प्रज्ञा परिजनों में से जिन्हें भी लोक सेवा के क्षेत्र में प्रवेश करना है उन सभी को कुछ मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए। सेवा कार्य जितना महत्त्वपूर्ण है, उससे भी अधिक लोक सेवी के व्यक्तित्व की प्रखरता का मूल्य है। मिशन को लोकप्रिय बनाने में, दूसरों को प्रभावित, परिवर्तन करने, सुधारने, उभारने में प्रयासों का जितना प्रभाव होता है, उससे कहीं अधिक सफल लोकसेवी के चिंतन, चरित्र, स्वभाव पर आधारित व्यक्तित्व का पड़ता है। इस प्राथमिक आवश्यकता की पूर्ति प्रज्ञा अभियान के हर सदस्य- युग शिल्पी को पूरी करनी चाहिए- इस संदर्भ में मोटी मर्यादाएँ यह हैं-
(१) चटोरेपन की आदत छोड़ें। किसी के घर जाकर अपनी स्वाद लिप्सा को प्रकट न होने दें। (२) महिलाओं से एकान्त वार्ता न करें। जब उनसे कुछ कहना हो तो आँख नीची रख कर वार्ता करें । (३) हिसाब शीशे की तरह साफ रखें। जहाँ से जो पैसा प्राप्त हो उसकी रसीद भिजवायें, खर्च का हिसाब प्रमाण सहित नोट करायें। (४) वार्ता तथा व्यवहार में अपनी नम्रता तथा दूसरों के सम्मान का समुचित ध्यान रखें। (५) वेश विन्यास में ब्राह्मणोचित सादगी रखें, विशेषतया केश- सज्जा तथा अन्य प्रकार की शृंगारिकता से बचें ।
इन सूत्रों को आगे के लेखों में क्रमशः अधिक स्पष्ट किया गया है।