विचारों की शक्ति महान है। मनुष्य को जितनी आवश्यकता उत्तम अन्न, स्वच्छ जल, खुली हवा, रोशनी, सफाई, कपड़ा, मकान, परिश्रम तथा आराम की है उससे कहीं अधिक आवश्यकता उत्तम विचारों की है। जिसका मस्तिष्क विचार शून्य है, जो घटिया किस्म के विचारों में डूबा रहता है उसे एक प्रकार का पशु ही कहना चाहिए। केवल रोटी, वासना और तृष्णा में संलग्न व्यक्ति मनुष्य के महान गौरव को कलंकित करने वाला है। इस कलंक की कालिमा को छुड़ाने के लिए विचारशीलता तथा विवेकशीलता को बढ़ाने का प्रयत्न करने की भारी आवश्यकता है। शिक्षा के विभिन्न साधन आजीविका संबंधी या सांसारिक जानकारियों को बढ़ाने तक ही सीमित रह जाते हैं। जरूरत इस बात की है कि विद्या का क्षेत्र बढ़ाया जाय। लोग अपने बारे में, आत्मा के बारे में, परमात्मा के बारे में, अपने कर्तव्यों के बारे में अधिक जानें। यह जानकारी जितनी ही बढ़ेगी उतना ही सुख शान्ति के क्षेत्र का विस्तार होगा।
गायत्री-परिवार का प्रत्येक सदस्य विचारशील एवं स्वाध्याय प्रेमी बने इसके लिए संस्था यह विस्तृत स्टडी सर्किल—अध्ययन क्षेत्र—बनाने में संलग्न है। शाखा संचालकों से तथा परिवार के प्रत्येक सक्रिय कार्यकर्ता से यह आशा की जाती है कि वह भारतीय संस्कृति की महानता प्रतिपादित करने वाला साहित्य स्वयं नियमित रूप से पढ़े तथा अन्य धर्मप्रेमियों को ऐसा साहित्य पढ़ने की प्रेरणा करे। जिनमें इस प्रकार की अभिरुचि के बीज दिखाई दें उनके घर पर जाकर नैतिक साहित्य पढ़ने के लिए दिया जाय, जब पढ़लें तब वापस लाया जाय। एक के बाद दूसरी पुस्तकें उन्हें पढ़ने को मिलती रहें इसका प्रयत्न किया जाय।
गायत्री-परिवार द्वारा जितना बल होम यज्ञ पर है, उतना ही वरन् उससे भी कहीं अधिक बल ज्ञान यज्ञ पर दिया जाता है। जिस प्रकार हम सुन्दर खाद्य पदार्थ प्राप्त करने की, उन्हें खरीदने की इच्छा करते हैं उसी प्रकार सत् साहित्य पढ़ने की इच्छा हर व्यक्ति के मन में उठे और वह उसे पूरा करने के लिए प्रयत्न करे यह प्रवृत्ति पैदा करना एक पुनीत सत्कर्म माना गया है। ज्ञान की भूख पैदा करना और बौद्धिक भोजन जुटाना यही ज्ञान यज्ञ है। ज्ञान यज्ञ की प्रक्रिया गायत्री परिवार के क्षेत्र में ही नहीं उससे बाहर भी तेजी से चले यह प्रयत्न पूरी शक्ति के साथ करने का कार्यक्रम बनाया गया है।
आवश्यक खर्चों की लिस्ट में आत्मिक आहार के लिए कुछ खर्च करने का बजट हर किसी को बनाना चाहिए। जिस प्रकार शरीर को रोटी आवश्यक है उसी प्रकार आत्मा को नित्य सद्विचारों की योजना आवश्यक है इस तथ्य को हर विचारशील व्यक्ति को अनुभव करने का अवसर मिलना चाहिए। संस्था का प्रयत्न यह होगा कि अध्ययन के प्रति लोगों में जो उपेक्षा एवं आलस्य है उसे दूर किया जाय। जन जीवन में भारी हेरफेर करने के लिए जिन प्रौढ़ विचारों की आवश्यकता है उन्हें उत्पन्न करने के लिए सत्साहित्य का प्रमुख स्थान है। ज्ञान यज्ञ द्वारा ही जन साधारण को उचित दिशा में सोचने और उचित गतिविधि बनाने की प्रेरणा देना सम्भव हो सकता है।
