लोकसेवियों के लिए दिशाबोध

अपने अंग अवयवों से

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   [सूक्ष्मीकरण साधना के दौरान नैष्ठिक कार्यकर्त्ताओं के लिए पूज्य गुरुदेव द्वारा लिखा गया एक विशेष निर्देश पत्र]

     यह मनोभाव हमारी तीन उँगलियाँ मिलकर लिख रही हैं। पर किसी को यह नहीं समझना चाहिए कि जो योजना बन रही है और कार्यान्वित हो रही है, उसे प्रस्तुत कलम, कागज या उँगलियाँ ही पूरा करेंगी। करने की जिम्मेदारी आप लोगों की, हमारे नैष्ठिक कार्यकर्ताओं की हैं ।   

    इस विशालकाय योजना में प्रेरणा ऊपर वाले ने दी है। कोई दिव्य सत्ता, बता या लिखा रही है। मस्तिष्क और हृदय का हर कण- कण, जर्रा- जर्रा उसे लिखा रहा है। लिखा ही नहीं रहा है, वरन् उसे पूरा कराने का ताना- बाना भी बुन रहा है। योजना की पूर्ति में न जाने कितनों का, कितने प्रकार का मनोयोग और श्रम, समय, साधन आदि का कितना भाग होगा। मात्र लिखने वाली उँगलियाँ न रहें या कागज कलम चुक जाये तो भी कार्य रुकेगा नहीं। क्योंकि रक्त का प्रत्येक कण और मस्तिष्क का प्रत्येक अणु उसके पीछे काम कर रहा है। इतना ही नहीं, वह दैवी सत्ता भी सतत सक्रिय है, जो आँखों से न तो देखी जा सकती है और न दिखाई जा सकती है ।   

    योजना बड़ी है, उतनी ही बड़ी जितना कि बड़ा उसका नाम है- ‘ युग परिवर्तन ’। इसके लिए अनेक वरिष्ठों का महान् योगदान लगना है, उसका श्रेय संयोगवश किसी को भी क्यों न मिले ।   

    प्रस्तुत योजना को कई बार पढ़ें। इस दृष्टि से कि उसमें सबसे बड़ा योगदान उन्हीं का होगा जो इन दिनों हमारे कलेवर के अंग- अवयव बनकर रह रहे हैं। आप सबकी समन्वित शक्ति का नाम ही वह व्यक्ति है जो इन पंक्तियों को लिख रहा है ।   

    कार्य कैसे पूरा होगा? इतने साधन कहाँ से आएँगे? इसकी चिन्ता आप न करें। जिसने करने के लिए कहा है, वही उसके साधन भी जुटायेगा। आप तो सिर्फ एक बात सोचें कि अधिकाधिक श्रम व समर्पण करने में एक दूसरे में कौन अग्रणी रहा ?

    साधन, योग्यता, शिक्षा आदि की दृष्टि से हनुमान उस समुदाय में अकिंचन थे। उनका भूतकाल भगोड़े सुग्रीव की नौकरी करने में बीता था, पर जब महती शक्ति के साथ सच्चे मन और पूर्ण समर्पण के साथ लग गए, तो लंका दहन, समुद्र छलांगने और पर्वत उखाड़ने का, राम- लक्ष्मण को कंधे पर बिठाये फिरने का श्रेय उन्हें ही मिला। आप लोगों में से प्रत्येक से एक ही आशा और अपेक्षा है कि कोई भी परिजन हनुमान से कम स्तर का न हो, अपने कर्तृत्व में कोई भी अभिन्न सहचर पीछे न रहे ।   

    काम क्या करना पड़ेगा? यह निर्देशन और परामर्श आप लोगों को समय- समय पर मिलता रहेगा। वह तो समय की बात है। काम बदलते भी रहेंगे और बनते- बिगड़ते भी रहेंगे। आप लोग तो सिर्फ एक बात का स्मरण रखें कि जिस समर्पण भाव को लेकर घर से चले थे, पहले लेकर आए थे, उसमें दिनों- दिन बढ़ोत्तरी होती रहे, कहीं राई- रत्ती भी कमी न पड़ने पाये ।   

