गायत्री उपासना से सुख सुविधाओं की वृद्धि

October 1955

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गायत्री द्वारा आश्चर्यकारी लाभ (श्री॰ विश्वनाथ पाण्डेय, दानापुर)

एक बार मैं उद्यान में बैठकर गायत्री जप कर रहा था। सूर्य देव अपनी किरणें समेट कर विदाई का उपक्रम कर रहे थे। अचानक करुण कराहों से भरी हृदय बोधक वाणी मुझे सुनाई पड़ी। उसी समय मेरा जप भी समाप्त हो रहा था। मैं दौड़ा गया और जाकर देखा एक घायल, लाश के समान निस्पंद पड़ा था। उसमें उठ सकने की जरा भी सामर्थ्य नहीं रह गयी थी। मैंने गायत्री मंत्र से जल को अभिमन्त्रित करके आँखों में छींटे मारे तथा मन्त्र पढ़ते हुए उनके शरीर पर हाथ फेरने लगा। सहसा ही वे पूर्ण स्वस्थ की भाँति अपने आप उठकर बैठ गये और मुझे आग्रह और सम्मान के साथ अपने घर ले गये । वहाँ बहुत सी वार्ताएं हुई। उसने पूछा मैंने तो समझ लिया था कि मैं अब मर ही चुका फिर किस उपाय से आपने मुझे बचा लिया? मैंने उत्तर दिया—मैं तो सिवाय गायत्री मन्त्र के और कुछ नहीं जानता फिर उसने पूछा आपने गायत्री उपासना कैसे और क्यों आरम्भ की? उनकी सच्ची जिज्ञासा देखकर मैंने अपने जीवन के पृष्ठ खोलकर उनके सम्मुख रख दिया—

मैंने संसार के आकर्षणों के कारण अनेकों बुरे अभ्यासों को अपना स्वभाव बना लिया था। मेरे समझने और समझाने पर भी ये कुटेवें मेरा पीछा नहीं छोड़ती थी− मैं परेशान था।

हमारे ज्येष्ठ भ्रात श्री भोला नाथ जी गायत्री उपासक हैं, उन्होंने गायत्री उपासना के बल से, जिनों को हमारे घरों से सदा के लिए हटा दिया। ये जिन्न (प्रेत) सदा हमारे घरों में नाना प्रकार की भली बुरी वस्तुयें वर्षाया करते थे। इनके गायत्री अनुष्ठान करते ही सारे उपद्रव सदा के लिए बन्द हो गये। गायत्री मन्त्र का ऐसा प्रत्यक्ष प्रभाव देखकर मेरा भी मन इस और खिंचा और मैंने अपने कुटेवों को दूर करने की भावना से भ्राता जी की देख रेख में 24000 के दो अनुष्ठान किये। मैं विस्मय से भर उठा कि जिन कुभावनाओं को हटाने में मैं वर्षों से परेशान था, मेरे सारे पुरुषार्थ जिसे दूर करने में सदा असफलता की निराशा भरी घूँटे पीते रहे, उसे ये दो ही लघु अनुष्ठानों ने कैसे मुझसे सदा के लिये निकाल कर बाहर कर दिया? इस अनुभव के आधार पर तो लगता है कि मैं दावा पूर्वक कह दूँ कि इतनी शीघ्रता से अन्तर को निर्मल बनाने वाला, संसार भर में कोई मन्त्र नहीं है। कोई श्रद्धा निष्ठा पूर्वक इस मन्त्र की आज़माइश कर ले।

इसके उपरान्त तो कितनी ही छोटी मोटी घटनायें मेरे जीवन में घटी और घटती ही रहती हैं।

हमारे पिता जी , सदा एक न एक रोग सदैव पीड़ित ही रहते थे, किन्तु जब से इन्होंने गायत्री माता का अंचल पकड़ा तब से बराबर आरोग्य स्थिति का लाभ ले रहे हैं।

