गायत्री के पाँच-रत्न

गायत्री स्तोत्र

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सुकल्याणीं वाणीं सुरमुनिवरैः पूजितपदाम् ।
शिवामाद्यां वन्द्यां त्रिभुवनमयीं वेदजननीम् ।
परांशक्तिंस्रष्टुं विविध विधि रूपां गुणमयीम् ।
जजेऽम्बा गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ।।1।।


मां गायत्री वाणी का कल्याण करने वाली है। सर, मुनि द्वारा इसकी पूजा की जाती है। इसे शिवा कहते हैं। यह आद्या है, त्रिभुवन में वन्दनीय है, वेद-जननी है, पराशक्ति है, गुणमयी है तथा विविध रूप धारण करे प्रादुर्भूत होती है। इस माता गायत्री का जो सौभाग्य और आनन्द का सृजन करती है, उसका हम भजन करते हैं ।1।

विशुद्धां सत्त्वस्थामखिल दुरवस्थादिहरणम् ।
निराकारां सारां सुविमल तपो मूर्त्तिमतुलाम् ।।
जगज्ज्येष्ठां श्रेष्ठामसुरसुरपूजां श्रुतिनुताम् ।
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ।।2।।


यह दयामयी विशुद्ध तत्व वाली-सात्वमयी तथा समस्त दुःख, दोष एवं दुरावस्था हरने वाली है। यह निराकार है, सारभूत है और अतुल तप की मूर्ति एवं विमल है। यह संसार में सबसे महान् है, ज्येष्ठ है, देवता तथा असुरों से पूजित है। उस सौभाग्य एवं आनन्द की जननी माता गायत्री का हम भजन करते हैं ।2।

तपोनिष्ठाभष्ठांस्वजनमन सन्ताप शमनीम् ।
दयामूर्ति स्फूर्ति यतितति प्रसादैक सुलुभाम् ।।
वरेण्यां पुण्यां तां निखिल भव बन्धापहरणीम् ।
भ्जऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ।।3।।


इस महाशक्ति का तपोनिष्ठ रहना ही अभीष्ट है। यह स्वजनों के मानसिक संतापों का शमन करने वाली है। यह स्फूर्तिमयी है, दयामूर्ति है और उसकी प्रसन्नता प्राप्त कर लेना अत्यंत सुलभ है। वह संसार के समस्त बंधनों को हरण करने वाली है एवं वरण करने योग्य है। उस परम सौभाग्य एवं आनन्द की जननी माता गायत्री का हम भजन करते हैं ।3।

सदाराध्यां साध्यां सुमति मति विस्तारकरणीम् ।
विशोकामालोकां हृदयगत मोहान्ध हरणीम् ।।
परा दिव्यां भव्यामगमभवसिन्ध्वेक तरणीम् ।
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ।।4।।


मातेश्वरि निरन्तर आराधना करने योग्य है और उसकी आराधना करना अत्यन्त साध्य है। वह सुमति का विस्तार करने वाली है। वह प्रकाशमय है और शोक रहित है और वह हृदय में रहने वाले मोहांधकार को दूर करने वाली है। वह परा है, दिव्य है, अगम्य संसार सागर से तरने के लिए नौका के समान है, उस परम सौभाग्य एवं आनन्द की जननी माता गायत्री का हम भजन करते हैं ।4।

अजां द्वैतां त्रैतां विविधगुणरूपां सुविमलाम् ।
तमो हन्त्रीं-तन्त्रीं मधुरनादां रसमयीम् ।।
महामान्यां धन्यां सततकरुणाशील विभवाम् ।
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ।।5।।


वही अजन्मा है, द्वैता तथा त्रैता भी है, त्रिगुण एवं सुविमल रूपमयी है। तम को दूर करती है। विश्व की संचालिका है। वाणी सुनने में मधुर रसमयी है। व महामान्या है, धन्या है और उसका वैभव निरन्तर करुणाशील है। उस परम सौभाग्य एवं आनन्द की जननी माता गायत्री का हम भजन करते हैं ।5।

जगद्धात्रीं पात्रीं सकल भव संहार करणीम् ।
सुविरां धीरां तां सुविमल तपो राशि सरणीम् ।।
अनेकामेकां वै त्रियजगत्सदधिष्ठानपदवीम् ।
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ।।6।।


वही संसार की माता है और सकल संसार को संहार करने की भी उसकी शक्ति है। वह वीर है, और उसका जीवन पवित्र तपोमय है। वह एक होते हुए भी अनेक है। उसकी पदवी संसार की अधिष्ठानदात्री की है। उस परम सौभाग्य एवं आनन्द की जननी माता गायत्री का हम भजन करते हैं ।6।

प्रबुद्धां बुद्धां तां स्वजनतति जाड्यापहरणीम् ।
हिरण्यां गण्यां तां सुकविजन गीतां सुनिपुणीम् ।।
सुविद्यां निरवद्याममल गुणगाथां भगवतीम् ।
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ।।7।।


मां गायत्री प्रबुद्ध है, बोधमयी है, स्वजनों की जड़ता को नाश करने वाली है, हिरण्यमयी है, जिसकी निपुणता सुकविजनों द्वारा गाई जाने वाली है। निरवद्य है, उसके गुणों की गाथा अकथनीय है। वह भगवती अम्बा गायत्री उस परम सौभाग्य एवं आनन्द की जननी है, मैं उसका भजन करता हूं ।7।

अनन्तां शान्तां यां भजति बुध वृन्दः श्रुतिमयीम् ।
सुगेयां ध्येयां यां स्मरति हृदि नित्यं सुरपतिः ।।
सदा भक्त्या शक्त्या प्रणत मतिभिः प्रीतिवशगाम् ।
भजेऽम्बां गायत्रीं परमसुभगानन्दजननीम् ।।8।।


वह अनन्त है, शान्त है, इसका भजन करके पण्डित लोग वेदमय हो जाते हैं। इसका गान, ध्यान तथा स्मरण इन्द्र नित्यप्रति हृदय से करता है। सदा भक्तिपूर्वक, शक्ति के साथ, आत्म-निवेदन पूर्वक, प्रेमयुक्त आनन्द एवं सौभाग्य की जननी माता गायत्री की मैं उपासना करता हूं ।9।

शुद्ध चित्ता पठेद्यस्तु गायत्र्या अष्टकं शुभम् ।
अहो भाग्यो भवेल्लोके तस्मिन् माता प्रसीदति ।।9।।

 

इस शुभ गायत्री अष्टक को जो लोग शुद्ध चित्त होकर पढ़ते हैं, वे इस संसार में भाग्यवान् हो जाते हैं और माता की उन पर पूर्ण कृपा रहती है ।9।





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