पूजा पद्धति और उसके मंत्र

April 1968

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ब्रह्म संध्या-शुद्धिकरण

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यान्तरः शुचिः॥

आचमन

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा॥1॥ ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा॥2॥ ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा॥3॥

शिखा-बंधन

ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते। तिष्ठ देवि शिखा मध्ये तेजोवृद्धि कुरुष्व मे।

प्राणायाम

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वः।

न्यास

ॐ वांग् में आस्येऽस्तु। मुख को। ॐ नसोर्मेप्राणोऽस्तु। नासिका के दोनों छिद्रों को ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु। दोनों नेत्रों को। ॐ कर्णयोर्मे क्षोत्रमस्तु। दोनों कानों को। ॐ वाह् बोर्मे बलमस्तु। दोनों बाहों को। ॐ ऊर्वोर्मेऽओजोस्तु। दोनों जंघाओं को। ॐ अरिष्टानिमेऽंगानि तनूस्तन्वा में सह सन्तु। इससे सब शरीर पर जल छिड़कें।

पृथ्वी पूजन

ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्।

पूजा पद्धति

आवाहन

आयातु वरदे देवि अक्षरे ब्रह्मवादिनो। गायत्रिच्छन्दसां माता ब्रह्मयोनिर्नमोस्तुते॥

आसन

रम्यसुशोभनं दिव्य सर्वसौख्यकरं शुभम्। आसन च मयादत्त गृहाण परमेश्वरि॥

स्नान

गंगा सरस्वती रेवापयोष्णी नर्मदा जलैः। स्नापितासि मया देवि तथा शाँति कुरुष्व मे॥

गंध

श्रीखंडं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥

पुष्प

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वे प्रभो। मया नीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वरि॥

धूप

वनस्पति रसोद्भूतो गंधढ्यो गंध उत्तमः। आघ्रेयः सर्वदेवनां धूपोऽयं प्रति गृह्यताम्॥

दीप

आज्यं च वर्ति संयुक्तं वह्निना योजितं मया। दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्य तिमिरापहे॥

नैवेद्य

शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादु चोत्तमम्। उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्॥

आचमन

सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलम्। आचभ्यताँ मया दत्तं गृहित्वा परमेश्वरि॥

अक्षत

अक्षताश्च महादेवि कुँकुमाक्ताः सुशोभिताः। मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि॥

आरती

कदली गर्भसम्भूतं कपूरं च प्रदीपितम्। आरात्रिकमहं कुर्वेपश्च में परदाभव॥

प्रदक्षिणा

यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणा पदे पदे॥

विसर्जन

उत्तमे शिखरे जाता भूम्यां पर्वतमूर्धनि। ब्राह्मणेभ्योऽभ्यनुज्ञाता गच्छ देवि यथा सुखम्॥

अर्घ्यदान

ॐ सूर्य सहस्रांशो तेजो राशे जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर॥

यदि उपरोक्त मंत्र याद हो सकें तो इनसे ब्रह्म संध्या और पूजा प्रक्रिया सम्पन्न करने में सुविधा रहेगी। यदि उन्हें याद करना कठिन हो तो सारे कार्य केवल गायत्री मंत्र से भी किये जा सकते हैं।


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