अनुसंधान आत्मसत्ता का भी हो

July 1991

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पदार्थ सामान्यतया एक नियम व्यवस्था के अनुसार काम करते हैं। अणु-परमाणुओं से लेकर ब्रह्माण्ड के तारों, ग्रह-गोलकों, मण्डलों तक पर प्रकृति के कुछ नियम-अनुशासन नियंत्रण करते हैं और तदनुरूप ही सृष्टि का सारा क्रम चलता है। किन्तु चेतना का प्रकृति पर भी आधिपत्य है और वह अपने आकर्षण तथा दबाव से प्रकृति नियमों में भी हेर फेर कर सकती है। मानवी चेतन सत्ता में ईश्वर का अविनाशी अंश होने के कारण अनन्त संभावनायें विद्यमान है। यदि उन्हें खोजने, जगाने और विकसित करने का प्रयत्न किया जाय तो प्रकृति के वैज्ञानिक अनुसंधानों से अब तक जितना मिल सका है, उसकी तुलना में चेतना क्षेत्र की खोजबीन से सहस्रों गुना अधिक उपलब्धियाँ करतलगत की जा सकती है।

चेतनात्मक विकास परिष्कार के लिए ही साधना, उपासना एवं तप-तितिक्षा के विविध सोपानों का सृजन प्राचीन ऋषि-मनीषियों ने किया था और स्वयं अपनी कायिक प्रयोगशाला में अनेकानेक शक्तियों, क्षमताओं, दिव्य विभूतियों को उद्भूत किया था। पंच भौतिक काया तो माध्यम मात्र है। उसकी समस्त हलचलों के पीछे प्राणचेतना सक्रिय रहती है। निखिल ब्रह्माण्ड में संव्याप्त समष्टिगत प्राण चेतना के लहलहाते महासागर में से आकर्षित अवधारित करके साधक अपनी प्राण ऊर्जा को विकसित करता हुआ क्रमशः प्रगति पथ पर बढ़ता जाता है। दूरदर्शन, दिव्य दर्शन, दूर श्रवण, आकाश गमन, परकाया प्रवेश जैसी अतीन्द्रिय क्षमताएँ पराशक्तियाँ प्राणोत्थान की देन है। इस प्रकार की चेतनात्मक विलक्षणताएँ कई बार मनुष्य में अनायास ही उभर कर ऊपर आती देखी गई हैं, उन्हें जगाकर भी प्रकट एवं परिपक्व किया जा सकता है।

सुविख्यात सन्त आँगस्टाइन ने जीवन स्मृति नामक अपनी पुस्तक में इस तरह की कितनी ही घटनाओं का उल्लेख किया है, जो यह सिद्ध करती हैं कि मानवी अन्तराल विभूतियों का भाण्डागार है। सेण्ट मणिका नामक सिद्ध साधिका का उल्लेख करते हुए वे लिखते हैं कि वह प्रार्थना के समय लगभग तीन फुट ऊपर आकाश में अवस्थित हो जाती थी। ऐसा लगता था कि उसके शरीर पर गुरुत्वाकर्षण का कोई प्रभाव नहीं है। उसका शरीर वायु में तैरता दिखाई पड़ता था।

सेण्ट फ्राँसिस-पाओला रात्रि के समय प्रार्थना करते हुए आकाश में उठ जाते थे। एक बार नेपल्स के राजा ने उनको आमंत्रित किया। जिस कक्ष में निवास की व्यवस्था थी, उसके दरवाजे में एक छिद्र था। रात्रि को नरेश ने देखा कि संत फ्राँसिस प्रार्थना कर रहे हैं तथा एक विशाल प्रकाशपुँज उनको घेरे हुए है। मेज से कई फुट ऊँचा उनका शरीर शून्य में बिना किसी सहारे के अवस्थित था। एक अन्य घटना पांचवीं शताब्दी की है। स्पेन की सेण्ट टेरेसा, जिसकी तुलना भारतीय मीरा से की जाती है, उनके विषय में भी इसी प्रकार का उल्लेख मिलता है। स्थानीय विशप आलपेरेस डे मोनडोसा एक बार उनसे मिलने गये। वे यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि टेरेसा का शरीर जंगले से ऊपर शून्य में स्थित है।

विशप सेण्ट आर. के विषय में भी उल्लेख मिलता है कि गिरिजाघर बन्द हो जाने के बाद भी वे किसी अलौकिक शक्ति द्वारा पहरेदारों की उपस्थिति में भी भीतर पहुँच जाते तथा सारी रात जागकर प्रार्थना करते रहते। प्रार्थना की अवधि में सम्पूर्ण गिरिजाघर एक दिव्य आलोक से आलोकित रहता था। इसी तरह प्रख्यात दार्शनिक जाम ब्लिपास साधना के समय पृथ्वी से दस फुट ऊपर उठ जाते थे। उस समय उनके शरीर एवं वस्त्रों से सुनहरी चमकीली ज्योति निकलती दिखाई देती थी। उनका शरीर वायु में विचरण करता रहता था। टियाना निवासी योगी एपोलोनियस में भी आकाशगमन की शक्ति थी।