हमारे पड़ोस की एक स्त्री को सदा ही प्रेत सताया करता था। एक दिन हमारे भ्राता जी को उस पर दया आ गयी। उन्होंने एक दिन प्रेत लगने की हालत में गायत्री अभिमन्त्रित —जल के छींटे उसके शरीर उपरान्त उठी। भाई जी ने वह सदा के लिये प्रेतों से मुक्त हो गयी।

एक बार हमारे आरा निवास सम्बन्धी राम गोपाल जी के छोटे भाई के विवाह की बरात जाने के लिये तैयार हो रही थी। उसी समय उनके पाँच वर्ष के पुत्र श्री अमर कुमार की दशा अचानक ही इतनी खराब हो गयी कि सभी उसके जीवन से निराश हो गये। राम गोपाल जी भी गायत्री उपासना के प्रेमी थे और हमारे भ्राता जी भी संयोग से वहीं उपस्थित थे। यह दशा देख ये दोनों गायत्री माता की आराधना में लग गये। थोड़ी देर जप किया था, कि बालक पूर्ण स्वस्थ होकर उठ खड़ा हुआ और उल्लास से बारात वालों ने अपनी मंगल यात्रा आरम्भ की।

आरा के श्री रामकरण जी ने निमंत्रण पाकर किसी के यहाँ भोजन करने गये। भोजन करने के उपरान्त घर आते ही उनका मस्तिष्क विकृत हो गया। वे पागल होकर यत्र−तत्र फिरने लगे। एक दिन उसने स्वयं अपनी जाँघों को ईंटों से मार−मार कर हाथी चर्म—सदृश बना लिया। उनका मनुष्य−जीवन निरर्थक हो गया। एक दिन कुछ लोगों के परामर्श से उसको पकड़कर रामगोपाल (हमारे संबंधी गायत्री उपासक) कल्याण भावना से चावल को गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित कर उनके शरीर पर छींटे मारे, जिससे वह मूर्छित के समान गिर पड़ा। कुछ देर बाद फिर वे उठे और पीने के लिये जल माँगा। उन्हें फिर गायत्री अभिमंत्रित जल पिलाया गया—इसके उपरांत वे पूर्णतः स्वस्थ हो गये।

हमारे एक पुराने पटना निवासी मित्र श्री शिव दत्त जी, जो दो वर्ष से मैट्रिक परीक्षा में असफल हो रहे थे। उन्होंने गायत्री माता का आश्रय लिया और उस वर्ष मैट्रिक परीक्षा में भली भाँति उत्तीर्ण हो गये। इस प्रकार के अनेक अनुभवों से प्रभा−बिन होकर मैं स्वयं भी निष्ठा पूर्वक गायत्री उपासना में लग गया।

भूखों मरती दशा में माता की सहायता (श्री. विरसुखलाल, सिकन्दराबाद)

हमारे परिवार में केवल पिता जी के कारण ही हमारी जीविका चलती थी। सारा कारोबार देखने और संचालित करने वाला, उनके सिवाय और कोई नहीं था। हमारे दुर्भाग्य से उन्हें पथरी का रोग हो गया। रात दिन दर्द से बेचैन रहते थे। हमारा सारा कारबार बन्द हो गया। पहले की अर्जित सम्पत्ति उनके इलाज और हमारे भोजन एवं अन्य आवश्यकताओं में खर्च किये जा रहे थे। चिकित्सा के बावजूद भी उनकी दशा बिगड़ती ही जा रही थी। हम लोग उनके जीवन से निराश हो कर अपनी भावी जीविका के नष्ट होने की चिंता से भीतर ही भीतर भय से घुलते जा रहे थे।

निराशा ने हमें गायत्री माता की ओर उन्मुख किया। जो जप कर सकते थे सबों ने माता की करुणा पुकार सहित जप करना प्रारम्भ किया। चार महीने बीतते−बीतते पिता जी पूर्ण स्वस्थ हो गये। सबों ने मुग्ध होकर−कृतज्ञ हृदय से माता का धन्यवाद किया, जिन्होंने, पिताजी का प्राण रक्षा के संग हमारी जीविका के साधन भी संजीवित कर दिये।

