युग-निर्माण का- मानव-समाज के भावनात्मक परिवर्तन का मूल आधार- दृश्य जगत नहीं वरन् सूक्ष्म आकाश एवं मानवीय अंतःकरण का गुह्य स्तर है। उसे प्रभावित परिष्कृत न किया जाय तो बाह्य हलचल पानी के बबूले की तरह थोड़े समय तक अपना क्रिया-कलाप गतिशील रख कर ठंडी हो जायेगी।
स्थिर प्रत्यावर्तन आध्यात्मिक आधार पर ही संभव है। समाज-सुधार जैसी हलचलें आंदोलनों द्वारा संपन्न हो सकती है, पर व्यक्ति की आस्था, निष्ठा, मान्यता, आकांक्षा और भावना का अंतरंग गुह्य स्तर छूने और बदलने का कार्य आध्यात्मिक प्रक्रिया अपना कर ही संभव किया जा सकता है। इस दिशा में भी अपने प्रयत्न समानांतर चल रहे हैं। काम करने वाले के हाथ-पांव वजन उठाने लायक और नाव चलाने लायक मजबूत हों, उसके लिए प्रारंभ में ही 24-24 लक्ष के 24 गायत्री महापुरश्चरण करने पड़े। इसके पश्चात गायत्री उपासना का व्यापक प्रसार किया गया और सुसंगठित यज्ञ आंदोलन को जन्म दिया गया है। शतकुंडी और सहस्र कुंडी यज्ञ मथुरा में हुए। देश भर में उनकी श्रृंखला विस्तृत की गई। यह समस्त आध्यात्मिक कार्यक्रम सूक्ष्म अंतरिक्ष को निर्मल बनाने और जन-मानस के गुह्य अंतरंग को परिष्कृत करने के लिये ही चले हैं। निस्संदेह ऐसी साधनात्मक प्रवृत्तियां ही चेतन मानव-प्राणी की चेतना को परिवर्तित और परिष्कृत करने में समर्थ होती हैं। जानने वाले जानते हैं कि इनका प्रभाव परिणाम आशातीत एवं आश्चर्यजनक ही हुआ है।
अब गत बसंत-पंचमी से एक महत्तम सामूहिक महापुरश्चरण जन-मानस में अध्यात्म-चेतना जागृत करने के लिए- युग परिवर्तन की पुण्य प्रक्रिया सफलतापूर्वक संपन्न करने के लिए- आरंभ किया गया है। यह धर्मानुष्ठान इस युग का अनुपम एवं अभूतपूर्व है। नित्य चौबीस लक्ष जप गायत्री महापुरश्चरण बहुत बड़ी बात है, लाखों-करोड़ों मनुष्यों में से कोई एक बड़ी कठिनाई से इसे पूरा कर पाता है, किंतु जो कर लेता है वह धन्य हो जाता है। 24 लक्ष महापुरश्चरण की उपलब्धियां कितनी महान हैं- इससे क्या कुछ मिलता है, इसे सर्वसाधारण को समझाना कठिन है। इसे वे ही जान सकते हैं, जिन्होंने इस मार्ग में गहराई से प्रवेश करके स्वयं कुछ अनुभव प्राप्त किया है। निस्संदेह 24 लक्ष गायत्री महापुरश्चरण बहुत बड़ी बात है। यदि कोई उसे विधिवत् और समग्र तपश्चर्याओं के साथ सम्पन्न कर सके तो धन्य जीवन होकर ही रहता है। ऐसा महापुरश्चरण जो जीवन में एक बार भी कठिनाई से हो पाता है। हर दिन सम्पन्न होता रहे तो उसके द्वारा बड़े से बड़े परिणामों की ही आशा की जा सकती है।
सूक्ष्म अन्तरिक्ष को- विश्व-मानव की अन्त चेतना को- परिष्कृत करने के लिए जिस महत्तम गायत्री महापुरश्चरण का शुभारंभ किया गया है, उसकी संक्षिप्त चर्चा गत दो अंकों में की जा चुकी है। इस महान जप-यज्ञ में 24000 भागीदार होंगे। हर भागीदार को एक माला गायत्री महामंत्र का जप तथा एक सत्संकल्प का पाठ युग परिवर्तन की पुण्य प्रक्रिया सम्पन्न करने के लिये करना होगा। आत्म-कल्याण की एक माला इसके अतिरिक्त उसके साथ एक गायत्री चालीसा पाठ भी जुड़ा हुआ है। इस प्रकार हर भागीदार को दो मालायें जपनी होंगी और दो पाठ हर दिन करने होंगे। इस प्रकार हर दिन 24 लक्ष जप का एक महापुरश्चरण 24 हजार संकल्प पाठ और 24 हजार गायत्री चालीसा पाठ हम लोग हर दिन सम्पन्न किया करेंगे। अन्तरिक्ष में एक विशिष्ट वातावरण विनिर्मित करने की दृष्टि से इस सामूहिक साधना का अतिशय प्रभावशाली परिणाम प्रस्तुत होगा।
