अतीन्द्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि

​​​पूर्वाभास—संयोग नहीं सत्य

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समय और परिस्थिति विशेष के अनुसार घटने वाली घटनाओं तथा पूर्वानुमानों को कई लोग संयोग मात्र कह कर उन्हें बहुत हल्केपन से लेते हैं। लेकिन पूर्वाभास की घटनायें, जिनका उल्लेख इस पुस्तक में किया गया है तथ्यों पर आधारित है। इस तरह की घटनाओं को वस्तुतः पूर्व दैवी चेतावनी के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए।

हमारे बाह्य जगत की अपेक्षा, अन्तर्जगत की शक्ति और सक्रियता अदृश्य होकर भी कहीं अधिक प्रखर और प्रभावपूर्ण होती है। मस्तिष्क में क्या विचार चल रहे होते हैं यह दिखाई नहीं देता पर क्रिया-व्यापार की समस्त भूमिका मनोजगत में ही बनती है। किसी व्यक्ति को किसी के मन की बात का पता चल जाये तो प्रकारान्तर से वह भी लाभ ले सकता है। पूर्वाभासों को इसी रूप में लिया जा सके तो अनिष्टकारी परिस्थितियों से बचना और लाभदायक सम्भावनाओं की तैयारी करना किसी के लिए भी सम्भव हो सकता है।

अन्तर्जगत विशाल और विराट् है उससे एक व्यक्ति ही नहीं बड़े समुदाय भी प्रेरित होते हैं। पूर्वाभास की ऐसी ही एक घटना यों है—अमेरफान वेल्स का एक छोटा कस्बा है। वर्षाकाल की बात है समूचे कस्बे में एक अजीब खलबली मची। अधिकांश लोगों को या तो रात्रि के स्वप्नों में या दिन में यों अनायास ही पूर्वाभास होता है कि उनकी मृत्यु शीघ्र ही हो जायेगी। अमेरफान वासियों की इस बेचैनी ने इस तरह सार्वजनिक चर्चा का रूप ग्रहण किया कि जर्मनी के सुप्रसिद्ध मानस शास्त्री जान मारकर को घटना के अध्ययन के लिए बाध्य होना पड़ा। सर्वेक्षण के मध्य उन्होंने पाया कि कस्बे के अधिकांश व्यक्तियों को इस तरह का पूर्वाभास हो रहा है। यहीं नहीं लोगों के चेहरे पर भय की रेखायें स्पष्ट झलकती थीं।

मुश्किल से एक पखवाड़ा बीता था कि सचमुच समीप के पहाड़ से एक दिन ज्वालामुखी फटा—कोयले की राख का भयंकर तूफान उमड़ा और उसने देखते-देखते हजारों व्यक्तियों को मौत की नींद सुला दिया। एक स्कूल की दीवार में हुए भयंकर विस्फोट से तो 100 बच्चे एक ही स्थान पर मृत्यु के घाट उतर गये।

इस विद्यालय की एक नौ वर्षीय बालिका तब तो बच गई थी किन्तु घटना के 10 दिन बाद वह एकाएक अपनी मां से बोली मां—मैं मृत्यु से बिलकुल नहीं डरती। क्योंकि मेरे साथ भगवान रहते हैं। मां ने समझा—बच्ची पूर्व घटना से भयाक्रान्त है इसलिए उसने उसे हृदय से लगाकर समझाया नहीं बेटी अब तो जो होना था हो गया अब तू निश्चिन्त रह।

जानमार करने उस बालिका से भी भेंट की और पूछा बेटी तुम ऐसा क्यों सोचती हो? बालिका ने उत्तर दिया—क्योंकि मुझे अपने चारों ओर अन्धकार दिखाई देता है। इस भेंट के दूसरे ही दिन मध्याह्न बच्ची का निधन हो गया। संयोग से उसे जिस स्थान पर दफनाया वह स्थान कोयले की राख की 5-6 फुट परत से ढका हुआ था। जान मारकर ने इस अध्ययन से यह भी निष्कर्ष निकाला कि समस्त प्राणि जगत एक ही चेतना के समुद्र से सम्बद्ध है। यह सम्पर्क जितना प्रगाढ़ और निर्मल हो, जानकारियां उतनी ही अधिक और लाभ भी वैसा ही लिया जा सकता है। अतएव आध्यात्मिक साधनों द्वारा अन्तर्जगत का क्षेत्र विकसित किया जाना किसी भी भौतिक हित की अपेक्षा अधिक आवश्यक है।

पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का आधार अब विज्ञान-वेत्ताओं को विशिष्ट तत्व ग्रेविटी के रूप में हाथ लगा है। यह ग्रेविटी प्रत्येक पिण्ड से निकलता है और उसकी आकर्षण शक्ति के स्तर की संरचना करता है। इसी के आधार पर एक ग्रह दूसरे को खींचता है और यह विश्व ब्रह्माण्ड एक व्यवस्थित सम्बन्ध श्रृंखला में जकड़ा हुआ है।

ग्रह-नक्षत्रों की तरह ही मनुष्य में भी एक विशिष्ठ विद्युत का प्रवाह निःसृत होता है। वह एक दूसरे को बांधता है। इस प्रकार समस्त मनुष्य जाति का प्रत्येक सदस्य एक दूसरे के साथ अनजाने ही बंधा हुआ है और जिन धागों को यह बन्धन कार्य करना पड़ता है वही एक से दूसरे तक उसकी सत्ता का भला-बुरा प्रभाव पहुंचाता है। एक व्यक्ति दूसरे के विचारों से अनायास ही परिचित और प्रभावित होता रहता है यह आगे की बात है कि वह प्रभाव कितना भारी-हल्का था और उसे किस कदर, किसने, स्वीकार या अस्वीकार किया।

आइन्स्टीन ‘समग्र ज्ञान’ को सामान्य ज्ञान की परिधि से आगे की बात मानते थे वे कहते थे जिज्ञासा, प्रशिक्षण, चिन्तन एवं अनुभव के आधार पर जो जाना जाता है उतना ही ज्ञान नहीं है वरन् चेतना का एक विलक्षण स्तर भी है जिसे अन्तर्ज्ञान कहा जा सकता है। संसार के महान आविष्कार इस अन्तर्ज्ञान प्रज्ञा के सहारे ही मस्तिष्क पर उतरे हैं। जिन बातों का कोई आधार न था उनकी सूझ अचानक कहां से उतरी? इसका उत्तर सहज ही नहीं दिया जा सकता, क्योंकि उसका कोई संगत एवं व्यवस्थित कारण नहीं है। रहस्यमय अनुभूतियां जिस प्रज्ञा से प्रादुर्भूत होती हैं उन्हें अति मानवीय मानना पड़ेगा।

इस तरह के अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष बोध जब कसौटी पर सत्य पाये गये तब वैज्ञानिकों को भी उसके सत्य तक पहुंचने की जिज्ञासा जागृत हुई। इस समय इंग्लैण्ड, अमेरिका, जर्मनी, रूस, चैकोस्लोवाकिया, नीदरलैण्ड आदि अनेक प्रमुख देशों में ‘‘परामनो विज्ञान’’ की शाखाओं का तेजी से विकास हो रहा है जो इस तरह की घटनाओं से विस्तृत अध्ययन और विवेचन द्वारा वस्तुस्थिति तक पहुंचने का प्रयास करती हैं। अतीन्द्रिय बोध या पूर्वाभास को तीन खण्डों में विभक्त करते हुए रूसी परा मनोवैज्ञानिकों की मान्यता है कि मनुष्य के ‘‘मन’’ में कुछ ऐसे तत्व विद्यमान हैं, जिनकी जानकारी विज्ञान की तो नहीं है किन्तु यदि उनका विकास और नियन्त्रण किया जा सके तो यह एक नितान्त सामान्य वैज्ञानिक प्रक्रिया के रूप में सामने आ सकता है। उनके अनुसार यह इन्द्रियों की क्षमता विस्तार का एक अति प्रारम्भिक चमत्कार है। मनीषियों का मत भी यही है कि मन की सामर्थ्य अनन्त और अपार है उसे जितना अधिक पैना, केन्द्रित और सूक्ष्म ग्राही बनाया जायेगा वह उतना ही अधिक विलक्षण और चमत्कारी ज्ञान-विज्ञान, अनुभूति और क्षमताओं से विभूषित होता चला जायेगा।