भारतीय योगियों में तो इस प्रकार की अलौकिक घटनाओं के अनेकों उदाहरण मिलते है। शंकराचार्य द्वारा एक राजा के मृत शरीर में परकाया प्रवेश की घटना विख्यात है। उनको तथा मुनि गोरखनाथ को आकाशगमन की सिद्धि प्राप्त थी। महर्षि दयानन्द सरस्वती को कितनी बार नदी के ऊपर आसन लगाकर ध्यान करते हुए लोगों ने देखा था। स्वामी रामतीर्थ एवं रामकृष्ण परमहंस की घटनाएँ सर्व विदित हैं, काठियाबाबा, विशुद्धानन्द जैसे योगियों के जीवन वृत्तान्त में भी इस प्रकार की घटनाएँ देखने को मिलती हैं। पं गोपीनाथ कविराज ने स्वसम्पादित कृति- “विशुद्ध वाणी” में स्वामी विशुद्धानंद की असाधारण सिद्धियों एवं सूर्य विज्ञान का सविस्तार वर्णन किया है। आकाशगमन की सिद्धियों का वर्णन करते हुए उनने लिखा है कि आवश्यकता पड़ने पर वे वाराणसी स्थित अपने आश्रम से हिमालय की दुर्गम पर्वत उपत्यिकाओं के मध्य बसे ज्ञानगंज योगाश्रम में आकाश मार्ग से हवा में उड़ते हुए पहुँच जाया करते थे।

काशी के महान संत तैलंग स्वामी योग विभूतियों के सम्राट थे। रामकृष्ण परमहंस ने अपने काशी प्रवास के समय उनसे मिलने के पश्चात कहा था कि वे साक्षात विश्वेश्वर हैं। विश्वनाथ भगवान शिव की समस्त विभूतियाँ उनके शरीर का आश्रय ग्रहण कर प्रकट हो चुकी हैं। उनके लिये कुछ भी असंभव नहीं था इसी तरह का वर्णन ताप्ती तट पर तपस्यारत दीर्घायुष्य योगी चाँगदेव के सम्बन्ध में भी ग्रन्थों में मिलता है। अपनी आत्मचेतना का विकास करके उनने हिंसक प्राणियों तक को वशवर्ती बना लिया था। इसका उन्हें गर्व भी था, एक बार जब उन्हें महाराष्ट्र के संत ज्ञानेश्वर की योग क्षमताओं एवं ख्याति का पता चला तो वे सिंह पर सवार होकर उनसे मिलने चल दिये। अभी वह आलिंदी के समीप पहुँचे ही थे कि ज्ञानेश्वर को उनके उद्देश्य का पता चल गया। उनने उस विचित्र योगी के गर्व को दूर करना ही उचित समझा। प्राकृतिक शक्तियों एवं जड़ पदार्थों पर उनका पूर्ण आधिपत्य तो था ही अतः जिस दीवार पर बैठकर अपने भाई और बहिन के साथ ज्ञान चर्चा में संलग्न थे, उसे ही चलने का आदेश दे दिया। सम्पूर्ण दीवार सहित तीनों संतों को अपनी ओर आते देख चाँगदेव का अहं विगलित हो गया और वे उनके चरणों में नतमस्तक हो गये।

मनीषी दाराशिकोह ने सुप्रसिद्ध सूफी संतों, औलियों के जीवन वृत्तांत में मियाँ मीर का उल्लेख किया है। इसके अध्ययन से पता चलता है उनमें दिव्य क्षमताएँ विकसित थीं। वे आवश्यकतानुसार कभी-कभी लाहौर से आकाश मार्ग द्वारा ‘हिजाद’ जाते थे। रात्रि व्यतीत करके पुनः सूर्योदय के पूर्व लाहौर वापस लौट आते थे। शेख अब्दुल कादिर नामक सिद्ध साधक उपासना करते एवं व्याख्यान देते समय भूमि जल से ऊपर शून्य में उठ जाते थे। उपस्थित हजारों व्यक्तियों ने इस घटना को देखा था।

पाश्चात्य जगत में इंग्लैण्ड निवासी डेनियल डगलस होम की गणना चमत्कारी व्यक्तियों में प्रमुख रूप से की जाती है। उनकी क्षमताओं में अधिकांश करिश्मे-उनका प्रकाश से घिरे रहना, इशारे मात्र से कमरे की वस्तुओं, कुर्सी-मेज आदि का अपने आप हवा में उड़ने लगना, वाद्य यंत्रों का बजने लगना, छत से सुगंधित पुष्पों की बौछार का होने लगना एवं स्वयं का हवा में ऊपर उठने और तैरने लगना आदि सम्मिलित थे। हार्टफोर्ड के मूर्धन्य संपादक एफ. एल. बर एवं वार्ड चेनी ने होम की क्षमताओं को जाँचने परखने पर सही पाया था। न्यूयार्क के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिकों का एक प्रतिनिधिमंडल जिनमें डॉ. जार्जबुश,


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