जिससे जनता का चित्त शुद्ध होता है वही साहित्य है। पोथी का कुआँ डुबाता नहीं और पोथी की नैया तारती भी नहीं है असंख्य अक्षर पोथी में मिलते हैं किन्तु उनका अर्थ खोजना है। मन भर चर्चा करने के आचरण श्रेष्ठ हैं। ज्ञानवंत प्राणी इसे जीवन में उतारता है।
-सतवर
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धर्म-ग्रन्थों का कोई कितना ही पाठ करे, यदि वह प्रमादवश तद्नुसार आचरण नहीं करता तो वह दूसरे की गौवें गिनने वाले ग्वाल की तरह ही है। और चाहे थोड़ा ही पाठ करे, लेकिन यदि राग, द्वेष तथा मोह से रहित हो धर्मानुसार आचरण करता है तो ऐसा बुद्धिमान् अनासक्त ही श्रमणत्व का भागी होता है।
—भगवान बुद्ध