पूर्वाभास की तीन कक्षायें हैं (1) पारेन्द्रिय ज्ञान—(टेलेपैथी) या किसी जीवित व्यक्ति द्वारा घनीभूत स्मृति, अत्यधिक भावुक होकर हृदय से किसी को पुकारना या सन्देश देना (2) अतीन्द्रिय ज्ञान (क्लैरवापेंस) जिसमें अपनी स्वतः की क्षमतायें विस्तृत होकर घटना स्थल से सायुज्य स्थापित करती और अपनी अन्तःस्थिति के अनुरूप स्थिति का बोध करती हैं। (3) पूर्व संचित ज्ञान—अर्थात् पूर्व जन्मों की स्मृति जो मस्तिष्क में साइनेप्सेस (मस्तिष्क में भूरे रंग का एक पदार्थ होता है।) उसमें कुछ तरह की विलक्षण आड़ी टेढ़ी लाइनें होती हैं। जैसे राख के ढेर में किसी कीड़े के रेंग जाने से पड़ जाती हैं। इन्हें ‘‘साइनेर्प्सस’’ कहते हैं। इनमें जब मन एक क्षण के लिए एकाकार होता है तो ग्रामोफोन या टेप-रिकॉर्डर पर सुई घूमने से उत्पन्न ध्वनि की तरह पूर्वाभास या भविष्य ज्ञान ऐसा हो सकता है। मानसिक संस्थान की रचना जितनी विलक्षण है उतनी ही अद्भुत शक्ति और क्षमताओं से वह ओत-प्रोत भी है। बिना तार के तार से भी उन्नत प्रकार से यदि इस तरह प्रकृति के अन्तराल के रहस्य कभी अनायास ही समझ में आ जाये तो इस मानसिक संस्थान को प्रौढ़ बनाकर उसे विकसित करके तो और भी महत्वपूर्ण लाभ-योगियों जैसी सिद्धियां सामर्थ्यं प्राप्त की जा सकती हैं।

पूर्वाभास से मार्गदर्शन

मौन्टे कौसिनो के विशप बेनेडिक्ट एक बार गिरजाघर की खिड़की के सहारे खड़े आकाश की ओर देख रहे थे। उन्हें लगा कि उनकी बहन श्वेत वस्त्रों में, बादलों में समाती चली जा रही है। यह दृश्य देखते-देखते उनके हृदय की गति तीव्र हो उठी। वे तीन दिन पूर्व ही बहन स्कोलास्टिका से कन्वेन्ट में मिलकर आये थे। तब वे पूर्ण स्वस्थ थी, पर न जाने कैसे उन्हें यह आभास हुआ कि उनकी बहन की मृत्यु हो गई। दिन भर विचार आते रहते हैं, पर शरीर संस्थान प्रभावित नहीं होता। इस स्थल पर हृदय का धड़कना विशिष्टता का द्योतक था। सचमुच हुआ भी वैसा ही। जिस क्षण बेनेडिक्ट को यह दिवास्वप्न आ रहा था, ठीक उसी समय उनकी बहन स्कोलास्टिक अपना इहलोक त्याग रही थी। पीछे पता चला कि मृत्यु के समय बहन ने सबसे अधिक अपने भाई बेनेडिक्ट को ही याद किया था। यह घटना इस बात की प्रमाण है कि भावनाओं की शक्ति और सामर्थ्य भौतिक शक्तियों की अपेक्षा बहुत अधिक है। यदि लोग इन्द्रियों के सुखों के छलावे में न आवें अपितु भावनाओं की सूक्ष्म सत्ता और महत्ता को समझ सकें तो भौतिक जीवन भी बहुत अधिक सफल और सरल रूप में जिया जा सकता है।

