वाल्मीकि रामायण से प्रगतिशील प्रेरणा

संदर्भ और प्राक्कथन

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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन से प्रेरणा लेकर संस्कृत तथा हिन्दी के अनेक कवियों ने उनके चरित्र का गान अपनी-अपनी शैली में किया है। उनमें हिन्दी में संत तुलसीदास कृत ‘‘रामचरित मानस’’ और संस्कृत में महर्षि वाल्मीकि मृत ‘‘रामायण’’ ने अपना विशेष स्थान बना रखा है। महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि, और रामचरित्र को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने वाले प्रथम मनीषी का गौरव पूर्ण पद भी प्राप्त है।

युग निर्माण योजना के अन्तर्गत लोक-चेतना जागरण, नैतिक एवं सांस्कृतिक पुनरुत्थान के लिए एक उपयुक्त माध्यम, एक सफल आधार के रूप में श्रीराम कथा को मान्यता दी जा चुकी है। भगवान राम के पावन एवं प्रेरक चरित्र को जनसाधारण के सामने व्यवस्थित करके रखने का प्रयास उसके रचयिताओं ने भी इसी लक्ष्य को सामने रख कर किया था। यह बात और है कि उनमें प्रतिपादित और वर्णित कुछ विषयों की प्रामाणिकता एवं उपयोगिता पर समय के परिवर्तन के साथ प्रश्न वाचक चिन्ह लग गये हैं। कुछ असंगत मान्यतायें उनके साथ जुड़ गयीं या जोड़ दी गयीं, यह भी सत्य है। किन्तु फिर भी उनका मूल प्राण सुरक्षित है उसे उभारा जा सकता है। तथा उसके सहारे समाज के सुप्त आदर्श प्रेम को झकझोर कर जगाया और प्रगतिशील बनाया जा सकता है।

विचार-क्रान्ति और भावनात्मक नव निर्माण के लिए श्रीराम कथा—का उपयोग बड़ी सावधानी से करने की व्यवस्थित योजना बना कर तदनुसार कई चरण आगे बढ़ाये जा चुके हैं। तुलसीकृत रामचरित मानस के आधार पर श्री राम कथा का गठन संपादन और प्रकाशन किया जा चुका है। लगभग दो हजार निर्विवाद रूप से प्रेरणाप्रद, वर्तमान समय की प्रगतिशील चेतना के अनुरूप चौपाइयों-दोनों को चुनकर, कथा प्रवाह को बनाये रखकर इस कथा को तैयार किया गया है। इसमें कठिन शब्दों के शब्दार्थ, अपभ्रंशों के शुद्धरूप, सामान्य भावार्थ तथा विशेष निष्कर्षों के संकेत हर दोहे चौपाई के साथ जोड़कर पुस्तक को प्रौढ़-शिक्षा, अध्ययन, कथा उपदेश आदि विभिन्न धाराओं के लिए सुगम एवं उपयोगी बनाया गया है। सामान्य शिक्षित व्यक्ति भी इसके आधार पर कथा कहकर जन मानस को आदर्श जीवन की प्रेरणा दे सकता है।

‘‘रामचरित मानस से प्रगतिशील प्रेरणा’’ नामक एक और पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। इसमें आस्तिकता, आध्यात्मिकता, धार्मिकता, परिवार निर्माण समाज निर्माण आदि के विभिन्न पक्षों का युगानुकूल समर्थन रामचरित मानस एवं तुलसी कृत अन्य ग्रंथों के आधार पर किया गया है। इस पुस्तक के आधार पर कोई भी लोक-मंगल की आकांक्षा रखने वाला औसत ज्ञान वाला व्यक्ति घर-घर गांव-गांव प्रेरक प्रवचनों के माध्यम से भगवान राम के जीवन के आदर्शों की सुगन्धि फैला सकता है।

इस कथा और प्रवचनों के बीच प्रेरक कथाओं द्वारा प्रेरणा और रोचकता बढ़ाने लिए एक सहायक पुस्तक ‘प्रेरणाप्रद दृष्टांत’ भी प्रकाशित की जा चुकी है। विषयक्रम से संपादित प्रेरक घटनायें, कथायें एवं संस्मरणों को इसमें रखा गया है। कथा अथवा प्रवचन में अपने इच्छित विषय के प्रतिपादन के लिए इसमें से उपयुक्त दृष्टांत चुनने में देरी नहीं लगती।

इसी शृंखला की एक नवीन और अति महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में यह पुस्तक प्रकाशित की गयी है। तुलसी कृत ‘‘रामचरितमानस’’ के जन भाषा में होने के कारण अधिक लोकप्रिय हो गया तथा जन जन के कंठ में स्थान पा गया। इसीलिए लोक शिक्षा के प्रयास में पहला स्थान उसे दिया गया। फिर भी वाल्मीकि रामायण की अपनी विशेषता समाप्त नहीं हो जाती। उन्होंने श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम, लोक नायक के रूप में उभारा है। इस लिए वाल्मीकि के राम के जीवन में मनुष्योचित उतार चढ़ाव अधिक स्वाभाविकता से समाविष्ट हो सके हैं। तुलसीदास जी ने श्रीराम का दिव्य अलौकिक रूप अधिक उभारा है। दोनों के प्रयास के पीछे उच्च उद्देश्य रहे हैं और अपनी साधना द्वारा उन्होंने उन श्रेष्ठ उद्देश्यों की स्थापना में सफलता भी पायी है। इसलिए दोनों ही अपने-अपनी स्थान पर अनुपम हैं और लोक शिक्षण की दृष्टि से एक दूसरे के पूरक कहे जाने योग्य हैं।

