यज्ञ द्वारा कुछ विशेष प्रयोजनों की सिद्धि

November 1954

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सिद्धि और सफलता के लिए :-

असफलता, निराशा, चिन्ता और खिन्नता उत्पन्न करने वाली परिस्थिति पर विजय प्राप्त करके सफलता का आशाजनक वातावरण उत्पन्न करने की स्थिति उत्पन्न करने करने में सरस्वती शक्ति का विशेष महत्व है। बुद्धि वृद्धि अभीष्ट वस्तुओं की प्राप्ति, सुख शान्ति, परीक्षा में उत्तीर्ण आदि के लिए सरस्वती गायत्री का प्रयोग किया जाता है। मंत्र यह है :-

ॐ सरवत्यै विद्महे, ब्रह्म पुत्र्यै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।

इस मन्त्र के साथ किन वस्तुओं के हवन का क्या परिणाम होता है, इसका विवरण इस प्रकार है-

पयोहुत्वाप्नु यान्मेधामाज्यं बुद्धिमवाप्नुयात्। अभिमंत्रयपि वेद् ब्राह्मं रसं मेधामवाप्नुयात्॥

दूध का हवन करने से तथा घृत की आहुतियाँ देने से बुद्धि वृद्धि होती है। मंत्रोच्चारण करते हुए ब्राह्मी के रस का पान करने से चिर ग्रहिणी बुद्धि होती है।

घृतस्याहुति लक्षेण सर्वान्कामानवाप्नुयात्। पंच गव्याशनो लक्षं जपेज्जाति स्मृतिर्भवेत्॥

एक लाख घी की आहुति देने से सब कामों की सिद्धि होती है। पंचगव्य पीकर एक लाख जप करने से स्मरण शक्ति की वृद्धि होती है।

अश्वत्थ समिधो हुत्वा युद्धादो जयमाप्नुयात्। अर्कस्य समिधो हुत्वा सर्वत्र विजयी भवेत्।

पीपल की समिधाओं से हवन करने पर युद्ध में विजय प्राप्त होती है। आक की समिधाओं से हवन करने पर सर्वत्र ही विजय होती है।

तिलानाँ लक्ष होमेन घृताक्तानाँ हुताशने। सर्वकाम समृद्धात्मा पराँ सिद्धिमवाप्नुयात्॥

घी मिलाकर तिलों से एक लाख आहुतियों का हवन करने से सब कामों की सफलता होती है तथा परम सिद्धि प्राप्त होती है।

गुड्च्याः पर्व विच्छिन्नः पयोक्ताजुहुयात द्विजः। एवं मृत्युन्जयो होमः सर्व व्याधि विनाशनः॥

जो द्विज गिलोय की समिधाओं को दूध में डुबो कर हवन करता है, वह सम्पूर्ण बाधाओं से विनिर्मुक्त होता है।

शतं शतं च सप्ताहं हुत्वाश्रिय मवाप्नुयात्। लाजैस्तु मधुरोपेतैर्होमे कन्यामवाप्नुयात्।

अनेन विधिना कन्या वरमाप्नोति वाँछितम्॥

मधुत्रय (दूध, दही, घी) मिलाकर लाजा (खील) से सात दिन तक हवन करने से वर को सुन्दर कन्या प्राप्त होती है और इसी विधि से हवन करने पर कन्या को इच्छित वर प्राप्त होता है।

हुतादेवी विशेषेण सर्व काम प्रदायिनी।

गायत्री की सरस्वती शक्ति हवन करने से सर्व कामनाएं पूर्ण करती है।

सम्पत्ति और समृद्धि के लिए :-

साँसारिक वस्तुओं के अभाव को मिटाने और जीवनोपयोगी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए लक्ष्मी गायत्री का प्रयोग होता है। महा गायत्री की सतोगुणी शक्ति को सरस्वती, रजोगुणी शक्ति को लक्ष्मी और तमोगुणी शक्ति को दुर्गा कहते हैं। लक्ष्मी गायत्री का उपयोग अभाव, दारिद्र, आदि असुविधाजनक परिस्थितियों को दूर करने के लिए किया जाता है। लक्ष्मी गायत्री मन्त्र यह है :-

ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि। तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।

इस मन्त्र का हवन किन वस्तुओं से करने पर क्या परिणाम होता है इसका विवरण इस प्रकार है-

अथ पुष्टिं श्रियं लक्ष्मी पुष्पैर्हुत्वाप्नुयात् द्विजः। श्री कामो जुहुयात्पद्मैः रक्तैः श्रियमवाप्नुयात्॥

लक्ष्मी की आकाँक्षा वाले मनुष्य को गायत्री के साथ रक्त कमल के पुष्पों से हवन करना चाहिए। इससे शोभा, पुष्टि और कीर्ति भी मिलती है।

हुत्वाः श्रियमवाप्नोति जाती पुष्पैर्नवैः शुभः। शालि तण्डुल होमेन श्रियमाप्नोति पुष्कलाम्॥

जाती के नवीन पुष्पों के हवन से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। शाली चावलों का हवन भी लक्ष्मी प्राप्त कराने वाला है।

श्रियमाप्नोति परमाँ मूलस्य सकलेरपि। समिद्भिः बिल्व वृक्षस्य पायसेन च सर्पिषा॥

बिल्व वृक्ष की जड़ की समिधाओं को खीर तथा घी के साथ हवन करने से लक्ष्मी प्राप्त होती है।

हुत्वा वेतस पत्राणि घृताक्तानि हुताशने। लक्षाधिपस्य पदवीं सार्वभौमं न संशयः॥

वेत पत्रों को घी में मिलाकर हवन करने से लक्ष्मी पति को पदवी मिलती है।

त्रिरात्रि पोषितः सम्यग् घृतं हुत्वा सहस्रशः। सहस्रं लाभमाप्नोति हुत्वाग्नौ खादिरै धनम्।

तीन रात उपवास करके अच्छी प्रकार से एक हजार घी की आहुति खादिर की समिधाओं से देने पर धन प्राप्त होता है।

पलाशैः समिधैश्चैव घृताक्तानाँ हुताशने। सहस्र लाभमाप्नोति राहु सूर्य समागमे॥

सूर्य ग्रहण के अवसर पर पलाश की समिधाएं घृत के साथ हवन करने से धन लाभ होता है।

हुत्वातु खादिरं वह्नौ घृताक्तं रक्त चन्दनम्। सहस्रं हेममाप्नोति राहुचन्द्र समागमे॥

चन्द्रग्रहण के अवसर पर खादिर तथा रक्त चंदन को घृत समेत हवन करने से धन प्राप्त होता है।

