बड़े आदमी नहीं महामानव बनें

बड़प्पन का मापदण्ड—सादगी और शालीनता

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सामान्य जनों की बड़प्पन की परिभाषा यह है कि अधिक से अधिक लोगों का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हो। ज्यादा लोग उनकी चर्चा करें। इसके लिए वे फैशन, सजधज, ठाट-बाट, और अमीरों जैसा खर्च करके लोगों पर यह प्रभाव जमाने की असफल चेष्टा करते हैं कि वे विशिष्ट हैं। परोक्ष रूप में इस सजधज के पीछे यह आग्रह रहता है कि उनकी विशेष स्थिति को स्वीकार किया जाये, उनके बारे में बार-बार सोचा जाये। यह उद्देश्य पूरा करने के लिए जितना आडम्बर रचना पड़ता है, जितना सरंजाम जुटाना पड़ता है और जितना समय खर्च करना पड़ता है, उसे सामान्य रूप से नहीं किया जा सकता। उसके लिए असामान्य तरीके अपनाने पड़ते हैं। अतिरिक्त साधन जुटाने के लिए सीधे तरीकों से तो काम नहीं चलता। उसके लिए अपनानी पड़ती हैधूर्तता, नाटकीयता, उच्छृंखलता, आडम्बर और पाखण्ड। क्योंकि इतने साधन और सरंजाम बिना छद्म नीति अपनाये तो जुटाये नहीं जा सकते, इतना बड़ा ढांचा बिना बेईमानी किये तो खड़ा नहीं किया जा सकता, जिसे कि लोग घूर-घूर कर देखें और उस सम्बन्ध में बार-बार सोचें।

लोग यह भूल जाते हैं कि बड़प्पन और महानता केवल सादगी तथा शालीनता अपनाने से ही प्राप्त होती है। यह बात अलग है कि सीधी, सरल और सज्जनता की नीति अपनाकर तत्काल ही चर्चा का विषय नहीं बना जा सकता। इसमें देर लगती है, परन्तु बड़ा बनने का राजमार्ग यही है। महानता या बड़प्पन वट वृक्ष की तरह हैं, जिसका विकास क्रमबद्ध ढंग से ही होता है। उसकी अभिवृद्धि एवं सुरक्षा के लिए लम्बे समय तक तत्परता और सतर्कता का खाद पानी मिलना चाहिए। जिन्हें वाहवाही की आतुरता है, वे इतनी प्रतीक्षा क्यों करेंगे और सज्जनता एवं प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए कष्ट क्यों सहेंगे? आतुरता के लिए इतने महंगे मूल्य पर वाहवाही खरीद सकना कठिन ही है। उसके लिए धूर्तता ही सरल उपाय रह जाता है। उसमें कहीं कोई त्याग करने या शौर्य, साहस प्रदर्शित करने की आवश्यकता पड़ती है तो वह नाटकीयता और उच्छृंखलता के ऐसे तरीके अपनाने भर से पूरी हो जाती है जो सर्वसाधारण के स्वभाव में सम्मिलित नहीं है। ऐसे काम जिनमें दूसरों की हानि में भी अपने लाभ की दृष्टि प्रमुख रखी जाती है अनैतिक ही कहे जायेंगे। अनैतिक सही क्षुद्रता से भरे तो होते ही हैं। उन्हें ओछे, बचकाने एवं छिछोरे भी कहा जा सकता है। नाटकीय सजधज बनाने वाले लोग प्रायः ऐसी आत्महीनता से ग्रस्त होते हैं।

इस तरह की आत्महीनता से ग्रस्त लोगों की क्षुद्रता का मनोरंजक वर्णन अंग्रेजी उपन्यासकार सामरसेट माम ने अपनी पुस्तक दि सामंग अपमें किया है। इस पुस्तक में माम ने ऐसे बचकाने लोगों की मनःस्थिति, तर्क एवं मान्यताओं का विवरण देते हुए उन पर करारा व्यंग किया है और यह भी बताया है कि ऐसे आतुर व्यक्ति ही आतंकवादी बनते, उद्धत आचरण करते और गुण्डागर्दी अपनाते हैं। यहां तक कि अपराधी बन कर फांसी पर चढ़ने के लिए भी तैयार हो जाते हैं। चर्चा बुरी ही क्यों हो, पर होनी अवश्य चाहिए, यह उनकी धारणा होती है। अनेकों आततायी और अपराधी किसी अभाव के कारण नहीं बल्कि इसी उद्धत ओछेपन से पीड़ित होकर कुकृत्य करने पर उतारू हो जाते हैं और अपनी गणना शूरवीरों में कराने की सनक लेकर इस कदर अनाचार-दुराचार करने की पैशाचिकता अंगीकार करते हैं।