इस संकट के अवसर पर हमें अपना शिक्षण बंद कर देना पड़ा था, पर शिक्षण छोड़ते ही माता की कृपा से अनायास ही दोनों को उपयुक्त नौकरी मिल गयी। आज हम उनकी कृपा से सब तरह सुनी हैं।

आर्थिक संकट से निवृत्ति (श्री हरिदत्त शर्मा संवासा, बूँदी)

मैं जाति का ब्राह्मण हूँ। यज्ञोपवीत के समय मुझे गायत्री मंत्र की दीक्षा दी गई थी। पर दुर्भाग्य से मैं गायत्री विद्या के रहस्य को नहीं जानता था। अतः मंत्र जाप एवं गायत्री उपासना में कोई रुचि नहीं थी। भगवत् कृपा से बसंत पंचमी सं. 2011 से गायत्री तपोभूमि में “विशद् गायत्री महायज्ञ” प्रारम्भ हुआ। गायत्री महायज्ञ के संबंधित पर्चे व “गायत्री ज्ञानांक” की एक प्रति मुझे एक मित्र द्वारा प्राप्त हुई। उसे मैंने आद्योपान्त पढ़ा और अपने को धन्य माना। गायत्री महिमा से प्रभावित हो मैंने महायज्ञ का भागीदार बनने का निश्चय किया। मैं अपना कुछ नियमित समय गायत्री उपासना में लगाने लगा। मेरे प्रयत्न से कई व्यक्ति इस पथ पर चलने लगे। आर्थिक दृष्टि से मेरी अवस्था दुर्बल है। पिछले कुछ दिनों से मेरे ऊपर कुछ कर्ज चला आ रहा है। बौहरे ने मुझ से अधिक कहा सुनी करके कम से कम सौ रुपया एक निश्चित तारीख पर देने का वायदा करा लिया। यद्यपि मुझे कोई ऐसा रास्ता नहीं सूझ रहा था कि कहीं रुपया पा सकूँ और उस बौहरे को समय पर देकर झूठा बनूँ। परंतु सहसा उसके कहने पर हाँ कर दिया था मुझे समय पर देने का वचन पूरा करना था। हृदय उद्विग्न था। 1 दिन शेष रह गया है। कोई सूरत नहीं! माता के सामने हृदय खोलकर प्रार्थना की। सम्मान जाने का समय निश्चित हो गया। बौहरा आकर सूचना दे गया कि कल आपकी निश्चित तारीख समय चूकने पर सम्मान का ख्याल न रखा जावेगा।

बौहरा चला गया। मैं सब कुछ भूल कर माता के चरणों में पड़ गया। एक घण्टा उपरान्त एक महाशय अचानक ही आकर 100) दे गये मेरी लाज बच गई, माता की असीम अनुकम्पा का अनुभव किया और जाकर रुपया दे आया। माता की कृपा से एक दिन पहले ही सम्मान की रक्षा हो गई। मेरा समय सानन्द व्यतीत हो रहा है। गायत्री उपासना में श्रद्धा एवं विश्वास रखने पर अवश्य लाभ होता है। पाठकगण, अवश्य इस रहस्य को जानकर लाभ उठावेंगे, ऐसी मेरी आनन्दमयी माता से प्रार्थना है। उस दयामयी माता के चरणों में कोटिशः प्रणाम।

गायत्री जप से जीवन में सुख−सुविधा (उपाध्याय नाथूलाल बापूलाल औदीच्य सागबाड़ा,)

