भेड़िया दुष्ट स्वभाव का था। भलमनसाहत उसे आती ही न थी। वह सभी साथियों से बैर भाव रखता था।
एक दिन भेड़िये के गले में किसी जानवर की हड्डी अटक गई। दम घुटने लगा। प्राण निकलने लगे तो दौड़कर सारस के पास पहुँचा और बोला। तुम्हारे लिए जीवन भर अहसान करता रहूँगा। तुम अपनी लंबी चोंच से मेरे गले में फँसी हुई हड्डी निकाल दो।
सारस को दया आ गई उसने वैसा ही किया हड्डी निकाल दी।
बहुत दिन बाद सारस को कुछ काम पड़ा। वह सहायता के लिए भेड़िये के पास गया और पिछले अहसान की याद दिलाई।
भेड़िये ने कहा तुम्हारी गरदन मेरे मुँह में जाने के बाद भी साबुत निकल आई वही अहसान भी क्या कम था? सारस ने अपने परिवार के लोगों को बुलाकर समझाया कि दुष्ट की सहायता करके उससे किसी प्रकार के सद्व्यवहार की आशा नहीं करनी चाहिए।
एक पक्षीय कटुता या टकराहट टिकती नहीं। आग को ईंधन न मिले तो उसे देर सबेर में बुझ ही जाना पड़ेगा। सम्बन्धित लोगों में से सभी को सज्जन बनाना कठिन है। उनकी दुर्बुद्धि और दुष्प्रवृत्ति बनी भी रह सकती है, किन्तु यदि अपना पक्ष शालीनता से भर लिया गया है तो टकराने की संभावना कहीं अधिक घट जाती है। पैरों में जूते पहन लेने पर काँटे चुभने की संभावना चली जाती है। अपने निजी व्यक्तित्व को हमें इतना शालीन, प्रामाणिक एवं प्रखर बनाना चाहिए कि अन्यान्यों के दोष, दुर्गुणों को निरखने, परखने, सुलटाने एवं सुधारने की आवश्यकता स्वयंमेव पूरी होती चले।