पराविज्ञान टी ड्यूक विश्व विद्यालय शाखा ने पूर्वाभास की असंख्य घटनायें संकलित की हैं। उसमें एक महिला की अनुभूति बहुत भाव भरे शब्दों में इस प्रकार अंकित है—मेरे पति स्नायुविक सन्निपात का लगभग 50 मील दूर एक कस्बे में इलाज करा रहे थे। उनका प्रतिदिन पत्र आता और उससे स्वास्थ्य की प्रगति का समाचार मिल जाता। एक दिन अनायास ही मेरे मन की बेचैनी बहुत अधिक बढ़ गई। मुझे लगा कि कोई फोन पर बुला रहा है। सम्मोहित सी मैं फोन के पास तक गई पर उन अधिकारी महोदय के भय से फोन न कर सकी जिनका वह फोन था। मैंने यह बात अपनी पुत्र को भी बताई। दूसरे दिन पति का कोई पत्र नहीं मिला। तीसरे दिन एक साथ दो पत्र मिले जिसमें मेरे पति ने अपनी बेचैनी लिखते हुए ठीक उस समय फोन करने की बात लिखी थी जिस समय मैं फोन करने के लिए अत्यधिक और अनायास भाव विह्वल हो गई थी। दूसरे पत्र में उन्होंने फोन न करने पर दुःख व्यक्त किया था। पत्र समय पर नहीं आया पर अन्तःप्रेरणा किस तरह मन को झकझोर गई यह रहस्य समझ में नहीं आया।

जीवित आत्मायें ही नहीं, हमारा अन्तरात्मा पवित्र और उत्कृष्ट हो, अन्तःकरण की आस्था बलवान हो और उसकी पुकार को हम सम्पूर्ण श्रद्धा से सुनने को तैयार हो तो अन्तर्जगत में निवास करने वाली परमार्थ परायण, पितर और देव आत्माओं द्वारा भी आभास अनुभूतियां अर्जित की जा सकती हैं। अमेरिका के इंजन ड्राइवर होरेस एल. सीवर ने तो अपनी इस पूर्वाभास की विलक्षण क्षमता के कारण ‘‘किंग आफ दि रोड’’ की सम्मानास्पद उपाधि पाई थी और उसकी गणना सर्वश्रेष्ठ रेल चालकों में की जाती थी होरेस के जीवन की दो घटनायें इतनी विलक्षण थीं जिनने सैकड़ों अमेरिकियों को अतीन्द्रिय सत्ता पर विश्वास करने के लिए बाध्य किया। होरेस धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। आत्मा के अस्तित्व पर उन्हें आस्था थी। भूत-प्रेतों पर वे पूरी तरह विश्वास करते थे। यहीं नहीं उसकी यह मान्यता भी थी कि घटनाओं से आगाह कराने का पूर्वाभास भी उन्हें कोई अपने साथ रहने वाली अतीन्द्रिय सत्ता ही कराती है।

उन दिनों होरेस ‘‘बिगफोर’’ ट्रेन के ड्राइवर थे, जो अमेरिका के कैन्काकी शहर से चलकर इलिनास होती हुई शिकागो पहुंचती है। एक दिन उन्हें एक मिलिट्री रेजीमेंट शिकागो पहुंचाने का कार्य सौंपा गया। गाड़ी 60 मील प्रति घण्टा की गति से चल रही थी। एकाएक उन्हें लगा कि इंजन कक्ष में किसी की आवाज गूंजी—सावधान! खतरा है। आगे पुल जला हुआ है। जबर्दस्त विश्वास के साथ होरेस उठ खड़े हुए और पूरी शक्ति से गाड़ी रोकने का उपक्रम किया। गाड़ी बीच में ही रुक जाने से परेशान कमाण्डर नीचे आये और गाड़ी रोकने का कारण पूछा तो होरेस ने अपने पूर्वाभास की बात बताई। कमांडर बहुत बिगड़ा और गाड़ी स्टार्ट करने का आदेश दिया किन्तु होरेस ने स्थिति स्पष्ट हुए बिना गाड़ी चलाने से स्पष्ट इनकार कर दिया। पता लगाया गया तो बात सच निकली कमाण्डर ने न केवल क्षमा याचना की अपितु हजारों सैनिकों की जीवन रक्षा के लिए होरेस को हार्दिक धन्यवाद दिया। किन्तु होरेस कृतज्ञता पूर्वक यही कहते रहे यह तो उन अज्ञात आत्मा की कृपा है जो मुझे ऐसा अनुभव कराते रहते हैं

