामानव, युग पुरुष, लोकनायक और वीर बलिदानी बनने का महानतम गौरव प्राप्त किया है, वे उस अनुपम-अलौकिक-आनन्द का रसास्वादन जानते हैं, अतएव जब अवसर आता है तब उस सुअवसर का लाभ उठाने के लिए सबसे आगे आ जाते हैं। महारास में कृष्ण की वंशी सुन कर गोपियाँ अपना लौकिक जाल-जंजाल छोड़ कर उस अमृत का रसास्वादन करने को दौड़ पड़ी थीं। इस रहस्य की अब पुनरावृत्ति होने जा रही है। नव निर्माण का कठिन कार्य एक प्रकार का धर्मयुद्ध है। इसमें प्रवृत्त होने की शंख ध्वनि से जब दिशायें गुँजन करने लगीं तो प्रबुद्ध आत्माओं के लिए भीरुता धारण किए रहना कठिन है। उन्हें अपने जाल जंजाल तोड़ कर उस महान आह्वान की पूँजी में संलग्न होना ही होगा।

इस संध्याकाल में सभी उच्च आत्मायें महाकाल का पुण्य प्रयोजन पूर्ण करने के लिये उसी तरह विद्यमान हैं जिस प्रकार सभी ऋषि, मुनि वनवासी अपने निकटवर्ती जलाशय पर संध्यावन्दन करने के लिए एकत्रित हो जाते हैं या विवाह, शादी जैसे उत्सवों में सभी कुटुम्बी संबंधी जमा होते हैं। युग परिवर्तन ऐसा ही अवसर है, इसमें अनादि काल से लेकर अब तक की प्रायः सभी प्रबुद्ध आत्माएं मनुष्य शरीरों में विद्यमान हैं। विश्वामित्र, अत्रि, कपिल, कण्व, व्यास, वशिष्ठ, भारद्वाज, याज्ञवलक्य, गौतम, नारद, लोमश, महावीर, बुद्ध, शंकराचार्य, कुमारिल आदि ऋषि, विवेकानन्द, रामतीर्थ, रामदास, तुकाराम, एकनाथ, ज्ञानेश्वर, कबीर, नानक, रैदास, रामकृष्ण परमहंस, सूर, तुलसी आदि सन्त, अर्जुन, द्रोण, भीष्म, कर्ण आदि योद्धा, चाणक्य, शुक्राचार्य आदि नीतिज्ञ, हरिश्चन्द्र, शिवि, दधीच, मोरध्वज, कर्ण, भामाशाह जैसे उदार परोपकारी, अनुसूया, मदालसा, कुन्ती, द्रौपदी, सुभद्रा, सत्यवती, मैत्रेयी, गार्गी भारती, दुर्गावती, लक्ष्मीबाई, अम्बपाली, मीरा, शबरी, अहिल्याबाई, सारन्धा आदि जैसी देवियाँ, अभिमन्यु ध्रुव, प्रह्लाद, फतेसिंह, जोरावर जैसे वीर बालक इन दिनों मौजूद हैं। वे साधारण जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अभी वे साधारण स्थिति में हैं। पर अगले ही दिनों उनको असाधारण बनते देर न लगेगी। लोग आश्चर्य करेंगे कि कल का साधारण समझा जाने वाला व्यक्ति आज इतना असाधारण-इतना महान कैसे बन गया। यह सब महाकाल का युग निर्माण प्रत्यावर्तन- महारास का दिव्यदर्शन जैसी ही अद्भुत घटना होगी।

नव निर्माण की सीमा केवल भारत ही नहीं सारा विश्व है। किन्तु यह कार्य आरम्भ भारत से हो रहा है। कारण कि इस परिवर्तन का आधार अध्यात्म है। भारत अध्यात्म की मातृभूमि है। इसलिये इस प्रकार का श्रीगणेश यहीं से हो सकता है। यह शुभारम्भ अवश्य गीता गायक भगवान कृष्ण की जन्मभूमि से हो रहा है पर उसका क्षेत्र व्यापक है। यह प्रकाश विश्व के कोने-कोने में पहुँचाना है और सारी दुनिया को ही मानवता के उच्च आदर्शों को अपनाने के लिये प्रशिक्षित करना है। अस्तु इस अभियान को विश्व आन्दोलन ही कहना चाहिये। इस प्रयास में विश्व भर की सभी आत्माओं का योगदान रहता है। अतएव वे भी भारत भूमि में ही इन दिनों अवतरित हो रही हैं। कुछ के जन्म हो चुके, कुछ के होने वाले हैं। विश्व के सभी धर्मों के देवदूतों का आगमन हो रहा है। समय पर जिनने विश्व की राजनैतिक, सामाजिक, नैतिक, बौद्धिक, आर्थिक परिस्थितियों को सुधारने के लिये अपने ढंग से मानव जाति की महत्वपूर्ण सेवा की हैं, ऐसी अनुभवी, प्रशिक्षित और परखी हुई आत्मायें फिर अवतरित हो रही हैं।

जो जन्म ले चुकी वह समय पर अपना आवरण हटा कर प्रकट होंगी। जिनका जन्म नहीं हुआ वे घर ढूंढ़ रही हैं। कई आत्मायें उपयुक्त नर नारियों के रज वीर्य में प्रवेश कर चुकी हैं और अवसर मिलने पर वे जन्म धारण कर लेंगी। इस दृष्टि से कुछ ही समय में भारत महापुरुषों की एक रत्नराशि के रूप में अपना अस्तित्व प्रकट करेगा।

अखण्ड ज्योति परिवार के सदस्यों में ऐसी अनेक उच्चस्तरीय आत्मायें विद्यमान हैं। वे जब कभी अपने बारे में विचार करती हैं तो उन्हें स्पष्ट विदित होता है कि वे साधारण नहीं असाधारण हैं। इन दिनों उनकी आत्मा जोरों से कोंच रही हैं और निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप कोई साहसपूर्ण कदम बढ़ाने के लिये जोरदार धक्के देकर विवश कर रही है। अपने परिवार में ऐसी अनेक आत्माओं को नव निर्माण के लिये ऐतिहासिक भूमिका प्रस्तुत करते हुये देखा जाय तो उसे आश्चर्य नहीं स्वाभाविक मानना चाहिये। क्योंकि वे साधारण परिस्थितियों में पड़े हुए तो हैं पर वस्तुतः साधारण नहीं हैं। समय आने पर वे साहसपूर्वक आगे बढ़ेंगे और अवतरण उद्देश्य पूरा करेंगे।


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