पिछले पृष्ठों में हम बता चुके हैं कि आसनों का प्रधान उद्देश्य शारीरिक व्यायाम है। साथ साथ कुछ योग चक्रों का जो जागरण हो जाता है वह अतिरिक्त लाभ है। अन्य असंख्य प्रकार के व्यायाम, खेल आजकल प्रचलित हैं। इनमें भी उपरोक्त दोनों लाभ न्यूनाधिक मात्रा में प्राप्त होते ही हैं। जिन्हें आसनों में रुचि न हो वरन् अन्य प्रकार के व्यायामों में दिलचस्पी हो वे उस मार्ग से भी शरीर को सुदृढ़ बनाने के मूल उद्देश्य की पूर्ति कर सकते हैं। नीचे कुछ ऐसे नियमों का उल्लेख किया जाता है जो आसन या अन्य प्रकार के व्यायाम करने वालों के लिए समान रूप से उपयोगी हैं।
(1) दिवाली से लेकर होली तक के साढ़े चार महीने कड़े व्यायामों के लिए बहुत उपयुक्त हैं। इन दिनों खूब कसरत करनी चाहिए। गरमी और वर्षा के दिनों में हलका व्यायाम करना चाहिए। इन ऋतुओं में जाड़े की अपेक्षा आधा व्यायाम ही पर्याप्त है।
(2) व्यायाम के लिए सवेरे का समय सबसे अच्छा है। सूर्योदय तक व्यायाम से निश्चिन्त हो जाना चाहिए, अधिक से अधिक एक घंटा दिन निकले तक समय लगाना चाहिए। साधारणतः एक वक्त ही व्यायाम करना काफी है। यदि शाम को भी करना हो तो वह बहुत ही हलका और थोड़ा होना चाहिए।
(3) बालकों के लिए खेल कूद, दौड़ आदि सरल, तरुणों को दंड बैठक, सूर्य नमस्कार, डम्बल, मुद्गर आदि कठिन और वृद्धों को टहलना आसन आदि हलके व्यायाम करने चाहिए।
(4) भोजन के उपरान्त व्यायाम करना निषिद्ध है। जब पेट पच गया हो तभी कसरत करनी चाहिए।
(5) जब बीमार या कमजोर हों तो भूलकर भी कड़ी कसरत न करें। असक्त शरीर से भारी मेहनत लेने पर शक्ति क्षय होने के कारण भारी हानि हो सकती है।
(6) कसरत धीरे-धीरे, प्रसन्न चित्त होकर, दिलचस्पी के साथ उतनी ही करनी चाहिए जितनी सामर्थ्य हो। एक कसरत को बदलकर जब दूसरी करनी हो तो बीच में थोड़ा विश्राम कर लेना चाहिए। जब थकान आने लगे, तो कसरत बन्द कर देनी चाहिए।
(7) स्नान और व्यायाम में कम से कम आधे घंटे का अंतर रहना चाहिए। व्यायाम के बाद स्नान करना अच्छा है, पर जिन्हें आदत हो वे स्नान के बाद भी व्यायाम कर सकते हैं।
(8) व्यायाम से पहले हलके हाथ से तेल की मालिश भी करनी चाहिए। बहुत जोर से घिस्से लगाने की जरूरत नहीं है। तेल चमड़ी में सूखता जाय ऐसी मध्यम गति से मालिश करना ठीक है।
(9) व्यायाम के समय श्वांस नाक से लेनी चाहिए और मुंह बन्द रखना चाहिए।
(10) व्यायाम की हर क्रिया के साथ इच्छा शक्ति का संयोग करना चाहिए। ऐसी मनोभावना करते जाना चाहिए कि कसरत से मेरे अंग प्रत्यंग पुष्ट हो रहे हैं। दर्पण के सामने खड़े होकर अपने अंग प्रत्यंगों को प्रसन्नता पूर्वक निहारना चाहिए और विश्वास पूर्वक ऐसी मान्यता को मन में मजबूत स्थान देते जाना चाहिए कि शरीर के अंग प्रत्यंगों में जीवनी शक्ति पर्याप्त मात्रा में बढ़ रही है। इस प्रकार की भावना से आश्चर्यजनक और आशातीत लाभ होता है।
एक बात ध्यान रखने की है कि कसरत करने के उपरांत पाचन शक्ति बढ़ जाती है। व्यायाम की गरमी के कारण जठराग्नि तीव्र हो जाती है जिससे भारी चीजें भी पच जाती हैं। इस अवसर से लाभ उठाने के लिए, कसरत के बाद स्नान से निवृत्त होकर दूध, बादाम, मक्खन या भीगी हुई चने की दाल आदि बल वर्द्धक पौष्टिक वस्तुएं कलेवा की तरह थोड़ी मात्रा में खानी चाहिए। इस प्रकार के बलवर्द्धक पदार्थ आसानी से हजम होकर शरीर का पोषण करते हैं।