हम जड़ नहीं, प्रगतिशील बनें

December 1967

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परिवर्तन एक अनिवार्य प्रक्रिया है। संसार की हर वस्तु समयानुसार बदलती है। शैशव, यौवन, बुढ़ापा और मृत्यु की शृंखला ही इस संसार को गतिशील, स्वच्छ और सुन्दर बनाये हुए है। जड़ता तो केवल कुरूपता उत्पन्न करती है।

सामाजिक ढर्रे जब बहुत पुराने हो जाते हैं तब उनमें जीर्णता और कुरूपता उत्पन्न हो जाना स्वाभाविक है। इसे सुधारा और बदला जाना चाहिए। समय की प्रगति से जो पिछड़ जाते हैं उन्हें कुचलते हुए समय आगे बढ़ जाता है।

ऋतुओं के परिवर्तन के साथ-साथ आहार-विहार की रीति-नीति बदलनी पड़ती है। युग की माँग और स्थिति को देख कर हमें सोचना चाहिए कि वर्तमान की आवश्यकताएं हमें क्या सोचने और क्या करने के लिए विवश करती हैं। विचारशीलता की यही माँग है कि आज की समस्याओं को समझा जाय और सामयिक साधनों से उन्हें सुलझाने का प्रयत्न किया जाय।

जो पुराना सो ठीक-जो अभ्यास में है वह सही-यह आग्रह बौद्धिक जड़ता का चिन्ह है। जीवित मनुष्यों को जड़ नहीं होना चाहिए। चेतनता ही मनुष्य की शोभा है। चेतनता इस बात में है कि वर्तमान को समझें और मनुष्य में निर्माण का सुदृढ़ आधार निर्मित करें।

-डॉ. सनयात सेन


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