Unknown column 'navbar' in 'where clause'
चारों वेदों में तीन विषय, जो ऋषियों ने बतलाये हैं। वे इस गागर गायत्री में, सागर की तरह समाये हैं॥
जो इस गागर को गा-गा कर, सारे जग में गुँजा देगा। उसको भगवान सुगमता से, भव सागर पार लगा देगा॥
इस महामंत्र को जो निशिदिन, नर तन पाकर नहिं ध्याता है। वह ज्ञान हीन होकर जग में, नर पशु की पदवी पाता है॥
यह सारे भव-भय हरणी है, यह सत्य ज्ञान की सरणी है। तर जाओगे जो ध्याओगे, यह भव सागर की तरणी है॥
वेदों की है एक जान यही, योगियों का है यह ध्यान सही। गन्धर्वों का है गान यही, भक्तों की है एक शान यही॥
देवों की है सुर तान यही, ज्ञानियों का है धन मान यही। वह महामलिन मानव होगा, जिस हृदय में इसका स्थान नहीं॥
माँ ने अपने अनन्त ज्ञान से, दिया है एक इनाम यही। नस-नस को इसमें स्नान करा, है सबसे सुन्दर काम यही॥
जो गायत्री माँ के चरणों में, निशिदिन शीश नवाता है। रहती न उसको चाह कोई, वह शहनशाह बन जाता है॥