अश्विन की नवरात्रि साधना

October 1955

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नवरात्रि साधना के लिए सर्वोत्तम समय है। जिस प्रकार प्रातः सायं की मिलन-बेला-संध्या--को पूजा के लिए उत्तम काल माना जाता है, उसी प्रकार शीत ग्रीष्म ऋतुओं की मिलन-बेला में अश्विन और चैत्र की नवरात्रि आती है। जिस प्रकार गर्भाधान के लिए एक विशेष ऋतुकाल आता है, जिस प्रकार खेत बोने को एक विशेष समय आता है और उस समय का कार्य अन्य समयों की अपेक्षा अत्याधिक प्रभावशाली होता है इसी प्रकार नवरात्रि में की हुई उपासना वर्ष के अन्य सभी साधारण समयों की अपेक्षा कहीं अधिक फलदायक होती है।

इस बार आश्विन की नवरात्रि ता. 16 अक्टूबर रविवार से आरम्भ होकर ता. 28 अक्टूबर सोमवार को पूर्ण होगी। पूर्णाहुति ता. 28 को होनी चाहिए। इन 6 दिनों में जिनसे बने पड़े, उन्हें 28 हजार जप का लघु अनुष्ठान करने का प्रयत्न करना चाहिए। प्रतिदिन 2॥-3 घंटा लगा कर 26 माला कर लें। इतना अनुष्ठान आसानी से पूरा हो सकता है। प्रातः काल और सायंकाल दोनों समय मिलाकर भी इतना जप पूरा किया जा सकता है। ब्रह्मचर्य से रहना आवश्यक है। उपवास, भूमि शयन, अपने शरीर की सेवा स्वयं करने आदि तपश्चर्याऐं जिनसे जितनी बन पड़ें, वह उतनी अवश्य करें। 28 हजार अनुष्ठान के लिए 280 आहुतियों का हवन किया जाना चाहिए। ब्रह्मभोज के लिए गायत्री अंकों का या पाँच-पाँच पैसे वाले छोटे ट्रैक्टों का सज्जनों में वितरण करना सबसे सस्ता और सबसे सीधा तरीका है। जप, हवन और ब्रह्मभोज तीनों से मिलकर ही अनुष्ठान पूर्ण होता है।

छोटे बच्चे, कन्याएँ, बीमार, असमर्थ,बूढ़े 9 दिन में गायत्री चालीसा के 108 पाठ करने का अनुष्ठान कर सकते हैं। प्रतिदिन 12 पाठ एक घंटे से बड़ी आसानी से हो जाते हैं, अन्त में 28 या 108 गा. चा. दान करें।

जिनके लिए नवरात्रि में मथुरा आना सम्भव हो, वे यहाँ आकर अनुष्ठान करें। घर के कुंए पर स्नान करने और गंगाजी पर जाकर वहाँ स्नान करने में जो अन्तर होता है, वही घर के झंझट पूर्ण वातावरण में साधना करने तथा तपोभूमि में आकर साधना करने में होता है। जो लाग विधिवत हवन घर पर न कर सकते हो, उनका हवन यहाँ पर कर दिया जायगा। जो साधक अपने नवरात्रि अनुष्ठान की पूर्व सूचना हम दे देंगे, उनकी साधना में रही हुई त्रुटियों का दोष परिमार्जन तथा सुरक्षा का संरक्षण हम करते रहेंगे।

अखण्ड-ज्योति के पाठकों को सूचना:−

(1) अखण्ड-ज्योति के इस अनुभव अंक के लिए बहुत बड़ी संख्या में अनुभव आये थे, पर पृष्ठ- संख्या सीमित रहने के कारण उनमें से थोड़े ही छापे जा सके। शेष अनुभवों का क्रमशः अगले अंकों में निकालने का प्रयत्न करेंगे।

(2)दिसम्बर का अंक “यज्ञ विज्ञान अंक” होगा। इसमें देश भर के प्रमुख यज्ञ विद्या शास्त्रियों के बड़े ही महत्वपूर्ण लेख रहेंगे। अगले वर्ष यज्ञ विधान अंक निकालने का प्रयत्न करेंगे।

(3) सन् 56 से अखण्ड ज्योति की पृष्ठ संख्या अब की अधिक ड्यौढ़ी करदी जायगी। इस हिसाब से चन्दा भी 2॥) का ड्यौढ़ी 3।।।) होना चाहिए था, पर उतना न बढ़ा कर केवल ॥) ही बढ़ाये जायेंगे अर्थात् 2॥) की अपेक्षा 3) कर दिये जावेंगे। जो सज्जन सन् 56 का चन्दा भेजें, वे 3) ही भेजे।


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