श्री कामस्तु तथापद्मै विल्वैः कंचन कामुकः।

काँचन और कामिनी की इच्छा करने वाला कमल पुष्प या बेलपत्रों के द्वारा हवन करे।

रक्तोत्पलं शतं हुत्वा सप्ताहं हेम प्राप्नुयात्।

लाल कमल के पुष्पों के हवन से धन प्राप्त होता है।

शमी विल्व पलाशानामर्कस्य तु विशेषतः। पुष्पाणाँ समिधश्चैव हुत्वा हेममवाप्नुयात्॥

शमी, बिल्व, पलाश की समिधाएं विशेषतः आक के पुष्प इनका हवन करने से धन लाभ होता है।

अरुणाब्जैस्त्रिमध्वक्तैर्जुहुयादयुतं ततः। महालक्ष्मीर्भवत्तेस्य षटमासान्न संशयः॥

लाल कमल और शहद की दस हजार आहुति देने से छः महीने में धन लाभ होता है।

अनिष्ट निवारण के लिए :-

नाना प्रकार के संकट मनुष्य जीवन में आते रहते हैं। शत्रुओं का आक्रमण, षडयंत्र, द्वेष, मुकदमा, सर्प आदि का भय, चोर, डाकू गुण्डों का आतंक, युद्ध, दैवी प्रकोप, उपद्रव, गृहकलह, विद्रोह आदि की घटनाएं मन में विक्षोभ उत्पन्न करती हैं। इन विपरीत परिस्थितियों को समाप्त करने के लिए गायत्री महामंत्र की तमोगुणी शक्ति दुर्गा का प्रयोग किया जाता है। यह शक्ति मनुष्य का आत्मिक विकास तो नहीं करती पर असुविधाओं का निवारण करने में सहायक अवश्य होती है। कई साधक ताँत्रिक वाममार्गी उपचारों से इसी दुर्गा शक्ति द्वारा दूसरों का अनिष्ट भी करते हैं पर यह उचित नहीं। अपनी धर्मयुक्त रक्षा के लिए दुर्गा शक्ति का सामयिक उपचार करना उचित है।

दुर्गा गायत्री का मन्त्र यह है :-

ॐ गिरजायै विद्महे, शिवप्रियायै धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।

इस मन्त्र का उपचार प्रयोग इस प्रकार होता है।

गायत्री चिन्तयत्तत्र दीप्तानल समप्रभाम्। घातयन्ती त्रिशूलेन केशेष्वाक्षिप्य वैरिणम्॥

एवं विधा च गायत्री जप्तव्या राज सत्तम। होतव्या च यथा शक्त्या सर्वकाम समृद्धिदा॥

प्रज्वलित अग्नि के समान आभा वाली गायत्री का चिन्तन करता हुआ ऐसा ध्यान करें कि शत्रु के केशों को पकड़ कर अपने त्रिशूल से उसका नाश कर रही है। इसी ध्यान में जप और हवन करने से शत्रुओं का नाश होता है।

गो घृतेन सहस्रेण लोध्रेण जुहुयाद्यदि। चौराग्नि मारुतोत्थानि भयानि न भवन्ति वै॥

लोध को गौ घृत के साथ एक हजार आहुति देने से चोर, अग्नि, वायु आदि के उपद्रवों का भय दूर होता है।

अश्वत्थ समिधो हुत्वा युद्धादौ जयमाप्नुयात्। अर्कस्य समिधो हुत्वा सर्वत्र विजयी भवेत्॥

पीपल की समिधाओं के हवन से युद्ध में विजय प्राप्त होती है। आक की समिधाओं से हवन करने से सर्वत्र ही विजय होती है।

सौवर्णे राजते वापि पात्र ताम्रचेऽपिवा। क्षीर वृक्ष मयं वापि निवृणे मृन्मयेऽपिवा।

सहस्रं पंच गव्येन हुत्वा सुज्वलितेऽनिले। क्षीर वृक्ष मयैः काष्ठैः शेषं सम्पादयेत्छनैः।

अभिचार समुत्पन्ना कृत्या पापं च नश्यति॥

सुवर्ण, चाँदी, ताँबा के बने अथवा दूध वाले वृक्षों की लकड़ी से बने पात्र में पंचगव्य रखकर दुग्ध वाले वृक्षों की लकड़ियों से हवन करें। इस प्रकार अभिचार द्वारा उत्पन्न कृत्या (मारण प्रयोग की घात) शान्त होती है।

एवं यः कुरुते राजा लक्ष होमं यत व्रतः। न तस्य शत्रवः संख्ये अग्ने तिष्ठन्ति कर्हिचित्॥

जो व्रत पूर्वक गायत्री के एक लक्ष होम करता है उसके शत्रु युद्ध भूमि में उसके आगे कदापि नहीं ठहरते।

धत्तूर विष वृक्षाक्ष भूरुहोत्थान्समिद्वरान। राजी तैलेन संलिप्तान् प्रयक्सप्त सहस्रकम्। जुहूयात् संयतो मन्यी रिपुर्यमपुरं व्रजेत्॥

धतूरा, कुचिला तथा सरसों के तेल से युक्त समिधाओं से प्रथम सात हजार आहुति जितेन्द्रिय होकर दे तो शत्रु यमपुर को पहुँच जाता है।