    कार्य की विशालता को समझें। लक्ष्य तक निशाना न पहुँचे तो भी वह उस स्थान तक अवश्य पहुँचेगा, जिसे अद्भुत, अनुपम, असाधारण और ऐतिहासिक कहा जा सके। इसके लिए बड़े साधन चाहिए, सो ठीक है, उसका भार दिव्य सत्ता पर छोड़ें। आप तो इतना ही करें कि आपके श्रम, समय, गुण- कर्म, स्वभाव में कहीं भी कोई त्रुटि न रहे। विश्राम की बात न सोचें, अहर्निश एक ही बात मन में रहे कि हम इस प्रस्तुतीकरण में पूर्णरूपेण खपकर कितना योगदान दे सकते हैं? कितना भार उठा सकते हैं? स्वयं को अधिकाधिक विनम्र बनाएँ, दूसरों को बड़ा मानें। स्वयंसेवक बनने में गौरव अनुभव करें। इसी में आपका बड़प्पन है ।   

    अपनी थकान और सुविधा की बात न सोचें। जो कर गुजरें, उसका अहंकार न करें, वरन् इतना ही सोचें की हमारा चिंतन, मनोयोग एवं श्रम कितनी अधिक ऊँची भूमिका निभा सका? कितनी बड़ी छलाँग लगा सका? यही आपकी अग्रि परीक्षा है। इसी में आपका गौरव और समर्पण की सार्थकता है। अपने साथियों की श्रद्धा व क्षमता घटने न दें, उसे दिन- दूनी रात चौगुनी बढ़ाते रहें।     

    स्मरण रखें की मिशन का काम अगले दिनों बहुत बढ़ेगा, अब से कई गुना। इसके लिए आपकी तत्परता ऐसी होनी चाहिए जिसे ऊँचे से ऊँचे दर्जे का कहा जा सके, आपका अन्तराल जिसका लेखा- जोखा लेते हुए अपने को कृत- कृत्य अनुभव करे। हम फूले न समाएँ और प्रेरक सत्ता आपको इतना घनिष्ठ बनाए जितना की राम पंचायत में छठे हनुमान भी घुस पड़े थे ।   

    कहने का सारांश इतना ही है आप नित्य अपनी अन्तरात्मा से पूछें कि जो हम कर सकते थे, उसमें कहीं राई- रत्ती त्रुटि तो नहीं रही? आलस्य प्रमाद को कहीं चुपके से आपके क्रिया- कलापों में घुस पड़ने का अवसर तो नहीं मिल गया? अनुशासन में व्यतिरेक तो नहीं हुआ? अपने कृत्यों को दूसरे से अधिक समझने की अहंता कहीं छद्म रूप में आप पर सवार तो नहीं हो गयी ?   

    यह विराट् योजना पूरी होकर रहेगी। देखना इतना भर है कि इस अग्रि परीक्षा की वेला में आपका शरीर, मन और व्यवहार कहीं गड़बड़ाया तो नहीं। ऊँचे काम सदा ऊँचे व्यक्तित्व करते हैं। कोई लम्बाई से ऊँचा नहीं होता, श्रम, मनोयोग, त्याग और निरहंकारिता ही किसी को ऊँचा बनाती है। अगला कार्यक्रम ऊँचा है। आपकी ऊँचाई उससे कम न पड़ने पाए, यह एक ही आशा, अपेक्षा और विश्वास आप लोगों पर रखकर कदम बढ़ रहे हैं। आप में से कोई इस विषम वेला में पिछड़ने न पाए, जिसके लिए बाद में पश्चाताप करना पड़े।


-श्रीराम शर्मा आचार्य

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