यह पुरश्चरण दस वर्ष के लिये हैं। बसन्त-पंचमी संवत् 2024 (3 फरवरी 68) को इसका आरंभ हुआ। दस वर्ष बाद इसी दिन इसकी पूर्णाहुति हो जायेगी। कहना न होगा कि आगामी दस वर्ष विश्व-संकट की दृष्टि में बहुत ही कंटकाकीर्ण है। इनमें अगणित प्रकार की आपत्तियों की आशंकाएं पग-पग पर भरी पड़ी हैं। हमारा विश्वास है कि इस महत्तम पुरश्चरण की शक्ति से उसे बहुत हद तक- तीन चौथाई कम किया जा सकेगा।
यह ‘न्यूनतम साधना अंक’ इसीलिये प्रस्तुत किया गया है। इसमें एक सुव्यवस्थित सरल साधना पद्धति है। हम चाहते हैं कि परिवार का हर सदस्य इसे अपनाये। दैनिक उपासना के लिए हर कोई थोड़ा समय लगाये। दैनिक साधना में हर किसी को निष्ठा हो। इस प्रक्रिया के अंतर्गत ही महत्तम गायत्री महापुरश्चरण की भागीदारी भी सम्मिलित है। एक माला अपने लिए, एक विश्व-कल्याण के लिए करने से सहज ही उस महापुरश्चरण का भागीदार बना जा सकता है। अपने परिवार के- संपर्क के लोगों को भी इस साधना क्रम में सम्मिलित होने की प्रेरणा देनी चाहिये।
मथुरा केन्द्र के साथ जो लोग कभी- किसी रूप में संबंधित रहे हैं, उन्हें भी यह संदेश पहुँचाना चाहिये ताकि प्रस्तुत महापुरश्चरण की पूर्ति हो सके। यों अब तक लगभग 24 लाख व्यक्तियों को गायत्री की शिक्षा-दीक्षा दी गई है पर हम चाहते हैं कि अन्त में उनमें से 24 हजार व्यक्ति निष्ठावान अवश्य रह जांय। ऐसे निष्ठावानों की परख प्रस्तुत महापुरश्चरण की भागीदारी के रूप में ही करेंगे।
तीन वर्ष बाद हमारी भावी तपश्चर्या का क्रम आरंभ होगा। वह अपने निज के लिये मुक्ति या सिद्धि प्राप्त करने के लिये नहीं- वरन् भावनाशील, संस्कारवान आत्माओं को महापुरुष बना सके उतना साहस और बल प्रदान करने के लिये होगा। उसका लाभ किन्हें मिले? इसकी परख पात्रता की परीक्षा पर ही निर्भर रहेगी। यह परख करने के लिए एक छोटी कसौटी प्रस्तुत महापुरश्चरण की भागीदारी को निर्धारित किया गया है। अपने परिवार में अब परखे हुए निष्ठावान लोगों को ही रहना और रखा जाना है। इसलिये भी यह कसौटी एक चुनौती के रूप में प्रस्तुत की गई है कि जो हमें श्रद्धास्पद मानते हैं, वे हमारा मार्गदर्शन भी ग्रहण करें।
यह छोटी साधना जो निष्ठापूर्वक अविचल भाव से चला सकेंगे, वे आगे की उच्च साधनाओं के अधिकारी माने जायेंगे, उन्हें हमारे संचित ज्ञान और अनुभव का ही नहीं अनुदान एवं सहयोग का भी लाभ मिलेगा। हम जहाँ कहीं भी रहेंगे उन्हें आवश्यक प्रकाश प्रदान करेंगे और इसके लिये शक्ति भर प्रयत्न करेंगे कि वे अध्यात्म की उच्च भूमिका में प्रवेश करने का आनन्द लाभ करें। ऊंची उपासनाओं के विधान बता देने से किसी का कुछ प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकता। पंच-कोषों का अनावरण, षट्चक्र वेधन, कुंडलिनी जागरण आदि की क्रिया-प्रक्रियायें विस्तारपूर्वक बताई, समझाई जा सकती हैं, पर इतने मात्र से किसी को कोई लाभ न होगा। उस मार्ग पर चलने के लिए शक्ति प्राप्त करना यह सबसे बड़ा काम है। और पूरा कराने में सहायक कोई अनुभवी गुरु ही हो सकता है। और वह इस प्रकार की सहायता देने के लिए किसी के बातूनीपन से नहीं वरन् उसकी निष्ठा से ही प्रभावित होता है। सर्व शक्तिमान गायत्री के मर्म और रहस्य तक पहुँचने की क्षमता जिस आधार पर उपलब्ध हो सकती है। उसका प्रथम सोपान अपनी यह न्यूनतम उपासना पद्धति होती है, जिसमें महत्तम गायत्री महापुरश्चरण की भागीदारी जुड़ी हुई है।
