गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी और यज्ञ को भारतीय धर्म का पिता माना जाता है। गायत्री का संदेश है—सद्विचार, विवेक, सद्भावना, अध्यात्मिक उच्चस्तर, मानवता के आदर्शों की अभिव्यक्ति। यज्ञ का तत्वज्ञान है—त्याग सत्कर्म, सदाचार, संयम, सेवा, सामूहिकता, सहिष्णुता, सहयोग, स्नेह, उदारता, श्रमशीलता, तितीक्षा। गायत्री हमें मानसिक दृष्टि से महान् बनने की प्रेरणा देती है और यज्ञ की शिक्षा सांसारिक दृष्टि से आदर्शवादी, धर्मनिष्ठ कर्तव्य परायण महापुरुष बनने की है।
गायत्री और यज्ञ की उपासना को धर्म-कर्मों में प्राथमिक स्थान देकर ऋषियों ने मानवता के आदर्शों में मनुष्य को लगाये रखने का प्रयत्न किया है। यों गायत्री और यज्ञ के असंख्यों वैज्ञानिक लाभ हैं, इनके द्वारा अनेकों समस्याओं को सुलझाने का भारी उपयोग भी है। पर यहां इस पुस्तक में इस दृष्टिकोण से विचार करेंगे कि गायत्री यज्ञ की धर्म प्रवृत्ति को एक आन्दोलन का रूप देकर हम किस प्रकार नैतिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
प्रतीक पूजा के रूप में भी गायत्री और यज्ञ को सद् विचारों और सत्कार्यों का माध्यम बता कर इनकी आवश्यकता समझाने तथा अपनाने के लिए जन साधारण को प्रेरित करने का लक्ष स्थिर किया गया है। कपड़े का छोटा-सा तिरंगा झण्डा जिस प्रकार राष्ट्रीयता का, राष्ट्रीय गौरव का, प्रतीक माना जाता है, उसका अभिवन्दन किया जाता है उसी प्रकार सद्विचारों और सत्कार्यों के प्रतीक के रूप में सर्वत्र गायत्री तथा यज्ञ का अभिवन्दन पूजन अर्चन हो, तो इससे मानवता एवं नैतिकता के आदर्शों को प्रोत्साहन मिलना स्वाभाविक ही है।