अदृश्य जगत का पर्यवेक्षण सपनों की खिड़की से

स्वप्नों को सार्थक बनाया जा सकता है

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समझा गया है कि अचेतन की सूक्ष्म परतें न केवल स्वयं रहस्यपूर्ण हैं वरन् इस विश्व ब्रह्माण्ड में जो कुछ अदृश्य सूक्ष्म रहस्य है उसके साथ सम्बन्ध जोड़ने, आदान-प्रदान करने की क्षमता भी उसमें विद्यमान है। प्रश्न एक ही है कि उसे उपयुक्त अवसर मिलता है या नहीं। उपयुक्त आधार उसे मिल सका या नहीं? यह कार्य आम तौर से मनः संयम की ध्यान धारणाओं द्वारा मनस्वी लोग प्रयत्नपूर्वक सम्पन्न करते हैं, पर कई बार वह पूर्व संचित अभ्यास के आधार पर अथवा अन्य अविज्ञात कारणों से इस स्थिति में भी पहुंच जाता है कि परिष्कृत स्तर जैसी अनुभूतियां उपलब्ध कर सके। जब कभी कुछ ऐसा होता है स्वप्न सार्थक भी होते देखे गये हैं। उनमें ऐसे संकेत रहते हैं जिनके माध्यम से विगत का इतिहास और भविष्य का भवितव्य जाना जा सके। न केवल इतना ही होता है वरन् वर्तमान उलझनों तथा आवश्यकताओं के सम्बन्ध में उस माध्यम से ऐसा मार्गदर्शन परामर्श भी उपलब्ध होता है जिसे प्रेरणा कहा जा सके। ऐसा सर्वदा तो नहीं होता, पर जब कभी अचेतन की उत्कृष्टता और सचेतन द्वारा उसे समझने की उभयपक्षीय विशिष्टता एक साथ उभरती है तो ऐसा संयोग बन पड़ता है जिससे स्वप्न को सार्थक ही नहीं महत्वपूर्ण भी कहा जा सके। ऐसे सपने कई बार तो मनुष्यों की जीवन दिशा को उलट देने तक में समर्थ हुए हैं।

कई सपने बड़े प्रेरणा प्रद सिद्ध हुए हैं। उनने इतना उत्साह प्रदान किया कि देखने वालों ने उसे संकल्प की तरह अपनाया और असम्भव जैसा लगने पर भी पूरा करके ही दम लिया।

फ्रांस के एक ग्रामीण डाकखाने का पोस्ट मैन प्रायः 20 मील रोज चलता था। उसी कठोर परिश्रम से उसका परिवार पलता था। एक दिन उसने सपना देखा कि उसने पास के पहाड़ की चट्टानें काट कर एक भव्य भवन बनाना शुरू किया है। वह बहुत सुन्दर बना और उसका नाम पैलाइस आइडियले रखा गया।

सपने से वह इतना प्रभावित हुआ कि उसने बचे समय में वैसा ही भवन अपने हाथों बनाने का निश्चय कर लिया। वह जुट पड़ा और अपनी सारी पूंजी और मेहनत लगा कर लगातार 33 वर्षों के परिश्रम से उस सपने को साकार कर दिया। हैटोराइव—फ्रांस का वह स्वप्न महल अभी भी दर्शकों के लिए कौतुक और आकर्षण का विषय है।

भगवान महावीर के जन्म से पूर्व रानी त्रिशला ने 14 मार्मिक स्वप्न देखे थे प्रथम में हाथ, द्वितीय में बैल तृतीय में सिंह, चतुर्थ में लक्ष्मी, पंचम में सुवासित पुष्पों की माला, षष्टम में पूर्ण चन्द्र, सप्तम में सूर्य दर्शन, अष्टम जल भरे मंगल कलश, नवम नीले स्वच्छ जल वाला सरोवर, दशम लहलहाता सागर, एकादश सिंहासन, द्वादश देव विमान, त्रयोदश रत्नराशि, चतुर्दश तेजस्वी अग्नि।

