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February 1991

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मैंने चार गुरु चुने है और उन्हें हर दिन याद रक्खा है। एक भगवान दूसरा माँ, तीसरे नेकी करने वाले और खुश रहने वाले, चौथे बुराई की राह पर कदम बढ़ाने वाले और पग-पग पर ठोकर खाने वाले।

कुमारी सैडलर के इस लोक सेवी व्यक्तित्व और तितिक्षामय जीवन का,क्षेत्र वालों पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि कार्य में आशा से अधिक प्रगति होने लगी। साथी कार्यकर्ताओं को “स्वयं गढ़े व्यक्तित्व करते है, औरों का निर्माण” इस सूत्र की सार्थकता समझ में आ रही थी।

जब कुछ महिलाओं ने उनसे आर्थिक सहायता की प्रार्थना की तो वे बोलीं “बहनों! दूसरों की मदद क्यों माँगती हो? अपनी ही शक्ति को जगाइए। भगवान ने आपको बहुत कुछ दिया है। इस धरती में और आपके दिल में सब कुछ है। मेरा तो अपना घर भी नहीं। मेरी आवश्यकताएँ समाज पूरी करता है और मैं उसकी सेवा करती हूँ।” उनकी इस निष्ठ ने उन्हें आत्म परितोष और उल्लास के ऐसे वरदान दे डाले जिनका कभी क्षय नहीं होता। साथ ही उनके जीवन ने फैलाया प्रेरणा का प्रकाश, जिसे ग्रहण कर भारतीय नारियाँ वह मजबूत नींव बना सकती हैं, जिस पर नारी युग की चिरस्थायी संस्थापना हो सके।

*समाप्त*


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