नये देश को मैं नई भक्ति दूँगा! जगा देश सारी मिटी कालिमा है,
चतुर्दिक छिटकने लगी ललिमा है, निशानाथ सोये जग अंशुमाली,
मगर अर्चना की अभी रिक्त थाली, प्रगति-पंथ पर वेग से बढ़ चलें जो-
करोड़ों पगों को नई शक्ति दूँगा! जवानी न रुकती कभी आँधियों से,
जवानी सहमती न बरबादियों से, जवानी ने चाहा कि फिर करके छोड़ा,
जवानी ने डरकर कभी मुँह न मोड़ा, कसम खाके उट्ठी जवानी हमारी-
मैं बलि की जवानों को आसक्ति दूँगा! नये देश को मैं नई भक्ति दूँगा!
न होगा कभी दृष्टि से लक्ष्य ओझल, बनेगा हमारा हृदय-बल ही सम्बल,
अतुल शक्ति अपने पगों में छिपी है, झुकेगा किसी दिन इन्हीं पर हिमाचल,
धरा पर नया स्वर्ग बसकर रहेगा- मनुज को विवशता से मैं मुक्ति दूँगा!
अभी कल्पना हो सकी है न पूरी, अभी साधना रह गई है अधूरी,
अभी तो खुला द्वार केवल प्रगति का, अभी लक्ष्य में शेष है और दूरी,
बिना लक्ष्य की प्राप्ति के जो न लौटे- मैं ऐसी प्रखर शक्ति के व्यक्ति दूँगा!
नये देश को मैं नई भक्ति दूँगा!