तत्पश्चात् निम्न मन्त्रों को पढ़ते हुए आरती उतारें :—
यं ब्रह्म वेदान्त विदो वदन्ति,
परम प्रधानं पुरुषस्तथान्ये ।
विश्वोद्गते कारणमीश्वरंवा,
तस्मैं नमो विघ्नविनाशनाय ।।
यं ब्रह्मावरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवैः ।
वेदैः सांङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गावन्ति यं सामगाः ।।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो ।
यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणाः देवाय तस्मै नमः ।
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(21) * घृत अवघ्राण *
प्रणीता में इदन्नमम के साथ टपकाये हुए घृत को हथेलियों पर लगाकर अग्नि पर सेके और उसे सूंघे तथा मुख, नेत्र, कर्ण आदि पर लगावे। मंत्र—
ॐ तनूषा अग्नेसि तन्व में पाहि ।
ॐ आयुर्दा अग्नेऽस्यायुर्मे देहि ।
ॐ बर्चोदा अग्नेसि वर्चो मे देहि ।
ॐ अग्ने यन्मे तन्वा उनन्तन्म आपृण ।
ॐ मेधां मे देवः सविता आदधातु ।
ॐ मेधां मेदेवी सरस्वती आदधातु ।
ॐ मेधां अश्विनौ देवा वाधतां पुष्कर स्रजौ ।
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(22) * भस्म धारण *
स्रुव से यज्ञ भस्म लेकर अनामिका उंगली से निम्न मन्त्रों द्वारा ललाट, ग्रीवा, दक्षिण वाहु मल तथा हृदय पर लगावे।
ॐ त्र्यायुषं जमदग्नेरिति ललाटे ।
ॐ कश्यपश्य त्रायुषमिति ग्रीवायाम् ।
ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषमिति दक्षिण बाहु मूले ।
ॐ तन्नोअस्तु त्र्यायुषमिति हृदि ।
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(23) * क्षमा प्रार्थना *
आबाहनं न जानामि नैव जानामि पूजनम् ।
विसर्जनं न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ।।1।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर ।
यत्पूजितं मयादेव परिपूर्ण तदस्तुमे ।।2।।
यदक्षरपदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।
तत्सव क्षम्यतो देव प्रसीद परमेश्वर ।।3।।
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु ।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्योवन्दे तमच्युतम् ।।4।।
प्रमादात्कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषुयत् ।
स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णः स्यादिति श्रुतिः ।।5।।
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(24) * साष्टाङ्ग नमस्कार *
तत्पश्चात् यज्ञ भगवान् के प्रति घुटनों के बल झुककर सांष्टांग प्रणाम करें तथा निम्न मन्त्र बोले :—
नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षिशिरोरुवाहवे ।
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटियुगधारिणे नमः ।।
नमो ब्रह्मणयदेवाय गौब्राह्मणहिताय च ।
जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः ।
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् ।
देवकी परमानन्दं कृष्णं बन्दे जगद्गुरुम् ।।
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(25) * शुभ कामना *
तत्पश्चात् समस्त प्राणियों के कल्याणार्थ यज्ञ भगवान् से हाथ जोड़ कर शुभ कामना करे :—
स्वस्ति प्रजाभ्य परिपालयन्तां न्यायेन मार्गेण महीं महीशाः ।
गोब्राह्मणेभ्यो शुभमस्तु नित्यं, लोकासमता सुखिनोभवन्तु ।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखमाप्नुयात् ।।2।।
अपुत्राः पुत्रिणः सन्तु पुत्रिणः सन्तु पौत्रिणः ।
निर्धनाः सधनाः सन्तु जीवन्तु शरदां शतम् ।।3।।
श्रद्धां मेधा यशः प्रज्ञां विद्यां पुष्टि श्रियं बलम् ।
तेज आयुष्यमारोग्यं देहि मे हव्यवाहन ।।4।।
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(26) * अभिसिंचनम् *
अभिषेक के समय सपरिवार यजमान के ऊपर आचार्य निम्न मन्त्र से (रुद्र कशल के जल में पंचपल्लव अथवा पुष्प द्वारा अभिषेक) (जल सिंचन) करें छिड़कें :—