माता की अशेष करुणा से मैं पन्द्रह वर्ष की उमर से ही तीन माला प्रतिदिन गायत्री महामंत्र का जप करने लगा था कुछ दिनों के उपरांत मैं ‘अखण्ड ज्योति’ का ग्राहक बना और गायत्री महा विज्ञान तीनों भाग पढ़कर अपना आध्यात्मिक गुरु भी एक प्रगट−गुप्त महापुरुष को चुन लिया। जप की संख्या बढ़ाकर 1000 एक हजार कर दिया।

माता की अपार दया से मैं जहाँ भी जिस काम से जाता हूँ वह किसी भाँति पूरा ही हो जाता है। कभी लगता है, यह काम होना तो मुश्किल है, पर ज्यों ही उस काम में लगता हूँ कि वह काम अपनी कठिनाई त्याग कर सरल होने लगता है।

मेरी पत्नी का स्वास्थ्य बहुत दिनों से खराब था। कभी रोगों में छुट्टी नहीं मिलती। एक न एक रोग सदा उसे घेरे ही रहते। सारी चिकित्सायें उस के रोग को दूर करने में असफल सिद्ध हुई।

आध्यात्मिक गुरु वरण करने के याद उपासना करते हुए उसके सारे रोग क्रमशः कैसे दूर हो गये, यह पता भी नहीं चला।

मेरा अपना मकान नहीं था। माता की कृपा से एक व्यक्ति ने अपना दो हजार रुपये का मकान मुझे 500) में ही दे दिया। उस समय मेरे पास एक भी रुपये नहीं था। एक व्यक्ति ने माँगते ही कर्ज दे दिया और मैंने मकान खरीद लिया। कुछ दिनों में वे कर्ज के रुपये भी चुक गये।

हम लोग अपने परिवार में चार व्यक्ति हैं, पत्नी, एक पुत्र, एक पुत्री और स्वयं मैं। हमारी जीविका का कोई ठोस आधार नहीं है, फिर भी, हम सभी, सदा सुख पूर्वक पूरा भोजन पाते रहते हैं।

हमारे जीवन के इन सुखद स्थितियों का एकमात्र कारण माता का ही वात्सल्य है, क्योंकि हम अपने जीवन में, केवल अपने पुरुषार्थ से चलने वालों को− अनेकों को, भूखों मरते−विभिन्न दुःख और अभाव भोगते हुए प्रतिदिन देखते ही रहते हैं।

आर्थिक समस्या का हल (श्री लक्ष्मीनारायण शर्मा, श्रोत्रिय−बोहत कोटा)

मैं तीन वर्ष से अत्यन्त दुखी था, चिंता एवं महान आपत्ति में ग्रस्त था। हमारे यहाँ भिक्षा वृत्ति के सावत्य अन्य जीविका उपार्जन का माध्यम नहीं है। यहाँ के ब्राह्मण भिक्षा वृत्ति से ही जीवन निर्वाह करते हैं। मुझे यह वृत्ति अशोभनीय मालूम पड़ी अतः शिक्षा विभाग की ओर अग्रसर हुआ। मैंने कई जगह आवेदन पत्र भेजे पर कहीं से संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। राजकीय नौकरी के लिये 25 वर्ष अन्तिम आयु है, जब कि मेरी अवस्था 24 वर्ष 8 माह हो चुकी थी। घर के सब लोग नाराज रहते थे। कोई 2 लोग तो अपमानजनक शब्द कह कर धिक्कार देते थे। इस बीच दो तीन बार आत्महत्या तक करने का विचार मन में आया पर माता की कृपा से धैर्य धारण करके डटा रहा और आपत्ति सहन करता रहा।

पूज्य आचार्य जी के आदेशानुसार मैं श्रद्धापूर्वक माता की उपासना में लगा रहा। आचार्य जी ने गायत्री उपासना चालू रखने व दूसरों को भी इस ओर अग्रसर करने को कहा था क्योंकि ब्राह्मण जीवन का यही सर्वश्रेष्ठ उपयोग है। मैं विशद गायत्री महायज्ञ का भी भागीदार बना। गायत्री माता की दया से मुझे नौकरी प्राप्त हुई। माता की कृपा से मैं घोर अन्धकार में से निकलकर प्रकाश में आ सका हूँ। माता की महान अनुकम्पा एवं आचार्य जी के आशीर्वाद से मेरा जीवन सुख-शान्तिमय बनेगा।