एक बार तो शिकागो से लौटते समय बड़ी ही विलक्षण घटना घटी। तब एकाएक उन्हें किसी ने कहा सामने इसी पटरी पर दूसरी गाड़ी आ रही है, गाड़ी तुरन्त पीछे लौटाओ। बड़ी कठिन परीक्षा थी, किन्तु अदम्य विश्वास के सहारे पूरी शक्ति और सावधानी से गाड़ी रोक दी और उसकी रफ्तार पीछे को करदी। गाड़ी में बैठे यात्री चालक की सनक पर झुंझला ही रहे थे कि सामने से धड़धड़ाता हुआ इंजन इस गाड़ी पर चढ़ बैठा। एक ही दिशा होने और सम्हल जाने के फलस्वरूप किसी भी यात्री को चोट नहीं आई मात्र इंजन को मामूली क्षति पहुंची। पीछे सारी बात ज्ञात होने पर यात्री होरेस के प्रति कृतज्ञता से आविर्भूत हो उठे, साथ ही इस विलक्षण पूर्वाभास पर वे आश्चर्य चकित हुए बिना भी न रह सके।

सन्त सुकरात को भी इसी तरह पूर्वाभास होता था पूछने पर वे कहते थे—कोई ‘डेमन’ उनके कान में सब कुछ बता जाता है। होरेस की स्थिति भी ठीक वैसी ही है।

ऐसी कितनी ही घटनाएं देखने में आती हैं जिनमें लोगों में अनायास ही अद्भुत शक्तियां विकसित होती देखी गई हैं, जबकि उन्होंने कुछ भी साधना नहीं की है। यह उनके पूर्व जन्मों के प्रयासों का प्रतिफल है। ऐसे कितने ही अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न विवरण उपलब्ध हैं जिनमें इस जन्म की कोई विशेष साधनाएं न होते हुए भी उनके अन्दर आश्चर्यजनक विशेषताएं पाई गईं।

हालेण्ड की यूट्रेक्ट यूनीवर्सिटी के पैरासाइकोलोजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. विलियम तेनहाफ ने कितने ही अतीन्द्रिय शक्ति का दावा करने वाले लोगों की जांच करने की दृष्टि से उनके साथ भेंट की है। उनके शोध संग्रह में कितने ही प्रमाणों में सबसे अधिक प्रत्यक्ष उदाहरण यूट्रेक्ट नगर के एक सरल सौम्य नागरिक जेरार्ड क्रोयसेत का है। यह 56 वर्षीय व्यक्ति अपने बेटे, पोतों के साथ साधारण आजीविका उपार्जन के घरेलू धन्धों में लगा रहता है। दिव्य दर्शन उसका न तो व्यवसाय है और न वह इस क्षेत्र में अपनी कोई शोहरत चाहता है फिर भी उसमें जो जन्मजात उपलब्धि है वह लोगों को अचम्भे में डाल देती है और कौतूहलों की दृष्ट से कितने ही लोग उसके छोटे से घर पर जा पहुंचते हैं और तरह-तरह की पूछ-ताछ करते हैं।

क्रोयसेत की असाधारण क्षमता की ओर इस सन्दर्भ में दिलचस्पी रखने वाले कितने ही शोध कर्त्ता उसके पास पहुंचे हैं। उसने सहज स्वभाव से सबका स्वागत किया है और उस जांच-पड़ताल में पूरा-पूरा सहयोग दिया है। न केवल हालेण्ड के वरन् आस्ट्रिया, फ्रान्स, जर्मनी, इटली, स्विट्जरलैंड आदि के अतीन्द्रिय विज्ञान के सम्बन्ध में जांच-पड़ताल करने वाले लोग उसके पास पहुंचे हैं। विलियम तेनहाफ ने तो उसके सम्बन्ध में क्रमबद्ध खोज की है और उसे सर्वसाधारण की जानकारी के लिए प्रकाशित भी किया है। उस खोज में कुछ घटनाओं को विशेष महत्व दिया गया है। 6 जनवरी सन् 1957 की बात है यूट्रेक्ट यूनीवर्सिटी में 25 दिन बाद एक लेक्चर होना था। उसके लिए आगन्तुकों की सीटें तो जमा दी गई थी पर यह मालूम न था कि कौन दर्शक आवेगा और किस स्थान पर बैठेगा। प्रो. तेनहाफ ने क्रोयसेत को वह लेक्चर हाल दिखाया और अन्य प्रोफेसरों की उपस्थिति में यह पूछा कि क्या आप बता सकते हैं कि नौ नवम्बर की सीट पर 31 जनवरी की मीटिंग में कौन दर्शक बैठेगा? यह उसके भविष्य ज्ञान सम्बन्धी जानकारी की जांच के संबन्ध में पूछा गया था।