सप्तरात्रं प्रजुहुयात् सिद्धार्थ स्नेह लोलितैः। आर्द्रवस्त्रो विष्टि काले मरीचैर्मनुनामुना।

निगृह्यते ज्वरेणारि प्रलयाग्नि समेन सः।

सात रात तक सरसों के तेल से युक्त मिर्चों द्वारा हवन करें। गीला वस्त्र धारण करके वर्षा काल में यह प्रयोग करें ऐसा करने से शत्रु को प्रलयाग्नि सदृश्य ज्वर हो जाता है।

अर्धरात्रिषु बलिं चरुणा सर्व सिद्धिदा। कृत्या रोग भय द्रोह भूतादिन्नात्र संशयः॥

आधी रात्रि में चरु बना कर सिद्धिदायक बलि प्रदान करे ऐसा करने से रोग, भय, द्रोह, तथा भूत आदि का भय नहीं रहता।

दुर्गा का आधार लेकर ही दूसरों को हानि पहुँचाने वाले ताँत्रिक हवन किये जाते हैं। ऐसे प्रयोगों से कर्ता का भी कालान्तर में अनिष्ट ही होता है। इसलिए ऐसे प्रयोगों के सम्बन्ध में उपेक्षा करना ही उचित है।

शमी समिद्भिः शाम्यति भूत रोग ग्रहादयः।

शमी की समिधाओं से हवन करने पर भूत रोग एवं ग्रहादि की शान्ति होती है।

आर्द्राभिः क्षीर वृक्षस्य समद्भिः जुहुयात् द्विजः। जुहुयाच्छकलैर्वापि भूत रोगादि शान्तये॥

दूध वाले वृक्षों की गीली समिधाओं से हवन करने पर बुरी ग्रह दशा की शान्ति होती है। भूत रोग आदि की शान्ति के लिये सम्पूर्ण प्रकार की समिधाओं से हवन करना चाहिये।

अभिमन्त्रय शतं भस्मन्मसद् भूतादि शान्तये। शिरसा धारयेद् भस्म मन्त्रयित्वा तदित्यृचा॥

हवन की भस्म को गायत्री मन्त्र से अभिमंत्रित करके लगाने से भूत प्रेत की शान्ति होती है।

भूत, प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस आदि के उपद्रवों से ग्रस्त रोगियों के लिए दुर्गा गायत्री का प्रयोग करने से रोगी का उन दुष्टों से सरलता पूर्वक पीछा छूट जाता है।

इन पंक्तियों में कुछ थोड़े से ही प्रयोग वर्णित हैं। इनके अतिरिक्त गायत्री महामन्त्र एवं उसके अंतर्गत 24 गायत्रियों के प्रयोग द्वारा अनेकों प्रकार के हवन होते हैं। वेदमन्त्रों एवं ताँत्रिक कौल मन्त्रों के द्वारा विस्तृत विधान वाले स्वतन्त्र यज्ञ इनसे पृथक हैं। इन उपरोक्त प्रयोगों में दूध वाले वृक्षों की समिधाओं तथा मधुत्रय (दूध, दही, घृत) की आहुतियों का प्रयोग प्रायः सभी प्रयोजनों में बार-बार आता है। इससे कुछ भ्रम में पड़ने की आवश्यकता नहीं है। इनमें उन वस्तुओं के लाने, परिमार्जित करने, प्राणवान् बनाने की विधियाँ पृथक हैं, जिस विधि से इन वस्तुओं को प्रयुक्त किया जाता है वह वैसे ही गुण वाली बन जाती है। पानी में जैसा रंग डाला जाय वह उसी रंग का हो जाता है। उसी प्रकार यह वस्तुएं यद्यपि साधारण हैं और विविध प्रयोगों में आती हैं। इनको जिस विधि से प्रयुक्त किया जाता है तदनुसार ही उनकी शक्ति और सामर्थ्य बनती एवं बढ़ती घटती है।


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