(डा. शोजाबुरा ओटेव)
जब मैं पांच वर्ष का था तभी से मुझे बीमारियों ने घेर लिया था, आरंभ में मेरी बाईं जांघ में अस्थि शोथ हुआ, अस्पताल में चीर फाड़ हुई जिसमें बेकाम हड्डी के तीन टुकड़े निकाले गये। इसके बाद बहुत ही दुर्बल पीला और रक्तहीन हो गया, डाक्टरों ने मेरी कम चौड़ी और सुकड़ी हुई छाती को देखकर संदेह प्रकट किया कि कहीं तपैदिक का शिकार न हो जाऊं। वैसे में इतना दुर्बल और रुग्ण आकृति का हो गया था कि हर कोई मुझे तपैदिक का रोगी समझता था।
अनेक उपचारों के बाद भी जब किसी प्रकार मेरे स्वास्थ्य में कोई उन्नति न हुई तो निराश होकर मैं अपनी मृत्यु की घड़ियां गिनने लगा, इन्हीं दिनों मैंने एक व्याख्यान में सुना कि प्राणायाम द्वारा अधिक आक्सिजन प्राप्त करके फेफड़ों को मजबूत और स्वास्थ्य को उन्नत बनाया जा सकता है। उसी दिन से मैंने प्राणायाम करना आरंभ कर दिया। सोते जागते सदा मुझे प्राणायाम की ही धुन लगी रहती। इससे मेरे शरीर की खूब उन्नति हुई, एक वर्ष के भीतर ही छाती का घेरा 4 इंच अधिक चढ़ गया और ऊंचाई भी करीब करीब चार इंच ही बढ़ी, इसी से अन्दाज लगाया जा सकता है कि मेरा स्वास्थ्य किस तेजी से आगे बढ़ा। डाक्टरों से जांच कराई तो उन्होंने बताया कि अब फेफड़े इतने मजबूत हो गये हैं कि तपैदिक होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। 2 अगस्त सन् 1905 से लेकर 18 जुलाई सन् 1907 तक के दो वर्षों के भीतर मेरा वजन करीब 22 पौण्ड बढ़ गया। तब से मैं नित्य प्राणायाम करता हूं और सदा स्वस्थ रहता हूं।
मैं प्राणायाम का कट्टर भक्त हूं। मेरा विश्वास है कि उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए प्राणायाम एक संजीवनी विद्या है।