माता की कृपा योग क्षेम की व्यवस्था (श्री चुन्नालाल जे. राजा साणंद)

मैंने गायत्री उपासना सम्बन्धी (गायत्री महाविज्ञान) पुस्तकों में पढ़ा था कि गायत्री उपासना करने से गुरु विहीनों को सद्गुरु की प्राप्ति होती है। मैंने वही पढ़कर आध्यात्मिक पथ पर चलने के लिये सद्गुरु के आवश्यकता समझी और उन्हें पाने के लिये गायत्री उपासना प्रारम्भ की। दस हजार जप पूरा होते ही मुझे श्रीचरणपादुका जूना अखाड़ा में ब्रह्मचारी जी का दर्शन हुआ। उनसे बातें भी की किन्तु मैंने अपने सद्गुरु को पहिचान नहीं पाया। इसके 15 दिन उपरान्त ही स्वप्न में मुझे सद्गुरु का परिचय कराया गया और उस समय वे जहाँ थे उसका पूरा पता भी बताया गया। तदुपरांत मैंने स्वप्न निर्दिष्ट स्थान गीरनार पर्वत की तलहटी में जाकर उनका दर्शन किया। वहाँ गिरनार पर्वत की आनन्द गुहा में चार महीना तक उनके साथ रह कर सत्संग किया।

चार महीने के उपरान्त उन्होंने मुझे एक साँणद ग्राम के श्मशान घाट में रह कर साधना करने का आदेश दिया। वहाँ सिद्धनाथ महादेव का भी एक स्थान है। मुझे चिंता थी कि मेरे भोजन आदि के निर्वाह व्यय की व्यवस्था कैसे होगी?

इस स्थान में रह कर गुरु के आदेशानुसार मैं 24 लाख गायत्री का महा पुरश्चरण कर रहा हूँ। माता की कृपा से श्री नाथालाल−चुन्नालाल ने स्वेच्छा से मेरा भोजनादि भारा उठा लिया है। इसमें 35) रु. लगभग प्रतिमास खर्च पढ़ते हैं। एक वर्ष हुआ मैंने अन्नाहार परित्याग कर केवल फलाहार ही करता हूँ। एक और सज्जन प्रति दिन तीन बार मेरे आश्रम में आते हैं और मुझे अपनी आवश्यकता के सम्बन्ध में पूछते हैं। इस भाँति तो शायद ही कोई पुत्र अपने माता पिता की खोज खबर लेता हो।

माता की कृपा से मेरे पुत्र एवं पुत्रियों को भी जीविका सम्बन्धी सारी सुखद स्थितियाँ स्वतः ही प्राप्त हो गई हैं। वे सभी प्रसन्न और सुखी हैं। माता ने उन सबों की ओर से भी निश्चित कर मुझे साधना करने का दुर्लभ अवसर प्रदान किया है ऐसी परम सुखदा गायत्री माता के पावन चरणों में मैं बार बार नमस्कार करता हूँ।

निराशा में आशा का उदय (श्री. जगदेव प्रसाद तिवारी, पूरवटोला)

रोगों को भोगते—भोगते मैं जीवन से निराश

हो चुका था। सारे इलाज व्यर्थ गये। मैं दिन गिना करता था कि कब इस संसार से कूच करूंगा? न जाने कैसे मैं माता की शरण में आ पड़ा। ज्यों—ज्यों जप करता था त्यों—त्यों बिना औषधि के ही शरीर में सुधार होने लगा मुझ में जीने की आशा पुनः ललक उठी। उपासना में उत्साह और रुचि बढ़ गई। मन भी लगने लगा। आश्चर्य! ये वर्षा के रोग, जो दवाइयों से जरा भी टस से मस नहीं हो रहे थे—दिवसों में उठ गये।

