प्रज्ञा पुराण भाग 3
प्रज्ञा पुराण के इस तीसरे खंड में एक ऐसे प्रसंग को लिया गया है, जो हमारे दैनंदिन जीवन का अंग है, जिसकी उपेक्षा के कारण आज चारों ओर कलह- विग्रह खड़े दृष्टिगोचर होते हैं ।। गृहस्थ जीवन, सह जीवन, पारिवारिकता की धुरी पर ही इस विश्व परिवार का समग्र ढाँचा विनिर्मित है ।। मनुष्य जीवन की यह अवधि ऐसी है, जिस पर यदि सर्वाधिक ध्यान दिया जा सके, तो मानव में देवत्व एवं धरती पर स्वर्ग के अवतरण के द्विविध उद्देश्य भली- भांति पूरे होते रह सकते हैं ।। सतयुग के मूल में यही "वसुधैव कुटुम्बकम्" का दर्शन समाहित नजर आता है ।।
परिवार संस्था के विभिन्न पक्षों यथा दांपत्य जीवन, गृहस्थ दायित्व, नारी, शिशु, वृद्धजन, सुसंस्कारिता संवर्द्धन एवं अंत में विश्व परिवार को इस खंड में कथा- उपाख्यानों एवं दृष्टान्तों के माध्यम से सुग्राह्य ढंग से प्रतिपादित करने का प्रयास किया गया है ।। सभी परिवारों में पढ़ी- पढ़ाई जाने वाली गीता- उपनिषद् सार के रूप में इसे समझा जा सकता है ।।
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