कठिनाइयों की कसौटी पर खरे उतरे


सृष्टि-संचालन के सार्वभौम नियमों के अनुसार जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन होते रहना एक स्वाभाविक बात है । दिन के बाद रात और रात के बाद दिन होता है । वर्षा के बाद शरद और इसके पश्चात ग्रीष्म ऋतु का आगमन भी निश्चय ही होता है । सूर्य, चंद्र एवं अन्य ग्रह भी एक नियमबद्ध गति में चलते हैं । इसी तरह मानव जीवन भी इन सार्वभौम नियमों के अंतर्गत सदैव एकसा नहीं रहता । मनुष्य की इच्छा हो या न हो, जीवन में भी परिवर्तनशील परिस्थितियाँ आती रहती हैं । आज उतार है तो कल चढ़ाव । चढ़े हुए गिरते हैं और गिरे हुए उठते हैं । आज उँगली के इशारे पर चलने वाले अनेक अनुयायी हैं तो कल सुख-दुःख की पूछने वाला एक भी नहीं रहता । रंक कहाने वाला एक दिन धनपति बन जाता है तो धनवान निर्धन बन जाता है । जीवन में इस तरह की परिवर्तनशील परिस्थितियाँ आते-जाते रहना नियतिचक्र का सहज स्वाभाविक नियम है । इनसे बचा नहीं जा सकता, इन्हें टाला नहीं जा सकता ।


Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118