क्रोयसेत कुछ देर ध्यान मग्न रहे और फिर बताना शुरू किया के दिहेग नगर की रहने वाली एक अधेड़ महिला वहां बैठेगी। उसके हाथ की एक उंगली अभी-अभी डिब्बी खोलते समय कट गई है वह उस पर पट्टी बांध रही है। यह महिला एक पशु पालक परिवार में जन्मी है जब वह छोटी थी तब उसके घर में आग लग गई थी और एक कोठे में बंधे कुछ जानवर जल गये थे........आदि। वह सारा विवरण नोट कर लिया गया। वह बात गुप्त रखी गई। नियत तारीख को सचमुच ही उसी विवरण के अनुरूप एक दर्शक महिला वहां आ बैठी और उससे पीछे पूछ-ताछ की गई तो उसके सम्बन्ध में बताई गई बातें सभी सच निकलीं।

क्रोयसेत ने अपराधियों का और चोरियों का पता लगाने में पुलिस की अच्छी मदद की है। एक बार एक बहुमूल्य हीरों का हार चोरी होने की सूचना पुलिस में दर्ज हुई, क्रोयसेत से पूछा तो बताया वह हार चोरी नहीं गया। नाली में गिर पड़ा है और बहते-बहते अमुक स्थान पर जा पहुंचा है। लोग दौड़े और बताये हुए ठीक स्थान पर हार प्राप्त कर लिया गया।

नार्वे की मोयराना बस्ती में जा बसे एक डच नागरिक ने टेलीफोन से पूछा उसकी 15 वर्षीय लड़की जोर्ग हाडजेन अचानक लापता हो गई है क्या आप उसका कुछ पता बता सकते हैं। क्रोयसेत ने टेलीफोन पर ही उत्तर दिया कि वह झरने में डूबी पड़ी है। लाश को अमुक स्थान पर जाकर निकाल लिया जाय वह आधी डूबी पड़ी है और आधा भाग ऊपर चमक रहा है। ढूंढ़ने पर ठीक उसी स्थान पर लाश प्राप्त करली गई।

लन्दन के कुख्यात अपराधी जिंजर मार्क को क्रोयसेत की सहायता से पुलिस ने पकड़ा था। ऐसी-ऐसी अनेकों घटनाएं हैं जिनमें उसकी अतीन्द्रिय शक्ति की यथार्थता का समर्थन किया गया है। उस व्यक्ति को यह क्षमता जन्म जात रूप से प्राप्त है इसके लिए उसने कोई विशेष साधना आदि नहीं की है। वह भोला व्यक्ति अतीन्द्रिय शक्ति के सिद्धान्तों के बारे में भी अधिक कुछ बता नहीं सकता। केवल जो कुछ वह है उसे प्रकट करने में बिना संकोच अपने को प्रस्तुत करता रहता है।

अतीन्द्रिय विज्ञान, एक्स्ट्रा सेन्सरी पर सेप्शन, द्वितीय दिव्य दृष्टि, सेकेण्ड साइट, छटी इन्द्रियानुभूति, सिक्सथ सेन्स के नाम से अति मानवी चेतना की चर्चा होती रहती है। ऐसे कितने ही मनुष्य देखे जाते हैं जिनमें इस प्रकार की विलक्षण क्षमताएं पाई जाती हैं। उनमें अतीत ज्ञान भविष्य दर्शन, मनःपाठन, दूरदर्शन आदि कितनी ही विशेषताएं ऐसी हैं जो हर किसी में तो नहीं होतीं पर किन्हीं विशिष्ठ व्यक्तियों में पाई जाती हैं।
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