मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन से प्रेरणा लेकर संस्कृत तथा
हिन्दी के अनेक कवियों ने उनके चरित्र का गान अपनी-अपनी शैली में किया है।
उनमें हिन्दी में संत तुलसीदास कृत ‘‘रामचरित मानस’’ और संस्कृत में महर्षि
वाल्मीकि मृत ‘‘रामायण’’ ने अपना विशेष स्थान बना रखा है। महर्षि वाल्मीकि
को आदि कवि, और रामचरित्र को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने वाले प्रथम
मनीषी का गौरव पूर्ण पद भी प्राप्त है। युग निर्माण योजना के अन्तर्गत लोक-चेतना जागरण, नैतिक एवं सांस्कृतिक
पुनरुत्थान के लिए एक उपयुक्त माध्यम, एक सफल आधार के रूप में श्रीराम कथा
को मान्यता दी जा चुकी है। भगवान राम के पावन एवं प्रेरक चरित्र को
जनसाधारण के सामने व्यवस्थित करके रखने का प्रयास उसके रचयिताओं ने भी इसी
लक्ष्य को सामने रख कर किया था। यह बात और है कि उनमें प्रतिपादित और
वर्णित कुछ विषयों की प्रामाणिकता एवं उपयोगिता पर समय के परिवर्तन के साथ
प्रश्न वाचक चिन्ह लग गये हैं।