स्वप्न का फलितार्थ मर्मज्ञों ने इस प्रकार किया—हाथी सहायक साथी, धैर्य, मर्यादा और बड़प्पन का प्रतीक है उसके पेट में प्रविष्ट होने का तात्पर्य प्रलम्ब बाहु पुत्र जन्म का द्योतक है वह महान् धर्मात्मा अनन्त शक्ति का स्वामी, मोक्ष प्राप्त करने वाला यशस्वी, अनासक्त ज्ञानी, सुख-शान्ति का उपदेष्टा, महान् गुणों वाला, शांत और गम्भीर, त्रिकालज्ञ, देवात्मा और महान् होगा। भगवान् महावीर का जीवन इस स्वप्न का पर्याय था इसमें सन्देह नहीं उपरोक्त सभी प्रतीकों का अर्थ मर्मज्ञों ने उन-उन वस्तुओं के गुण प्रभाव आदि की दृष्टि से निकाला जो उपयुक्त ही सिद्ध हुआ। अपने स्वप्नों की समीक्षा करते समय देखी गई वस्तुओं का विश्लेषण उनकी उपयोगिता महत्ता और गुणों के रूप में किया जा सके तो बहुत सारे अस्पष्ट स्वप्नों के अर्थ भी निकाल सकते और उनसे अपने जीवन को संवार सकते हैं।

जे. गुवे की पुस्तक ‘एन एक्सपेरीमेन्ट विद टाइम’ में ऐसे अविज्ञात आयामों का उल्लेख किया है जो विज्ञात तीन आयामों की तरह सर्वविदित तो नहीं, पर अपने अस्तित्व के प्रमाण समय-समय पर प्रस्तुत करते रहते हैं। लम्बाई-चौड़ाई-गहराई की तरह प्रकृति में कुछ अन्य आयाम भी हैं। आइन्स्टीन ने टाइम, स्पेस और कॉजेन को भी आयामों में गिना है साथ ही ऐसे अन्यान्य आयामों की सत्ता का भी संकेत दिया है जिनके आधार पर रहस्यों की दुनिया में प्रवेश पाया जा सकता है।

मार्कट्वेन ने स्वप्नों के सम्बन्ध में गहन अनुसन्धान किये हैं। उनने अनेकानेक उदाहरणों के आधार पर कितने निष्कर्ष ही निकाले हैं। इस दिशा में इतनी तत्परता के साथ जुटने की प्रेरणा उन्हें अपने भाई के स्वर्गवास का पूर्वाभास होने से मिली। उसका भाई अच्छा खासा था पर ट्बेन ने सपने में देखा कि वह एक ताबूत में मरा पड़ा है और ऊपर से सफेद फूल रखे हैं। आंख खुलने पर उस डरावने सपने से असमंजस तो हुआ पर वैसा घटित होने का कोई कारण न देखकर उसे भुला दिया गया ठीक एक महीने बाद वही घटना घटित हुई और उनका भाई स्टीम वोट में दुर्घटनाग्रस्त होकर मर गया। उनके सामने लाश ठीक उसी रूप में आई जैसा कि उनने सपने में देखा था।

जर्मनी के मनोविज्ञानी जिम रिचर्ड ने स्वप्नलोक की संरचना में ‘एक्सट्रा सेंसुअरी परसेशन’ को कारण माना है और कहा है कि जिस बाह्य वातावरण से मनुष्य घिरा रहता है और उससे जितना जिस स्तर का प्रभाव ग्रहण करता है उसी से स्वप्नलोक का सृजन होता है। अपना तो इतना ही होता है कि बाह्य घटनाचक्र को किस दृष्टि से देखा और किस सीमा तक अपनाया गया। इतने पर भी वे यह मानते हैं कि भली-बुरी घटनाओं का क्रम तो सभी के सामने चलता रहता है उनसे किसने क्या समझा सीखा? यह अपनी निजी विशेषता है। इस विशेषता का परिचय स्वप्नों के पर्यवेक्षण से जाना और किसी के व्यक्तित्व के स्तर को देखकर समझा जा सकता है। सिकन्दर महान ने सपने में अपनी ढाल के ऊपर एक घोड़े के कान और वैसी पूंछ का देवता नाचता हुआ देखा। इस विचित्र स्वप्न का अर्थ तत्कालीन भविष्यदर्शी अरिस्तांदर ने बताया कि अगले युद्ध में तुम्हारी विजय निश्चित है। इसी आशा और उत्साह से उसने तत्काल नये युद्ध की तैयारी की और विजय पाई।