बुद्धि की देवी गायत्री के उपासकों के लिए स्वाध्यायशील होना ही नहीं, सद्विचारों का प्रचारक होना भी आवश्यक है। इस संस्था के हर सदस्य पर यह जिम्मेदारी डाली गई है कि वह धार्मिक क्रान्ति के लिए सांस्कृतिक पुनरुत्थान के लिए विचारशीलता का क्षेत्र तैयार करे। अपना कुछ समय नियमित रूप से दूसरों को सद्विचार देने में लगाया करे। अपनी आजीविका में कुछ अंश, चाहे वह एक पाई या एक मुट्ठी अन्न ही क्यों न हो नित्य ज्ञान यज्ञ के लिए निकाला करे। इस बचाये हुए पैसे से सत् साहित्य खरीद कर अपने घर में स्थापित ज्ञानमन्दिर की अभिवृद्धि करते रहना और उसका लाभ अपने कुटुम्बियों, पड़ौसियों, मित्रों, परिचितों को प्राप्त कराने के लिए प्रयत्न करना, यह श्रेष्ठ ब्रह्मदान प्रत्येक गायत्री प्रेमी का पवित्र कर्तव्य है।
विदेशों में विभिन्न विचार धाराओं को फैलाने के लिए स्टडी सर्किल—अध्ययन क्षेत्र—चलते हैं। यह बड़ी ही प्रभावशाली प्रक्रिया है। गायत्री-तपोभूमि अपने कार्यकर्ताओं पर यह जोर देती है कि बौद्धिक क्रान्ति के प्रमुख आधार इस ज्ञान यज्ञ को ये अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य समझें। अन्नदान से ब्रह्मदान का महत्व सौ गुना अधिक माना गया है। ब्राह्मण भोजन का तात्पर्य—सद्विचार फैलाने वाले व्यक्तियों-ब्राह्मणों का पोषण ही है। अब उस प्रकार के ब्राह्मण ढूंढ़े नहीं मिलते जिनका जीवन निरन्तर ज्ञान-प्रचार में ही लगा रहता हो। ऐसी दशा में सत्साहित्य का प्रचार, वितरण, ज्ञान ही ब्रह्मभोज की आवश्यकता को पूरा करता है। प्रत्येक शुभ कार्य के साथ, प्रत्येक पर्व, उत्सव या प्रसन्नता के अवसर पर हमें सस्ते सत्साहित्य का उपहार वितरण करना चाहिए। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए गायत्री तपोभूमि लागत से भी कम मूल्य में अत्यन्त सस्ता नैतिक एवं सांस्कृतिक चेतना उत्पन्न करने वाला साहित्य तैयार करने में संलग्न है। ईसाई मिशन जिस प्रकार अत्यन्त सस्ता साहित्य छापकर—प्रसारित करके अपने विचारों को घर-घर तक पहुंचाने में, उनसे प्रभावित लोगों को ईसाई बनाने में समर्थ हुए उसी आधार को अपनाकर हम भी जन साधारण की मनोदशा में परिवर्तन कर सकते हैं, कुमार्गगामी लोगों को सन्मार्ग पर ला सकते हैं, स्वार्थपरता दुष्प्रवृत्तियों से छुड़ाकर एक महान गौरवशाली राष्ट्र के सच्चरित्र नागरिकों के रूप में परिवर्तित कर सकते हैं। ज्ञान यज्ञ इसी उद्देश्य से आरम्भ किया गया है। जीवन को यज्ञमय बनाने, भावना के ज्ञान यज्ञ से प्रदीप्त करने के लिए संस्थान के प्रचार कार्यक्रम बनाये गये हैं।