प्रश्नोत्तरेण चानेन तत्रत्यानामभून्मूहान् ।
सन्तोषस्तु सतां तस्माद् युगधर्मानुरूपत: ।। ७९ ।।
तीर्थयात्राऽभिसम्बद्धां पुण्यां ना च परम्पराम् ।
सोत्साह तैर्विधातुं तु निश्चितं समुंदायगै: ।।८०।।
शान्तिपाठेन चाऽन्योन्यं वन्दनक्रियया समम्।
सत्संगोऽघतनस्तत्र समाप्ति प्रययौ शुभ: ।। ८१ ।।
टीका-इस प्रश्नोत्तर क्रम से सभी' उपस्थित संत समुदाय को बड़ा संतोष हुआ । उनने युग धर्म की दृष्टि से तीर्थयात्रा कीं पुण्य परंपरा को और भी अधिक उत्साह के साथ चलाने का निश्चय किया । शांति पाठ और अभिवादन की प्रक्रिया के साथ आज का संत समागम विसर्जित हो गया
।।७९- ८१।।
इति श्रीमत्प्रज्ञापुराणेब्रह्यविद्याऽऽत्मविद्ययोः,
युगदर्शनयुगसाधनाप्रकटीकरणयो:
श्री आश्वलायन-ऐतरेय देवमानव-समीक्षे, ति
प्रकरणो नाम प्रथमोऽध्याय: ।। १ ।।