बड़े आदमी नहीं महामानव बनें

न जाने किस कारण लोगों के मन में यह भ्रम पैदा हो गया है कि ईमानदारी और नीतिनिष्ठा अपनाकर घाटा और नुकसान ही हाथ लगता है। सम्भवतः इसका कारण यह है कि लोग बेईमानी अपना कर छल-बल से, धूर्तता और चालाकी द्वारा जल्दी-जल्दी धन बटोरते देखे जाते हैं। तेजी से बढ़ती सम्पन्नता देखकर देखने वालों के मन में भी वैसा ही वैभव अर्जित करने की आकांक्षा उत्पन्न होती है। वे देखते हैं कि वैभव सम्पन्न लोगों का रौब और दबदबा रहता है। किन्तु ऐसा सोचते समय वे यह भूल जाते हैं कि बेईमानी और चालाकी से अर्जित किये गए वैभव का रौब और दबदबा बालू की दीवार ही होता है, जो थोड़ी-सी हवा बहने पर ढह जाता है तथा यह भी कि वह प्रतिष्ठा दिखावा, छलावा मात्र होती है क्योंकि स्वार्थ सिद्ध करने के उद्देश्य से कतिपय लोग उनके मुंह पर उनकी प्रशंसा अवश्य कर देते हैं, परन्तु हृदय में उनके भी आदत भाव नहीं होता।

इसके विपरीत ईमानदारी और मेहनत से काम करने वाले, नैतिक मूल्यों को अपनाकर नीतिनिष्ठ जीवन व्यतीत करने वाले भले ही धीमी गति से प्रगति करते हों परन्तु उनकी प्रगति ठोस होती है तथा उनका सुयश देश काल की सीमाओं को लांघकर विश्वव्यापी और अमर हो जाता है, अंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्यकार जार्ज बर्नार्ड शॉ को कौन नहीं जानता। उन्होंने अपना जीवन प्रॉपर्टी डीलर के यहां उसके कार्यालय में क्लर्क की नौकरी से आरम्भ किया था।

प्रॉपर्टी डीलर और भी कई काम करता था तथा मकानों को किराये पर उठाना, बीमा एजेन्सी चलाना आदि। उसके यहां शॉ का काम था मकानों तथा अन्य स्थानों के किराये वसूल करना, बीमे की किश्तें उगाना, टैक्सों की वसूली और अदायगी करना। ये काम करते समय उन्हें बड़ी-बड़ी रकमों का लेन-देन करना पड़ता था और बड़े-बड़े प्रतिष्ठित व्यक्तियों से सम्पर्क करना पड़ता था। स्वभाव से बर्नार्ड शॉ इतने विनम्र थे कि किसी के साथ सख्ती या जोर जबर्दस्ती नहीं कर पाते थे और लोग थे कि उनकी परवाह ही नहीं करते।
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न जाने किस कारण लोगों के मन में यह भ्रम पैदा हो गया है कि ईमानदारी और नीतिनिष्ठा अपनाकर घाटा और नुकसान ही हाथ लगता है। सम्भवतः इसका कारण यह है कि लोग बेईमानी अपना कर छल-बल से, धूर्तता और चालाकी द्वारा जल्दी-जल्दी धन बटोरते देखे जाते हैं। तेजी से बढ़ती सम्पन्नता देखकर देखने वालों के मन में भी वैसा ही वैभव अर्जित करने की आकांक्षा उत्पन्न होती है। वे देखते हैं कि वैभव सम्पन्न लोगों का रौब और दबदबा रहता है। किन्तु ऐसा सोचते समय वे यह भूल जाते हैं कि बेईमानी और चालाकी से अर्जित किये गए वैभव का रौब और दबदबा बालू की दीवार ही होता है, जो थोड़ी-सी हवा बहने पर ढह जाता है तथा यह भी कि वह प्रतिष्ठा दिखावा, छलावा मात्र होती है क्योंकि स्वार्थ सिद्ध करने के उद्देश्य से कतिपय लोग उनके मुंह पर उनकी प्रशंसा अवश्य कर देते हैं, परन्तु हृदय में उनके भी आदत भाव नहीं होता।

इसके विपरीत ईमानदारी और मेहनत से काम करने वाले, नैतिक मूल्यों को अपनाकर नीतिनिष्ठ जीवन व्यतीत करने वाले भले ही धीमी गति से प्रगति करते हों परन्तु उनकी प्रगति ठोस

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