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः पृथिवी शान्ति रापः शान्तिरोषधयः शान्ति वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सामा शान्तिरेधि ।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः । सर्वारिष्टा सुशान्तिर्भवतु ।।
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(27) * प्रदक्षिणा *
यज्ञ के अन्त में सब लोग खड़े होकर दायें हाथ से बांये हाथ की ओर यज्ञ की चार परिक्रमा करें।
यानि कानि च पापानि ज्ञाताज्ञातकृतानि च ।
तानि सर्वाणि नश्यन्ति प्रदक्षिणायां पदे-पदे ।।
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(28) * विसर्जन *
गच्छ त्वं भगवन्नग्ने स्वस्थाने कुंड मध्यतः ।
हुतमादाय देवेभ्यः शीघ्रं देहि प्रसीद मे ।।1।।
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वर ।
यत्र ब्राह्मइयो देवास्तत्र अच्छ हुताशनः ।।2।।
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजा मादाय मामकीम् ।
इष्ट काम समृद्धयर्थं पुनराममनायच ।।3।।
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(29) * आरती गायत्री जी की *
जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ।।
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग-पालन कर्त्री ।
दुःख शोक, भय, क्लेश, कलह, दारिद्रय दैनय हर्त्री ।।
ब्रह्म रूपिणी, प्रणति पालिनी, जगद्धातृ अम्बे ।
भव भय हारी, जन हितकारी, सुखदा जगदम्बे ।।
भय हारिणी, भव तारिणि अनघे, अज आनन्द राशी ।
अविकारी, अघहारी, अविचलित, अमले अविनाशी ।।
कामधेनु सत चित्त अनन्दा जय गंगा गीता ।
सविता की शाश्वती शक्ति तुम सावित्री सीता ।
ऋग्, यजु, साम अथर्व प्रणविनी प्रणव महा महिमे ।
कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे ।।
स्वाहा, सुधा, शची ब्रह्माणी राधा, रुद्राणी ।
जय सतरूपा वाणी विद्या कमला कल्याणी ।।
जननी हम हैं दीन हीन दुःख दारिद के घेरे ।
यद्यपि कुटिल कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे ।।
स्नेह सनी करुणामय माता चरण-शरण दीजै ।
विलख रहे हैं हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै ।
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष हरिये ।
शुद्ध-बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये ।।
तुम समर्थ सब भांति तारिणी तुष्टि, पुष्टि त्राता ।।
सत मारग पर हमें चलाओ, जो है सुख दाता ।।
जयति जय गायत्री माता । जयति जय गायत्री माता ।।
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(30) ।। यज्ञ की महिमा ।।
यज्ञ रूप प्रभो हमारे भाव उज्ज्वल कीजिए ।
छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिए ।।
वेद की बोलें ऋचाएं, सत्य को धारण करें ।
हर्ष में हों मग्न सारे, शोक सागर से तरें ।।
अश्वमेधादिक रचाएं, यज्ञ पर उपकार को ।
धर्म मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को ।।
नित्य श्रद्धा-भक्ति से यज्ञादि हम करते रहें ।
रोग पीड़ित विश्व के, सन्ताप सब हरते रहें ।।
कामना मिट जायं मन से, पाप अत्याचार की ।
भावनाएं पूर्ण होंवे, यज्ञ से नर-नारि की ।।
लाभकारी हों हवन, हर जीव-धारी के लिए ।
वायु जल सर्वत्र हों, शुभ गन्ध को धारण किए ।।
स्वार्थ भाव मिटे हमारा, प्रेम पथ विस्तार हो ।
‘‘इदं न मम’’ को सार्थक, प्रत्येक में व्यवहार हो ।।
हाथ जोड़ झुकाए मस्तक, वन्दना हम कर रहे ।
नाथ करुणा रूप वरुणा, आपकी सब पर रहे ।।
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(31) ।। अर्घ्यदान ।।
पुरश्चरण से बचे हुये जल को सूर्य के सामने अर्घ्य देना चाहिये। नीचे लिखे हुये मन्त्र से सूर्य को अर्घ्य दे:—
ॐ सूर्य देव सहस्रांशो तेजो राशे जगत्पते ।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्ध्य दिवाकर ।
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*समाप्त*