कई लोग अपनी शक्ति और प्रभाव की सार्थकता इसी बात में समझते हैं कि उसके द्वारा वे दूसरों को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह एक भ्रान्त धारणा ही कही जाएगी कि दूसरों को नुकसान पहुंचाने की क्षमता का नाम शक्ति है। ऐसे कृत्य प्रायः लुक छिपकर ही किये जाते हैं। असावधान व्यक्ति पर छिपकर पीछे से हमला करके तो कोई अदना सा आदमी भी किसी सशक्त व्यक्ति के प्राण हरण कर सकता है। पीठ पीछे से वार करने में क्या दिक्कत है? विश्वास घात करने की धूर्तता में कौन-सा बड़प्पन है? इसकी तुलना में सज्जनता और शालीनता से दूसरों को प्रभावित करने की रीति-नीति अपनाई जाये तो यह अनुभव का ही विषय है कि वह कितनी असरकारक होती है और यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि बड़प्पन के लिए जिस सज्जनता की आवश्यकता पड़ती है वह नाटकीयता, बनावटीपन से पूरी नहीं होती, बल्कि उसे स्वभाव का, चरित्र का एक अंग बनाना होता है। यह काम समय और श्रम साध्य ही नहीं है, इसके लिए आदर्शवादिता पर दृढ़ रहने का मनोबल आत्मबल भी चाहिए। कहना नहीं होगा कि इस स्तर का बड़प्पन साधनात्मक जीवन अपना कर ही प्राप्त किया जा सकता है।

सौजन्यता और शालीनता को कुंठित करने वाले कई कुसंस्कार हैं जो हमें असभ्य और भ्रष्ट बनाते चले जाते हैं। दूसरों को छोटा बनाकर अपने आपको बड़ा सिद्ध करने का तरीका गलत है। सच्चाई की दृष्टि से औरों से आगे बड़ा जाए यही स्वस्थ प्रतियोगिता है। श्रेष्ठता की प्रतियोगिता में आगे निकलने के उत्साह को सराहा जा सकता है, पर साथियों को लात मार कर गिरा देना और इस स्थिति का लाभ उठा कर अपने को विजेता घोषित करना तो सराहनीय है तथा ही यथेष्ट। इसी प्रकार अपनी वर्तमान स्थिति से खीझे रहना भी शील सौजन्य के विपरीत है। जो उपलब्ध है उस पर प्रसन्नता भरा सन्तोष अनुभव करें और साथ ही आगे बढ़ने का उत्साह भी जारी रखें। इतना कर लिया जाये तो प्रसन्न रहने और शील सदाचार का पालन करने के लिए पर्याप्त है किन्तु जो सदा असन्तुष्ट ही रहते हैं, खीझते रहते हैं उनकी खीझ और खिन्नता उनकी शक्तियों को नष्ट करती है।

अहंकार व्यक्ति को दूसरों से प्राप्त होने वाली सद्भावनाओं से वंचित करता है। दूसरों का व्यंग उपहास करके कई व्यक्ति अपना बड़प्पन सिद्ध करने की चेष्टा करते हैं। कई सम्वेदन शून्य सहानुभूति रहित और निर्भय प्रकृति के व्यक्ति दूसरों की स्थिति समझे बिना ही उनके व्यवहार और आचरण पर उलटी-सीधी टिप्पणियां करते रहते हैं। उन्हें दूसरों की स्थिति समझने का अवकाश ही नहीं रहता और उनका हृदय इतना विशाल होता है कि किस कारण किस पर क्या बीत रही है? यह अनुभव कर सके। इन प्रवृत्तियों के रहते उस शील सौजन्य का विकास नहीं हो सकता, जिससे मनुष्य अपनी तथा दूसरों की आंखों में ऊंचा उठता तथा सम्मानित बनता हो।

यदि तत्काल बड़प्पन पाने या बड़ा बनने की आतुरता हो और सम्पर्क क्षेत्र में अपने लिए भावभरा सम्मान प्राप्त करने की सच्ची आकांक्षा हो तो उसका सुनिश्चित मार्ग है सज्जनता अपनाई जायें। अपने सम्पर्क क्षेत्र के सभी व्यक्तियों से व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण रखा जाए। व्यवहार और आचरण न्याय संगत रहें। यदि स्वार्थों में कहीं कोई टकराव होता हो, पीछे हटने से थोड़ा बहुत घाटा भी पड़ता हो तो उसे सह लिया जाये किन्तु सद्भाव गंवा देने की क्षति ऐसी है जो अन्ततः अधिक घाटे को सिद्ध होगी। जब तक टकराव का कोई बहुत ही बड़ा कारण हो, सामने वाले का पथ अनैतिकतापूर्ण हो तब तक व्यवहार कुशलता इसी में है कि सद्भावों को बनाये ही रखा जाये।

सौजन्यता का प्रभाव निजी जीवन में सादगी के रूप में दीखता है और व्यवहार क्षेत्र में वह विनयशीलता के रूप में दिखाई पड़ता है। उसमें दूसरों के सम्मान का भाव है कि छोटापन प्रदर्शित करने का। किसी का सम्मान करने का अर्थ है बदले में उसका सम्मान पाना। दूसरे कम कीमत में सम्मान पाने की बात बन ही नहीं सकती। सादगी से रहा जाए, शालीनता बरती जाये और दूसरों को सन्तुष्ट रख कर उन पर अपना प्रभाव छोड़ने की कला सीखी जाये, इससे बढ़कर अपने आपको बड़ा बनाने ऊंचा उठाने का कोई श्रेष्ठ उपाय है ही नहीं। 

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