देवताओं, अवतारों और ऋषियों की उपास्य गायत्री

त्रिदेवों की परम उपास्य गायत्री महाशक्ति

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
गायत्री परब्रह्म की मूलभूत एवं अविच्छिन्न शक्ति है। वह कोई स्वतन्त्र देवी-देवता नहीं अपितु परब्रह्म परमात्मा का क्रिया भाग है। ब्रह्म, निर्विकार, अचिन्त्य बुद्धि से परे है, साक्षी रूप है परन्तु अपनी उसकी क्रियाशील चेतना शक्ति रूप में होने के कारण वह उपासनीय है और उस उपासना का अभीष्ट परिणाम भी प्राप्त होता है। भारतीय अध्यात्मशास्त्र में अनेक देवी-देवताओं की चर्चा है। उनके भिन्न-भिन्न स्वरूप और अलग-अलग आकार-प्रकारों का उल्लेख आता है। यह सभी देवी-देवता परब्रह्म की शक्तियों के विभिन्न रूप हैं। जिस प्रकार जिह्वा में वाणी, नेत्रों में दृष्टि, मस्तिष्क में बुद्धि, भुजाओं में बल, पैरों में गति होती है उसी प्रकार परब्रह्म की अगणित शक्तियां पृथक् पृथक् देवताओं के नाम से कहीं गयी है। यों उन्हें सशक्त बनाने के लिए पृथक् अवयवों के अलग-अलग व्यायाम भी किये जाते हैं, पर वास्तविकता को समझने वाले शरीर की मूल जीवनी शक्ति, पाचन क्रिया, रक्तशुद्धता आदि पर ही ध्यान केन्द्रित करते हैं। क्योंकि जड़ को सींचने से सभी पत्तियां, डालियां स्वयमेव हरी रह सकती हैं। देवताओं का पृथक्-पृथक् पूजन भी उपयोगी है, उसमें कुछ हानि नहीं पर दूरदर्शी जड़ सींचने की तरह मूलशक्ति पर ही ध्यान केन्द्रित करते हैं और पृथक्-पृथक् दीखने वाले सभी अवयवों को सशक्त, परिपुष्ट बनाते हुए, उनके द्वारा प्राप्त हो सकने वाले लाभों से लाभान्वित होते हैं।

समस्त देवशक्तियों का जो उत्स है वह ब्राह्मीशक्ति ही है और उसी ब्राह्मीशक्ति को गायत्री कहते हैं। ब्रह्म तत्त्व में ब्राह्मी शक्ति ही गतिशीलता उत्पन्न करती है। उसी से अन्य सब अंश अवयवों को देवताओं को पोषण मिलता है। इसलिए तत्त्वदर्शी जगह-जगह भटकने की अपेक्षा एक ही प्रमुख आश्रय का अवलंबन करते हैं, जो दर-दर भटकने पर मिल सकता है, उसे एक ही स्थान पर प्राप्त कर लेते हैं। अन्यान्य देवताओं की पूजा-अर्चना से जो आंशिक लाभ मिल सकते हैं, उनकी उपेक्षा अनेक गुना लाभ मूल शक्ति की उपासना का है। गायत्री मूल है। देव-शक्तियां उसकी शाखा-उपशाखा मात्र हैं। वे शक्तियां भी भी अपनी समर्थता मूल-केन्द्र से ही उपलब्ध करके इस योग्य बनती हैं कि अपना क्रिया-कलाप विधिवत् जारी रख सकें, किसी साधक को अभीष्ट वरदान दे सकें। इस तथ्य को पुराणों तथा साधना शास्त्रों में इस प्रकार वर्णन किया गया है कि सब देवता गायत्री की उपासना एवं स्तुति करते हैं और उसी महाभण्डार से जो उपलब्ध करते हैं, उसका अनुदान अपने क्षेत्र में वितरित करते रहते हैं।

इस सन्दर्भ में उपलब्ध अनेक विवरणों में से कुछ नीचे प्रस्तुत किये जाते हैं—

सर्ववेद सारभूता गायत्र्यास्तु समर्थना । ब्रह्मादयोऽपि संध्यायां तां ध्यायन्ति जपन्ति च ।।

—देवी भागवत 16। 16। 15 गायत्री उपासना वेदों का सारभूत तत्त्व है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि सभी देव सन्ध्या सहित गायत्री की आराधना करते हैं।

बताया जा चुका है कि परब्रह्म के विभिन्न स्फुल्लिंग ही देवशक्तियों के रूप में जानी जाती है। यों देवताओं की संख्या बहुत है। उल्लेख तो यहां तक मिलता है कि देवताओं की संख्या बहुत है। उल्लेख तो यहां तक मिलता है कि देवताओं की संख्या 33 करोड़ है। पर सभी देव शक्तियों में तीन देवता प्रमुख माने गये हैं—ब्रह्मा, विष्णु, महेश। विवेचन मिलता है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश की उत्पादक, पोषक और संहारक शक्ति के द्वारा ही इस विश्व की जीवन, विकास एवं परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही हैं।
<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118