आसन, प्राणायाम, बन्ध मुद्रा पंचकोश ध्यान

प्राणायाम सम्बन्धी सामान्य जानकारी

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१. प्राणायाम करने का स्थान स्वच्छ, हवादार शान्तिमय और पवित्र हो। प्राकृतिक स्थान, नदी- सरोवर का तट, पहाड़ आदि उत्तम हैं। फिर भी स्वच्छ हवादार कमरे या छत पर भी काम चलाया जा सकता है। दुर्गन्ध, सीलन, धूलयुक्त स्थान पर प्राणायाम करने से हानि भी हो सकती है।

२. प्राणायाम के लिए प्रातः- सायं का समय उपयुक्त है। भोजन करने के घण्टे बाद ही प्राणायाम किया जाय। खाली पेट प्राणायाम करना चाहिए, पर बहुत ज्यादा भूख लग रही हो, तब प्राणायाम नहीं करना चाहिए।

३. ध्यानात्मक आसन सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन आदि की स्थिति में बैठकर प्राणायाम करने चाहिए। खासकर इस बात का ध्यान रखा जाय कि मेरुदण्ड, गर्दन, कमर, छाती सीधी रहे, तो ही अनुकूल लाभ मिल सकेंगे।

४. प्राणायाम से पर्याप्त लाभ उठाने के लिए आहार- विहार का सन्तुलन, व्यवस्थित जीवनक्रम होना आवश्यक है। जीवन की मर्यादाओं का व्यतिरेक करने पर किसी भी अभ्यास से लाभ नहीं मिलता।

५. प्राणायाम का अभ्यास करने वाले का भोजन हलका, सात्त्विक, स्निग्ध, पेय आदि हैं। इस तरह रोटी, साग, दूध, घी, दलिया,चावल, खिचड़ी, फल आदि उत्तम हैं।

६. शक्ति वर्धन एवं भारी काम करने वालों का भोजन विशेष रूप से पौष्टिक, स्निग्ध और सुपाच्य होना चाहिए।

७. किसी तीव्र रोग ज्वरादि की स्थिति में प्राणायाम का अभ्यास करना वर्जित है।

८. सर्दी के मौसम में शीतली,चन्द्रभेदी,शीतकारी आदि प्राणायामों का अभ्यास नहीं करना चाहिए; किन्तु पित्त प्रधान प्रकृति वाले इन्हें सर्दी में भी कर सकते हैं।

९. गर्मी के मौसम में भस्रिका, कपालभाति, सूर्यभेदन आदि प्राणायाम नहीं करने चाहिए; पर कफप्रधान प्रकृति वाले लोग इन्हें सीमित मात्रा में कभी भी कर सकते हैं। हिमालय आदि ठण्डे स्थानों पर इन्हें सभी लोग कर सकते हैं।

१०. शीतली, सीत्कारी प्राणायाम वात प्रधान प्रकृति के लोग न करें।

११. मन की एकाग्रता के लिए तथा चित्त की चञ्चलता, विक्षिप्तावस्था को दूर करने के लिए भ्रामरी,उज्जायी,शीतली, शीतकारी आदि प्राणायाम करना हितकारी रहता है।

१२. ब्रह्मचर्य के पालन का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।

१३. पेट को हलका और मलरहित रखने का प्रयत्न करना चाहिए इससे प्राणायाम के अभ्यास में सुगमता और सिद्धि मिलती है।

१४. प्राणायाम के अभ्यास के बाद १५- २० मिनट या जितना बने विश्राम अवश्य ले लेना चाहिए।

१५. तीनों बन्धों को आवश्यकतानुसार अवश्य लगाना चाहिए।

१६. प्राणायाम करते समय छाती को फुलाना चाहिए इससे फेफड़े और अवयवों को विकास के लिए काफी सहायता मिल जाती है।

१७. जो व्यक्ति आध्यात्मिक दृष्टि से प्राणायाम करते हैं उनको पूरक, कुम्भक आदि का समय क्रमशः बढ़ाते चलना चाहिए; किन्तु इतना अधिक नहीं, कि घुटन महसूस हो।

१८. जो व्यक्ति केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से प्राणायाम करते हैं, उनको पूरक, कुम्भक आदि का समय कम रखने का ही प्रयत्न करना चाहिए।

१९. प्राणायाम थोड़े से प्रारम्भ कर क्रमशः मात्रा बढ़ायें। सामर्थ्य अनुसार ही प्राणायाम करें। कुशल मार्गदर्शन में प्राणायाम करने से शीघ्र सफलता मिलती है।
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