नित्य के दो पाठ - श्री गायत्री चालीसा

April 1968

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दोहा- ह्रीं, श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड। शाँति, क्राँति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखंड॥ जगत जननि, मंगल करनी, गायत्री सुखधाम। प्रणवो सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम॥

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी। गायत्री नित कलिमल दहनी॥ अक्षर चौबीस परम पुनीता। इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता॥ शाश्वत सतोगुणी सत रूपा। सत्य सनातन सुधा अनूपा॥ हंसारूढ़ सितंबर धारी। स्वर्ण काँति शुचि गगन बिहारी॥ पुस्तक, पुष्प कमण्डल माला। शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला॥ ध्यान धरत पुलकित हिय होई। सुख उपजत, दुःख-दुरमति खोई॥ कामधेनु तुम सुर तरु छाया। निराकार की अद्भुत माया॥ तुम्हरी शरण गहै जो कोई। तरै सकल संकट सों सोई॥ सरस्वती लक्ष्मी तुम काली। दिपै तुम्हारी ज्योति निराली॥ तुम्हारी महिमा पार न पावें। जो शायद शत मुख गुण गावें॥ चार वेद की मातु पुनीता। तुम ब्रह्माणी गौरी सीता॥ महामंत्र जितने जग माहीं। कोऊ गायत्री सम नाहीं॥ सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै। आलस पाप अविद्या नासै॥ सृष्टि बीज जग जननि भवानी। कालरात्रि वरदा कल्याणी॥ ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते। तुम सों पावें सुरता तेते॥ तुम भक्तन की, भक्त तुम्हारे। जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे॥ महिमा अपरम्परा तुम्हारी। जय जय जय त्रिपदा भय हारी॥ पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना। तुम सम अधिक न जग में आना॥ तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा। तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेशा॥ जानत तुमहिं तुमहिं ह्वै जाई। पारस परसि कुधातु सुहाई॥ तुम्हारी शक्ति दिपै सब ठाईं। माता तुम सब ठौर समाईं॥ ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे। सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे॥ सकल सृष्टि की प्राण विधाता। पालक पोषक नाशक त्राता॥ मातेश्वरी दया व्रत धारी। तुम सन तरे पातकी भारी॥ जापर कृपा तुम्हारी होई। तापर कृपा करें सब कोई॥ मन्द बुद्धि ते बुधि बल पावें। रोगी रोग रहित ह्वै जावें॥ दारिद मिटै कटै सब पीरा। नाशै दुःख हरै भव भीरा॥ गृह क्लेश चित चिन्ता भारी। नासै गायत्री भय हारी॥ सन्तति हीन सुसन्तति पावें। सुख सम्पत्ति युत मोद मनावें॥ भूत पिशाच सबै भय खावें। यम के दूत निकट नहिं आवें॥ जो सधवा सुमिरें चित लाई। अछत सुहाग सदा सुखदाई॥ घर वर सुखप्रद लहैं कुमारी। विधवा रहें सत्य व्रत धारी॥ जयति जयति जगदंब भवानी। तुम सम और दयालु न दानी॥ जो सद्गुरु सों दीक्षा पावें। सो साधन को सफल बनावें॥ सुमिरन करें सुरुचि बड़िभागी। लहैं मनोरथ गृही विरागी॥ अष्ट सिद्धि नव निधि की दाता। सब समर्थ गायत्री माता॥ ऋषि मुनि यती, तपस्वी जोगी। आरत, अर्थी, चिन्तित, भोगी॥ जो जो शरण तुम्हारी आवें। सो सो मन वाँछित फल पावें॥ बल बुधि विद्या शील स्वभाऊ। धन वैभव यश तेज उछाऊ॥ सकल बढ़े उपजें सुख नाना। जो यह पाठ करै धरि ध्याना॥

दोहा- यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करे जो कोय। तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय॥


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