गायत्री-परिवार का लक्ष्य

चारित्रिक संगठित प्रयत्न की रूपरेखा

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भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए—नैतिक एवं चारित्रिक दृष्टि से युग निर्माण के लिए—सामाजिक एवं बौद्धिक क्रांति के लिए—आध्यात्मिकता आस्तिकता एवं एवं धार्मिकता की प्रतिष्ठापना के लिए—भी संगठित प्रयत्न ही सफल हो सकते हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुये गायत्री तपोभूमि द्वारा ‘‘गायत्री परिवार’’ नामक संगठित प्रयत्न आरम्भ किया गया है। इस संगठन की अब देश भर में लगभग 2000 शाखाएं तथा एक लाख सदस्य हैं। सदस्यता का किसी से, किसी प्रकार का कोई चन्दा नहीं है पर प्रत्येक सदस्य के लिए अपनी नित्य उपासना के अतिरिक्त दूसरों को सद् विचार देने तथा सत्प्रवृत्तियों के बढ़ाने लिये समय निकाल कर निरन्तर प्रयत्न करते रहना ही प्रधान शर्त है।

जहां नित्य गायत्री उपासना करने वाले तथा सद् विचारों के क्षेत्र विस्तार में योग देने की प्रतिज्ञा करने वाले कम से कम 10 सदस्य बन जाते हैं वहां ‘गायत्री-परिवार’ की शाखा के 6 पदाधिकारी चुने जाते हैं—1 प्रधान, 2 उप-प्रधान, 3 मंत्री, 4 उप मंत्री, 5 कोषाध्यक्ष, 6 निरीक्षक। यह छै अधिकारी संस्थान का कार्य नियमित रूप से चलाते रहने के लिये उत्तरदायी होते हैं। शाखा का कार्यालय स्थापित करना, उसके सदस्य रजिस्टर, मीटिंग रजिस्टर, हिसाब रजिस्टर, पत्र व्यवहार रजिस्टर आदि रखना, साप्ताहिक या पाक्षिक हवन सत्संग कराते रहना, पुस्तकालय स्थापित करके सत् साहित्य इकट्ठा करना और उसे सदस्यों को पढ़वाते रहना ‘‘गायत्री-परिवार-पत्रिका’’ द्वारा हर महीने तपोभूमि में आते रहने वाले सन्देशों को कार्यान्वित करना आदि कार्य भी इन पदाधिकारियों के जिम्मे होते हैं। संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये समय-समय पर कार्यक्रम बनाते रहना, नये सदस्य बढ़ाते रहना तथा नये क्षेत्रों में जाकर नई शाखाएं स्थापित कराते रहना भी इन शाखा संचालकों का एक कार्य है। संगठन को मजबूत रखने, बढ़ाते रहने तथा सक्रिय रखने के लिये कुछ न कुछ सोचते और करते रहना संस्था के हर सदस्य का कर्तव्य नियत किया गया है।

गायत्री परिवार का यह संगठन, भारतवर्ष की धार्मिक संस्थाओं में सदस्य संख्या ही नहीं, जीवन, उत्साह, सक्रियता, निष्ठा और सच्चे कार्यकर्ताओं को बहुलता की दृष्टि से भी प्रथम श्रेणी का संगठन है। गत नवम्बर 58 में इस संस्थान के सक्रिय कार्यकर्ताओं का एक कामकाजी सम्मेलन—आगामी कार्यक्रम निर्धारित करने के लिये बुलाया गया था। उसमें केवल ऐसे नैष्ठिक कार्यकर्ता ही सम्मिलित होने दिये गये थे जो एक वर्ष तक सवालक्ष गायत्री अनुष्ठान, 52 उपवास, ब्रह्मचर्य, भूमिशयन, धर्मफेरी, ज्ञान दान आदि कठोर परीक्षा प्रतिबंधों को पूरा कर सकें। इन कष्ट साध्य परीक्षा संकल्पों को पूरा करके देश के कोने-कोने से लगभग 1 लाख प्रतिनिधि मथुरा आये थे। इस सम्मेलन में 1000 कुण्डों की 101 यज्ञशालाओं में 24 लाख आहुतियों का हवन भी था। यह यज्ञ सम्मेलन बहुत ही सफल रहा। प्रतिनिधियों के अतिरिक्त कई लाख जनता ने भी इसमें बड़े उत्साह पूर्वक भाग लिया। आयोजन अत्यन्त विशाल एवं खर्चीली योजना को इन व्रतधारी सक्रिय कार्यकर्ताओं ने आपसी श्रमदान तथा स्वेच्छा सहयोग के आधार पर ही पूरा कर लिया। इस यज्ञ की सफलता इस संगठन की मजबूती एवं विस्तृतता का प्रमाण मानी जा सकती है।

अब गायत्री परिवार द्वारा नैतिक आदर्शों की प्रतिष्ठापना एवं प्रचलित सामाजिक बुराइयों को घटाने के लिये कार्य करना है। यह कार्य है भी धार्मिक संस्थाओं का ही। राजनैतिक, आर्थिक या सामाजिक संगठन अन्य कार्य कर सकते हैं परन्तु परमार्थिक श्रद्धा, सत् में निष्ठा, आस्तिकता को मनुष्य की अन्तरात्मा में गहराई तक प्रतिष्ठापित कर देने में सफलता प्राप्त करना उनके लिये कठिन है। सरकारी आदेश से लोग ब्रह्मचर्य से रहने या उपवास करने को तैयार नहीं हो सकते पर वही बातें यदि किसी प्रभावशाली धर्म केन्द्र से कही जायं तो आसानी से बहुत कुछ हो सकता है।

गायत्री तपोभूमि का आगामी कार्यक्रम यह है कि धर्म के दस लक्षणों-योग के प्रारम्भिक दस साधन यम-नियमों के आदर्शों के प्रति जन मानस में गहरी आस्था पैदा करने के लिये पूरा-पूरा प्रयत्न किया जाय। (1) ईमानदारी पर दृढ़ रहना—सत्य (2) किसी को न सताना—अहिंसा (3) अनधिकृत वस्तुओं का उपयोग न करना-अस्तेय (4) इन्द्रियों का विलासिता की दृष्टि से नहीं उपयोगिता की दृष्टि से उपयोग करना—ब्रह्मचर्य (5) अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह न करना-अपरिग्रह (6) सर्वत्र स्वच्छता पवित्रता रखना-शौच (7) विपन्न परिस्थितियों में उद्विग्न न होना-सन्तोष (8) कष्ट सहिष्णु, साहसी, श्रमशील और परोपकारी बनना-तप (9) स्वाध्यायशील, विवेकवान बनना-स्वाध्याय (10) ईश्वर की सर्वज्ञता, न्यायशीलता और कर्मफल के परिणामों पर आस्था रखना-ईश्वर प्रणिधान। यह दस धर्म के दस लक्षण हैं जिन्हें महर्षि पातञ्जलि ने ‘यम नियम’ का नाम दिया है।

इन दस आदर्शों में मानवता की सारी धर्म संहिता सन्निहित है। इन सूत्रों के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए यदि प्रभावशाली ढंग से जनता को प्रस्तुत किया जा सके तो निश्चय ही सच्चरित्रता एवं नीतिमत्ता की आशाजनक अभिवृद्धि हो सकती है और उसके साथ-साथ ही सुख शान्ति का, सेवा और सहयोग का प्रसन्नता और सम्पन्नता का क्षेत्र विस्तृत हो सकता है। तपोभूमि इस प्रचार और प्रसार को अपने हाथ में लेकर अग्रसर होने जा रही है।
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