बिहार प्रान्त में एक किसान था। उसने अपने एक खेत पर आम का बगीचा लगाया। उसकी घनी छाया में गाँव में लोग दुपहरी बिताने के लिए आते। चटनी के लिए कच्चे आम तोड़ ले जाते। पक्षियों के अनेक घोंसले थे। बहुत सुरम्य लगता था वह स्थान।
किसान का नाम हजारी था। बच्चे बड़े हो गये थे। वे खेती बाड़ी सँभालने लगे थे। हजारी ने निश्चय किया कि वह शेष जीवन इर्द-गिर्द के इलाके में आम के बगीचे लगवाते रहने में लगाएगा। गाँव गाँव गया। बगीचा लगाने का महत्व बताया। उसके लिए जो तैयार हुए उनके यहाँ अच्छी पौध देने में सहायता की। देख भाल भी वह करता रहा। उसके प्रयत्न से लोगों की रुचि बढ़ी और देखते-देखते सैकड़ों गाँवों में आम्र उद्यान लगाने की होड़ चल पड़ी।
इस इलाके में प्रायः एक हजार बगीचे लग गये। इसके साथ हजारी किसान का पुरुषार्थ भी जुड़ा हुआ था। इसलिए उस क्षेत्र का नाम हजारी बाग पड़ा। इस नाम का एक जिला अभी भी बिहार प्रान्त में है। यह नाम सदा उस पुण्य प्रयास की यह कथा कहता रहता है।
*समाप्त*