जो यथार्थ नहीं है, उसे सत्य की तरह प्रत्यक्ष देखने का नाम स्वप्न है। यों रात्रि में सोते समय मनः क्षेत्र के सम्मुख जो चित्र तैरते रहते हैं उन्हें स्वप्न कहते हैं। लोग जानने पर उनकी विसंगतियों का तारतम्य देखकर आश्चर्य करते हैं और असमंजस भी। आश्चर्य इस बात का जबकि उस प्रकार का घटना क्रम घटित ही नहीं हुआ। अमुक पदार्थ, स्थान या व्यक्ति जब उपस्थित ही नहीं थे तो वे दीखते कैसे रहे। उनके साथ वार्त्तालाप एवं आदान-प्रदान कैसे चलता रहा? असमंजस इस बात का है कि अपना मस्तिष्क जो यथार्थ और असंगत के बीच भेदभाव करना भली प्रकार जानता है, दिन भर यही तो करता रहता है, फिर रात्रि में ऐसा क्या हो जाता है कि असंगत के प्रति सन्देह व्यक्त नहीं करता और उसे सत्य मानकर रस लेता रहता है। क्यों उसे मिथ्या नहीं बताता? क्यों उस मूर्खता को दुत्कार नहीं देता