मोटेतौर से आँखों का पथरा जाना, शरीर का ठण्डा पड़ जाना, नब्ज़ बन्द हो जाना, साँस रुक जाना, किसी को मृतक घोषित करने के लिए पर्याप्त माना जाता रहा है। यह सारे चिन्ह हृदय की गति बन्द हो जाने के है। अस्तु मृत्यु और हृदय की निष्क्रियता को पर्यायवाची समझा जाता था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के तत्वावधान में शरीर विशेषज्ञों की एक गोष्ठी हुई जिसमें मृत्यु की व्याख्या करने को कहा गया। लम्बे विचार-विमर्श के बाद हृदय के साथ जुड़े हुए मृत्यु सम्बन्ध को निरस्त करके उसे मस्तिष्क के साथ जोड़ा गया और कहा गया कि- मस्तिष्क का पूरी तरह निष्क्रिय हो जाना, उसका शेष शरीर से सम्बन्ध अट जाना, माँस-पेशियों का निश्चेष्ट हो जाना, रक्त का दाब शून्य हो जाना और श्वाँस लेने में असमर्थ हो जाना मृत्यु का चिन्ह है।”
इस परिमाण में मानवी सत्ता का केन्द्र मस्तिष्क को घोषित किया है। हृदय की धड़कन बन्द हो जाने पर भी यदि मस्तिष्क सक्रिय हो तो उसे मृत्यु नहीं जीवित ही माना जायेगा।