आज मेरे मन मन्दिर में मातृ कृपा के अनेकों रत्न सुरक्षित भरे पड़े हैं। हमें उसे निकालने की इच्छा नहीं हो रही है, फिर भी जन हित के लिये एक दो घटनाएं लिख देना चाहता हूँ।

एक बार मेरी इच्छा एक दुकान खोलने की हुई। मेरे पास−बक्से में गिने−गिनाये थोड़े ही रुपये थे। उससे दुकान का कार्यारम्भ नहीं हो सकता था। सवेरे जब बक्स खोला तो आश्चर्य! इतने अधिक रुपये किसने हमारे ताला लगे बक्स में डाल दिये? आप सोच सकते हैं कि माता की कृपा का यह स्थूल प्रत्यक्ष कर कोई उपासक कितना उल्लास और उत्साह से भर उठेगा? रुपये इतने मिल गये जिससे दुकान आसानी से चल गई और अपना निर्वाह क्रम सुविधा पूर्वक चलने लगा।

भगवान करे, सभी उपासना करके माता की महती कृपा के भागीदार बन सकें।

आत्म बल की वृद्धि (श्री. भगवान दास सीतल, मथुरा)

गायत्री मंत्र से तो मैं बहुत पहले से परिचित था, पर उसके महान ज्ञान एवं रहस्य से अनभिज्ञ था। कुछ समय पूर्व से श्री आचार्य जी के संरक्षण में मुझे इसका समुचित ज्ञान लाभ प्राप्त हुआ। मैंने विशेष रूप से गायत्री जाप आरम्भ कर दिया। जब से मैंने विशेष साधना की है तब से अब तक मुझको बहुत सुख और शान्ति प्राप्त हुई है। जिस आर्थिक चिन्ता से हृदय नित्य प्रति दग्ध रहा करता था, उसमें महान शान्ति प्राप्ति है और आत्म बल बहुत उन्नति की ओर बढ़ता जा रहा है। भगवत् कृपा और निर्भयता का आनन्द अनुभव होता जा रहा है। इससे पूर्व भी जब जब मैंने गायत्री जप किया था, मुझे यही गुण और शक्तियाँ प्राप्त हुई थीं अतः मेरा यह अनुभव है कि निर्भयता और महान शान्ति एवं विवेक बुद्धि के लिये यह गायत्री उपासना एवं अद्वितीय महौषधि है।

नौकरी पर बहाल (श्री नाथूराम खरे, धगवाँ)

मेरा पुत्र विजय नारायण लेखपाल (पटवारी) के पद पर कार्य कर रहा था। किसी कारण उनके अफसर नाराज है गये और वह पदच्युत कर दिया गया। मैंने यह सारा संकट मथुरा आचार्य जी को लिखकर भेजा। उन्होंने विशेष रूप से गायत्री उपासना करने को कहा। तथा विजय दोनों ही माता की श्रद्धा पूर्वक उपासना में लग गये। नौकरी की बहाली के लिए अपील कर दी गई। माता की ऐसी कृपा हुई कि विजय पाल बिना किसी चार्ज के अपने पद पर बहाल कर दिया गया। हमारा समस्त परिवार माता की शरण में रहते हुए। आनन्दमय जीवन व्यतीत कर रहा है। हम सब के स्वभाव एवं व्यवहार में भी सात्विकता बढ़ रही है। बुरे विचारों से घृणा होने लगी है। माता की उपासना का ऐसा ही फल है।

गायत्री उपासना से जीविका के साधन मिले (श्री भोला राम जी, बुलढाणा)