प्रतिदिन 24 लक्ष गायत्री महापुरश्चरण सम्पन्न करने के महान धर्मानुष्ठान में सम्मिलित होने वालों की गतिविधियों पर आवश्यक देख-भाल और जाँच पड़ताल रखी जा सके, इसके लिए उन भागीदारों के पीछे एक ऋत्विज की नियुक्ति की जा रही है। आरंभ में पाँच भागीदारों की देख-भाल करने वाले भी ऋत्विज ही माने जायेंगे, पीछे उन्हें प्रयत्न करके अपने निरीक्षण क्षेत्र में दस साधक सम्मिलित कर लेने चाहिये। यह नियंत्रण क्रम इसलिये रखा गया है कि निर्धारित संख्या में कोई गड़बड़ी न होने पावे। कई व्यक्ति उत्साह में आरंभ तो कर देते हैं पर पीछे शिथिलता अथवा किसी अड़चन के कारण उसे छोड़ बैठते हैं और इसकी सूचना भी नहीं देते। ऐसी दशा में हम यह सोचते रहें कि अनुष्ठान की निर्धारित संख्या पूरी हो रही होगी तो पुरश्चरण खंडित एवं अधूरा ही रह जायेगा। ऐसा न होने पावे इसलिए ‘ऋत्विजों’ को पाँच या दस साधकों की देख-भाल रखने और यदि वे न करें तो उनके बदले का जप स्वयं करने का- उत्तरदायित्व सौंपा गया है। जहाँ कहीं भी यह भागीदारी आरंभ हो वहाँ ऋत्विजों की नियुक्ति भी अनिवार्य होनी चाहिये। जहाँ कई व्यक्ति नहीं हैं- केवल एक ही है- वहाँ भी उस साधक को भागीदार तथा ऋत्विज दोनों का कर्त्तव्य निबाहना होगा।
इस अंक में एक छपा ‘ऋत्विज् फार्म’ लगाया गया है। से भर का ‘ऋत्विज’ लोग मथुरा भेजें। अब साधारण भागीदारों से छपे प्रतिज्ञा-पत्र भरने की आवश्यकता अनुभव नहीं की गई। कितने लोग छपे फार्मों को एक कौतूहल समझ कर दूसरों की देखा-देखी भर देते हैं और पीछे उस प्रतिज्ञा का स्मरण नहीं रखते। इसलिये अब की बार हाथ से लिखे प्रतिज्ञा-पत्र उचित समझे गये हैं। इससे कागज छपाई डाक खर्च आदि का व्यर्थ का झंझट भी बचता है। जो नैष्ठिक साधक इस महापुरश्चरण में भागीदार बनें, वे अपने ऋत्विज को इस आशय का प्रतिज्ञा-पत्र अपने हाथ से लिख कर दे दें।
‘अ.भा. गायत्री परिवार मथुरा द्वारा संचालित महत्तम गायत्री महापुरश्चरण का मैं भागीदार बनता हूँ प्रतिदिन गायत्री महामंत्र की एक माला आत्म-कल्याण के लिए और एक माला युग-निर्माण के लिए करता रहूंगा। उपासना एवं साधना का निर्धारित क्रम अपनाये रहूँगा। यदि साधना बंद या स्थगित रखूँगा तो उसकी सूचना अपने ऋत्विज को तथा मथुरा केन्द्र को दे दूँगा।’
हस्ताक्षर--------------------
पूरा पता--------------------
जन्म तिथि-------------------
इन लिखित प्रतिज्ञा-पत्रों को मथुरा भेज देना चाहिये। ऋत्विज अपने फार्म में इन सब के पते लिख दें।
प्रतिज्ञा-पत्र भरने और ऋत्विज फार्म भेजने का कार्य गायत्री जयन्ती (ज्येष्ठ सुदी 10, दिनाँक 6 जून 1968) तक पूरा कर लेना चाहिये। गुरु-पूर्णिमा को इन सबके स्वीकृति-पत्र भेज दिये जायेंगे। प्रत्येक परिजन को इसमें अपना योगदान देना ही चाहिये।