उपर्युक्त तथ्य को ध्यान में रखकर ‘वाल्मीकि रामायण से प्रगतिशील प्रेरणा ‘नामक इस संग्रह को भी ‘रामचरित मानस से प्रगतिशील प्रेरणा’ की रूप रेखा के अनुसार ही संपादित किया गया है। उसके प्रकरण और अध्याय उसी क्रम से उन्हीं विषयों को आधार मानकर रचे-रखे गये हैं। किसी एक पुस्तक के आधार पर किसी सिद्धान्त विशेष का प्रतिपादन करते हुए आवश्यकतानुसार दूसरी पुस्तक से भी उसके समर्थन के उपयुक्त अंश निकाले जा सकते हैं। रामचरित मानस के आधार पर आयोजित श्रीराम कथा अथवा प्रवचन शृंखला के अन्तर्गत इस पुस्तक के सहारे से वाल्मीकि रामायण के आधार पर भी अपने विषय की पुष्टि की जा सकती है। उपयुक्त श्लोकों का चुनाव करके कथा प्रसंग तथा प्रवचनों में उनका समावेश कर देने से कथन की प्रामाणिकता के साथ-साथ रोचकता में भी वृद्धि होती है।

एक बात और भी ध्यान देने योग्य है। कुछ महत्वपूर्ण पक्षों का उभार तुलसी कृत रामचरित्र मानस में अच्छे ढंग से बन पड़ा है तो कुछ का वाल्मीकि रामायण में। इस संग्रह में उन उपयोगी पक्षों के प्रतिपादनों को प्राथमिकता दी गयी है जो ‘रामचरित मानस’ के आधार पर गठित पुस्तक में उतनी सजीवता से नहीं उभारे जा सके थे। इस दृष्टि से यह दोनों पुस्तकें श्रीराम के आदर्श चरित्र को उभारने में, उनके अनुज लक्ष्मण और भरत की तरह अपने-अपने स्तर पर अनुपम कही जाने योग्य हैं। प्रबुद्धजन इनका उपयोग इसी दृष्टि से करेंगे ऐसी आशा की जाती है।

श्रीराम चरित्र के माध्यम से भारतीय जनमानस को सद्विचार, सद्भावना तथा सत्कर्म की प्रेरणा देने का कार्य कठिन नहीं है। जो लोग अपनी विद्वत्ता की धाक जमाने के लिए ही राम कथा या उनके चरित्र पर प्रवचन करते हैं उनकी बात और है, उस सम्बन्ध में कुछ न कहना ही उचित है। किन्तु जो इस पावन चरित्र के माध्यम से जन चेतना में—जन कर्तृत्व में युगानुरूप क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना चाहते हैं उन्हें परम्परागत ढंग से हटकर नवीन शैली का अनुसरण और अभ्यास करना होगा। उसके लिए व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को दूसरे स्थान पर धकेल कर लोक मंगल के लक्ष्य को प्राथमिकता देने योग्य अपनी आंतरिक स्थिति का निर्माण करना होगा। यह प्रथम शर्त पूरी हो जाने पर उसके अनुरूप कथा एवं प्रवचन शैली की जानकारी प्राप्त करना तथा अभ्यास करना किसी सामान्य योग्यता वाले व्यक्ति के लिए भी कठिन नहीं है। युगांतर चेतना अभियान के अन्तर्गत वानप्रस्थ परम्परा के पुनर्जागरण कार्यक्रम में वानप्रस्थों के प्रशिक्षण की व्यवस्था ‘शांतिकुंज’ पो. सप्त सरोवर, हरिद्वार में चल रही है। उसमें श्री राम चरित्र और कृष्ण चरित्र के द्वारा लोक शिक्षण करने की विधि और शैली का प्रशिक्षण विशेष रूप से कराया जाता है। आशा की जाती है कि शीघ्र ही इन पावन चरित्रों के माध्यम से आदर्श व्यक्तित्वों और श्रेष्ठ समाज की स्थापना के निमित्त लोक सेवी निस्पृह वानप्रस्थों की व्यवस्थित सृजन सेना सारे देश में असुरता के विरुद्ध अपनी व्यूह रचना कर लेगी। यह पुस्तक इसी धर्मयुद्ध के एक प्रधान अस्त्र के रूप में प्रकाशित की गयी है। देव पक्ष के हर व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से भी इसका उपयोग करने का अधिकार है। आशा है प्रबुद्ध समाज लोक मंगल के निमित्त इसका उपयोग करके इसकी सार्थकता बढ़ायेंगे।
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