भारतीय
इतिहास-पुराणों में ऐसे अगणित उपाख्यान है, जिनमें मनुष्य के सम्मुख उगने
वाली अगणित समस्याओं के समाधान विद्यमान हैं । उन्हीं में से सामयिक
परिस्थिति एवं आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए कुछ का ऐसा चयन किया गया है,
जो युग समस्याओं के समाधान में आज की स्थिति के अनुरूप योगदान दे सके ।
सर्वविदित
है कि दार्शनिक और विवेचनात्मक प्रवचन-प्रतिपादन उन्हीं के गले उतरते हैं,
जिनकी मनोभूमि सुविकसित है, परन्तु कथानकों की यह विशेषता है कि बाल,
वृद्ध, नर-नारी, शिक्षित-अशिक्षित सभी की समझ में उगते हैं और उनके आधार पर
ही किसी निष्कर्ष तक पहुँच सकना
सम्भव होता है । लोकरंजन के साथ लोकमंगल का यह सर्वसुलभ लाभ है ।
कथा
साहित्य की लोकप्रियता के संबंध में कुछ कहना व्यर्थ होगा । प्राचीन काल
में १८ पुराण लिखे गए । उनसे भी काम न चला तो १८ उपपुराणों की रचना हुई ।
इन सब में कुल मिलाकर १०, ०००, ००० श्लोक हैं, जबकि चारों वेदों में मात्र
बीस हजार मंत्र हैं । इसके अतिरिक्त भी संसार भर में इतना कथा साहित्य सजा
गया है कि उन सबको तराजू के एक पलड़े पर रखा जाय और अन्य साहित्य को दूसरे
पर तो कथाऐं ही भारी पडे़गी ।