प्रज्ञा पुराण भाग-3

भारतीय इतिहास-पुराणों में ऐसे अगणित उपाख्यान हैं, जिनमें मनुष्य के सम्मुख आने वाली अगणित समस्याओं के समाधान विद्यमान हैं । उन्हीं में से सामयिक परिस्थिति एवं आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए कुछ का ऐसा चयन किया गया है, जो युग समस्याओं के समाधान में आज की स्थिति के अनुरूप योगदान दे सकें।

सर्वविदित है कि दार्शनिक और विवेचनात्मक प्रवचन-प्रतिपादन उन्हीं के गले उतरते हैं, जिनकी सुविकसित मनोभूमि है, परन्तु कथानकों की यह विशेषता है कि बाल, वृद्ध, नर-नारी, शिक्षित-अशिक्षित सभी की समझ में आते हैं और उनके आधार पर ही किसी निष्कर्ष तक पहुँच सकना सम्भव होता है ।
लोकरंजन के साथ लोकमंगल का यह सर्वसुलभ लाभ है ।
कथा साहित्य की लोकप्रियता के संबंध में कुछ कहना व्यर्थ हणो । प्राचीन काल में १८ पुराण लिखे गए । उनसे भी काम न चला तो १८ उपपुराणों की रचना हुई । इन सब में कुल मिलाकर १०, ०००, ००० श्लोक हैं, जबकि चारों वेदों में मात्र बीस हजार मंत्र है । इसके अतिरिक्त भी संसार भर में इतना कथा-साहित्य सृजा गया है कि उन सबको तराजू के एक पलड़े पर रखा जाय और अन्य साहित्य को
दूसरे पर तो कथाऐं ही भारी पडेंगी । फिल्मों की लोकप्रियता का कारण भी उनके कथानक ही हैं ।

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