भेरून्दा (मारवाड़) निवासी श्री मंगल दास जी का जीविका का कोई साधन नहीं था। आतुर−व्यथा से वे दस−पन्द्रह रुपये में भी नौकरी करने उतावले थे, पर अनेकों प्रयत्नों के यादें भी उन्हें कोई काम नहीं मिल सका। जीविका की तलाश में भटकते हुए एक बार वे बुलढाणा आये। वे मेरे सम्बन्धी थे। मैंने उनकी उपासना करने की सलाह दी, डूबने को तिनके का सहारा भी बहुत होता है। उन्होंने तुरन्त ही मेरी बात मानकर यहीं (बुलढाणा) में नौ दिन में 2400 गायत्री मन्त्र लिखने का संकल्प किया और उसमें निष्ठा पूर्वक जुट गये। लिखना समाप्त कर 240 आहुतियों का हवन किया। इसके उपरान्त अनायास बुलढाणा में ही 100) एक सौ रुपये मासिक, एक औषधि बेचने वाली दुकान में मुनीम का स्थान मिल गया। उन्होंने माता को सहस्रशः प्रणाम कर धन्यवाद दिया और आज भी नौकरी करते हुए माता के परम भक्त बने हुए हैं।

गायत्री द्वारा संकटों का निवारण (श्रीराम, कोलसा, आजमगढ़)

यद्यपि हमने बहुतों से सुना था कि गायत्री बड़ा शक्ति शाली मन्त्र है, पर उसे जीवन में प्रत्यक्ष देखने का अवसर नहीं आया था। पर आगामी वर्षों से एक गायत्री उपासक श्री मन्नू लाल जी के साथ रहकर जो कुछ देखा और अनुभव कर सका, वह इसलिये छापने की इच्छा हुई कि यह पढ़कर यदि एक भी व्यक्ति गायत्री माता की आश्रया ग्रहण कर अपना कल्याण कर लेंगे तो मैं अपने को कृतार्थ समझूँगा।

(1) दानापुर के श्री रामदास धोबी की पत्नी को प्रेत लगता था। एक बार मेरे सामने व्याकुल होते हुए एक आदमी मन्नू लाल जी को बुलाने आया। मैंने उस बुलाने वाले से उस की छटपटी का कारण पूछा—उसने बताया कि वर्षा से रामदास की पत्नी को प्रेत लग रहा है। जब वह आता है तो इसके हाथ पैर ऐंठ से जाते हैं, आँखें उलट जाती हैं तथा शरीर मुर्दे समान स्थिर और ठण्डा हो ताजा है। उत्सुकता वश मैं भी मन्नू लाल जी के साथ गया। इन्होंने जाकर गायत्री माता का ध्यान किया और उपरान्त प्रार्थना की कि हे माता। इस गरीब दुखियारी के कष्ट हर ले। मैं पन्द्रह दिन तक और इसके लिये 10 माला गायत्री महामन्त्र का जप और अन्त में उसका हवन करूंगा। उनकी प्रार्थना मात्र से वह औरत तुरत ही अपनी स्वाभाविक दशा को प्राप्त हो गई और फिर उसे प्रेतावेष नहीं आया।

(2) एक बार हमारे पटना निवासी मित्र के सुपुत्र को रात के एक बजे से अचानक ही धारा वाही वमन और दस्त प्रारम्भ हो गया। डाक्टर पर डाक्टर बुलाये गये पर सारी चिकित्सा व्यर्थ हो गयी। उसी दशा में, चिकित्सा करने पर भी वे पड़े रहे। सहसा किसी ने मन्नू लाल जी को बुलाने की सलाह दी। वे आये, गायत्री माता से प्रार्थना की, कुछ जप—हवन करने का संकल्प किया और एक पात्र में जल गायत्री मन्त्र से अभिमन्त्रित करके पिला दिया। अति आश्चर्यकारी ढंग से उनका दस्त और वमन बन्द हो गया और इसके उपरांत अत्यधिक उल्लास के साथ उनके लिये जप और यज्ञ सम्पन्न हुआ।


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