मिस्र के राजकुमार तुत्मेस ने सपना देखा कि देवता उससे कह रहे हैं—‘मैं तुझे छोटे राज्य का न रहने दूंगा। बहुत बड़े क्षेत्र का शासन प्रबन्ध कराऊंगा धन सम्पत्ति की कमी न रहने दूंगा। तू अपने पिता होरयाखू की शानदार स्मृति बनाना राजकुमार ने सपना याद रखा और देखा कि राजगद्दी पर बैठते ही ठीक वैसी ही परिस्थितियां बनने लगीं जैसा कि स्फिक्स देवता ने उसे बताई थीं। उसने अपने पिता की सामान्य-सी कब्र को बहुमूल्य पत्थरों से इस प्रकार बनवाया जिससे उनकी स्मृति चिरकाल तक बनी रहे।

सपनों की सच्चाई भी अनेक बार प्रकट होती है। पौराणिक कथा के अनुसार बाणासुर की पुत्री उषा को स्वप्न में बिना किसी पूर्व विचार के श्रीकृष्ण पौत्र अनिरुद्ध के दर्शन हुए और दोनों के बीच प्रणय सम्बन्ध बन गये। बाद में बहुत ढूंढ़ खोज के बाद पता चला कि स्वप्न में देखा गया वह व्यक्ति कौन था? इस जानकारी के उपरान्त ही वह विवाह सम्पन्न हुआ।

परमाणु भौतिकी के आद्य प्रवर्त्तक नील्स बोहर जिन दिनों इस उधेड़ बुन में लगे हुए थे और सम्भावना को मूर्त रूप न दे पाने से असमंजस में फंसे थे उन दिनों उनने एक स्वप्न देखा—जिसमें सारे ग्रह नक्षत्र एक रस्सी में बंधे दीखे। वे ठण्डे होकर एक केन्द्र पर जमे और विस्फोट होने पर बिखर कर अपनी-अपनी कक्षा में घूमने लगे इस स्वप्न को उनने अणु संरचना में उसके नाभिक तथा सदस्य घटकों की संगति बिठाई। यह सूत्र हाथ लगने पर उनका पर्यवेक्षण आगे बढ़ा और अन्ततः परमाणु भौतिकी का एक व्यवस्थित ढांचा खड़ा हो गया।

सिलाई मशीन के आविष्कारक इलिलास हार्वे बहुत समय से अपने प्रयास में लगे थे पर उसके लिए उपयुक्त सुई का कोई सही स्वरूप बन नहीं पा रहा था। जिन दिनों वे इस उलझन से ग्रसित थे उन्हीं दिनों उन्होंने एक सपना देखा कि बर्बर लोगों के एक झुण्ड ने उन्हें पकड़ लिया है। उनके नेता ने हुक्म दिया कि या तो यह चौबीस घण्टे के भीतर सिलाई की मशीन विनिर्मित करे या इसे कत्ल कर दिया जाय। हार्वे ने जान बचाने के लिये भरपूर प्रयत्न किया, पर वे नियत अवधि में वैसा न कर सके। इस पर उन्हें भालों से बेधने के लिये जल्लाद आ गये। भालों की नोक विचित्र थी। हार्वे ने उन्हें गौर से देखा तो पाया कि नोंक के ऊपर सभी भालों में छेद थे। सपना टूट गया। भालों के नोक से ऊपर छेद की विचित्रता उनके मन में घर कर गई और उन्होंने इसी संकेत पर सिलाई मशीन की सुई बनाई और आविष्कार हो गया।

फ्रेण्डरिक केकुले ने सुगन्धित द्रव्य रसायनों के अभूतपूर्व फार्मूले ढूंढ़ निकाले। इससे उसने धन भी कमाया और यश भी। इस आविष्कार में सहायक उनका सांपों का सपना प्रख्यात है। उसी से प्रेरणा पाकर उन्होंने प्रस्तुत संकेतों के आधार पर अपना कदम उठाया और सफलता तक पहुंचाया। केकुले स्वप्नों को सार्थक सिद्ध करने में बहुत उत्साही रहे।

यूनान देश के दालदिस नगर निवासी आर्ते मिदोरस नामक विद्वान ने एक ग्रन्थ रचा था—‘ओनईकर्मसी’ जिसका अर्थ होता है—‘स्वप्न दिया’ बहुत समय तक उसकी बहुत धूम रही और असंख्यों ने उस आधार पर अपने स्वप्नों के अर्थ लगाये। अभी भी उसमें दिये हुये समाधानों का सन्दर्भ संसार भर के स्वप्न विशारद समय-समय पर देते रहते हैं।

