मनुष्य सामाजिक प्राणी है। उसने इतना अधिक बौद्धिक एवं भौतिक विकास किया है, इसका कारण उसकी सामाजिकता ही है। साथ-साथ प्रेमपूर्वक रहने से आपस में सहयोग करने की भावना उत्पन्न होती है एवं मनुष्य अकेला केवल अपने बलबूते पर कुछ अधिक उन्नति नहीं कर सकता, दूसरों का सहयोग मिलने से शक्ति की आश्चर्यजनक अभिवृद्धि होती है, जिसके सहारे उन्नति के साधन बहुत ही प्रशस्त हो जाते हैं।
मैत्री से मनुष्यों का बल बढ़ता है। आगे बढ़ने का, ऊंचे उठने का, क्षेत्र विस्तृत हो जाता है। आपत्तियों और आशंकाओं का मैत्री के द्वारा आसानी से निराकरण किया जा सकता है। आंतरिक उद्वेगों का समाधान करने में संधि-मित्रता से बढ़कर और कोई दवा नहीं है। आत्मा का स्वाभाविक गुण प्रेम है, प्रेम को परमेश्वर कहा जाता है। प्रेम के बिना जीवन में सरसता नहीं आती। यह प्रेम वहीं संभव है जहां सुदृढ़ मैत्री हो।
स्वास्थ्य, धन और विद्या के समान मैत्री भी आवश्यक है। परंतु दुःख की बात है कि बहुत से मनुष्य न तो मैत्री का महत्त्व समझते हैं और न उसके जमाने, मजबूत करने एवं स्थायी रखने के नियम जानते हैं। उन्हें जीवन भर में एक भी सच्चा मित्र नहीं मिलता। यह पुस्तक इसी उद्देश्य को लेकर लिखी गई है कि लोग मैत्री के महत्त्व को समझें, उसे सुदृढ़ बनायें तथा स्थायी रखने की कला को जानें और मित्रता से प्राप्त होने वाले लाभों के द्वारा अपने को सुसंपन्न बनाएं। हमारा विश्वास है कि इस पुस्तक से जनता को लाभ होगा।
—पं0 श्रीराम शर्मा आचार्य