हेंगरी के डा. सांडर फोरेस्त्सी ने अपने निजी तथा दोस्तों के अनेकों विवरण प्रस्तुत करते हुए स्वप्नों में से अधिकांश के सारगर्भित एवं उद्देश्य पूर्ण होने की बात कही है।

न्यूयार्क में मेमनाइड मेडिकल सेण्टर ने स्वप्नों के तारतम्य का विश्लेषण करते हुए एक साधन सम्पन्न ‘ड्रीम लेबोरेटरी’ की स्थापना की है। इसके मूर्धन्य अनुसंधान कर्त्ताओं में से डा. डलमैन और क्रिपनर ने जो निष्कर्ष पिछले दिनों निकाले थे उन्हें अधिकांश में सार गर्भित पाया गया। उपरोक्त दोनों डॉक्टर अब इस प्रयास में जुटे हैं कि स्वप्नों की सहायता से जागृत को अधिक सुखद और समुन्नत बनाया जाय।

एडगर ऐलन, मोजार्ट और आइन्स्टीन सदृश्य उच्चस्तरीय विज्ञानवेत्ता यह स्वीकार करते थे कि उन्हें कितने ही सपनों ने शोध कार्य में सहायता दी है और उलझी गुत्थियों को खोलने वाले संकेत दिये हैं। स्वयं अलबर्ट आइन्स्टीन के इस सम्बन्ध में अनुभव बड़े अद्भुत थे। विश्व विख्यात गणितज्ञ आइन्स्टीन को एक वैज्ञानिक गोष्ठी में किसी जटिल समीकरण का हल प्रस्तुत करना था। वे कई दिनों से उसे हल करने में लगे थे पर कोई हल नहीं निकल पा रहा था। एक दिन पूर्व वे सोये तो उन्हें लगा कि किसी अज्ञात सत्ता ने उनके सारे कठिन सन्दर्भों को सरल बनाकर आइन्स्टीन के सामने समाधान प्रस्तुत कर दिया। स्वप्न टूटने के बाद आइन्स्टीन ने स्वप्न में देखे गये दृश्य के अनुसार फिर से प्रश्न को हल किया और उसका सही उत्तर उन्हें मिल गया। ऐसा उनके जीवन में कई बार हुआ। इसीलिए वे कहां करते थे कि स्वप्नों में कोई सत्य है जो हम वैज्ञानिक समझ नहीं पा रहे हैं।

‘‘अपनी अद्भुत कल्पनाओं के उठने का मूल स्रोत कहां है?’’ इस प्रश्न का उत्तर देते हुए आइन्स्टीन ने कहा था कि प्रायः निद्रित अथवा अर्धनिद्रित अवस्था में कभी-कभी ऐसे समय आते हैं जब मस्तिष्क अपनी सामान्य मर्यादाओं का उल्लंघन करके ऐसी सूचनायें देने लगता है जिनके आधार पर आविष्कारों की आधारशिला रखी जा सके।

स्वामी रामतीर्थ के सम्बन्ध में प्रसिद्ध है कि गणित का कोई कठिन प्रश्न आने पर वे उसे हल करने की भरसक कोशिश करते थे। फिर भी हल नहीं होता तो वे थककर सो जाते थे और सोते समय स्वप्न में ही उन्हें अपने प्रश्नों का हल मिल जाता था।

इंग्लिश महाकवि कॉलरीज और प्रख्यात उपन्यासकार स्टीवेंसन ने अपनी प्रमुख कृतियों के लिये प्रेरणास्रोत स्वप्नों के माध्यम से ही उपलब्ध किये बताये हैं।

मनोविज्ञानी डैविड रेवैक ने जार्जिया विश्व विद्यालय के 433 स्नातकोत्तर छात्रों से उनके स्वप्नों के सम्बन्ध में 80 प्रश्नों की प्रश्नावली बनाकर पूछताछ की, जिससे समझदार लोगों का अनुभव एवं अभिमत इस सम्बन्ध में जाना जा सके। प्रश्नों का उत्तर देते हुये अधिकांश छात्रों ने यही बताया कि उनके बहुत सारे स्वप्न सार्थक रहे हैं और उनके सहारे उन्हें सामयिक वस्तुस्थिति तथा भावी सम्भावना के सम्बन्ध में समय-समय पर संकेत मिलते रहे हैं।

फ्रांस के डा. अलफ्रेड मरे ने प्रायः 3000 प्रामाणिक व्यक्तियों के स्वप्न अनुभव एकत्रित करके उनके निष्कर्षों को प्रकाशित किया है। इनमें अधिकांश ऐसे थे जिसे सारगर्भित सूचना मिली और वे उपयोगी सिद्ध हुईं। वे कहते हैं कि आवश्यक नहीं कि स्वप्न भविष्यदर्शी हों या अदृश्य का ही उद्घाटन करते हों। उनमें मनुष्य की अपनी शारीरिक, मानसिक स्थिति का भी दिग्दर्शन रहता है।

भारत के वायसराय लार्ड डफरिन ने एक रात डरावना सपना देखा कि कुछ हत्यारे किसी को कत्ल करके उसकी लाश को लादकर भाग रहे हैं। डफरिन उनका पीछा करते हैं। उनमें से एक को पकड़ भी लेते हैं पर जैसे ही वह पकड़ा हुआ व्यक्ति मुड़कर देखता है डफरिन उसकी भयानक आकृति को देखकर बेतरह घबड़ा जाते हैं। इस घबड़ाहट में उनकी नींद खुल गई। बात गई आई हुई, पर उसका प्रभाव इतना अधिक रहा कि कारण ढूंढ़ने की दृष्टि से उन्होंने उसे अपनी डायरी में नोट कर लिया।

समय बीता द्वितीय महायुद्ध के समय ब्रिटिश सरकार ने उन्हें फ्रांस का राजदूत बनाकर उन्हें भेजा। एक बार वे किसी महत्वपूर्ण चर्चा के लिए फ्रांस के उच्च अधिकारियों से मिलने के लिए गये। दफ्तर पांचवीं मंजिल पर था। लिफ्ट पर पैर रखने भी न पाये थे कि चालक की आकृति देखते ही वे घबड़ा गये और दस कदम पीछे हट गये। यह वही आकृति थी जो उन्होंने भारत में वायसराय रहते समय सपने में देखी थी। डफरिन सन्न खड़े रहे। लिफ्ट चली गई। किन्तु कुछ मिनट ही गुजरे होंगे कि लिफ्ट दुर्घटना ग्रस्त हो गई और उसमें सवार सभी लोग मर गये।

प्रकृति की सूक्ष्म परतों में अनेकानेक हलचलें होती रहती हैं। उन्हें समझ सकना कामकाजी मस्तिष्क के लिये सम्भव नहीं। यह अतीन्द्रिय क्षमताओं के धनी अचेतन या सुपरचेतन का काम है। अचेतन की—प्रकृति की सूक्ष्म परतों तक पहुंच है और सुपर चेतन—ब्रह्माण्डव्यापी चेतना ब्रह्म सत्ता से सम्पर्क साधने में समर्थ है। यह दोनों ही क्षेत्र सूक्ष्म शरीर की परिधि में नहीं आते। वह तो दृश्य जगत के साथ ही व्यवहार रत रहता और अनुभवों के आधार पर सोचना चाहता है और किसी निर्णय पर पहुंचता है। इसके आगे प्रकृति या ब्रह्म की रहस्यमयी परतों के साथ सम्बन्ध जोड़ने का और कोई साधन नहीं है। यह साधन उच्चस्तरीय स्वप्नों के माध्यम से ही सम्भव होता है।

व्यावहारिक जीवन में मस्तिष्क का सचेतन ही कार्यरत रहता है किन्तु जहां तक श्रद्धा-प्रज्ञा-निष्ठा की तृप्ति-तुष्टि-शान्ति का—प्रतिभा और वरिष्ठता का सम्बन्ध है, पूर्णतया वह अचेतन और सुपर चेतन की स्थिति पर निर्भर है। अतीन्द्रिय क्षमताओं का भाण्डागार उस क्षेत्र में प्रसुप्त रूप में पड़ा रहता है। इसे अपना भार हलका करने और परिष्कृत स्तर की ओर बढ़ने के लिये सचेतन के दबाव से छुटकारा पाने की आवश्यकता पड़ती है। यह कार्य योगीजन प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि के द्वारा सम्पन्न करते हैं। ‘मेडीटेशन’ के विभिन्न प्रकार और प्रयोग इसी प्रयोजन के निमित्त किये जाते हैं। समाधि की एक छोटी भूमिका उच्चस्तरीय स्वप्नों के माध्यम से भी सम्पन्न हो सकती है।

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*समाप्त*
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