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अन्तर्जगत् की...
अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -4
संस्कारों के अनुरूप घटता है कर्मफल भोग
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Page Titles
अंतर्ज्ञान
अनुक्रमणिका
पांच प्रकार की होती हैं सिद्धियां
चित में परिवर्तन से बदलते हैं घटनाक्रम
प्रकृति स्वयं पूरा करती है अपना लक्ष्य
निर्मल चित्त से संभव है अनेक देह
अनेक चित का निर्माण व नियंत्रण कर सकता है- योगी
ध्यान से होती है संपूर्ण चित्त शुद्धि
कर्मों की गति से पार है योगी
गहरे हैं कर्म के रहस्य
संस्कारों के अनुरूप घटता है कर्मफल भोग
अनादि है वासनाएं
जाने वासना के कारण को
वासना कभी नष्ट नहीं होती
पल-पल रूप बदलती है वासनाएं
वासना से उत्पन्न होती है अनंत अनुभूतियां
चित्त परिवर्तन से बदलती है अनुभूतियां
प्रकृति से भिन्न है चित का अस्तित्व
चित में समाहित मनोविज्ञान
चित का स्वामी है ज्ञाता पुरुष
स्वप्रकाशित नहीं है चित्
एक समय में एक ही ज्ञान प्रकट होता है चित में
संभव है चित से चित का ज्ञान
चित नहीं चेतन पुरुष है हमारा स्वरूप
जीवन के सब अर्थ समाए हैं चित में
असंख्य वासनाओं का घर है चित
आत्मभावना द्वार है अध्यात्म का
विवेक ज्ञान के उदेश्य से प्राप्त होता है कैवल्य
निर्लिप्त होता है योगी का जीवन
विवेक ज्ञान से संभव है संस्कारों का विनाश
विवेक वैराग्य का शिखर है- धर्ममेघ समाधि
क्लेश- कर्म से रहित होता है- जीवनमुक्त योगी
आवरण के हटते ही होता है असीम ज्ञान
कृतार्थ हो जाता है योगी का जीवन
कैवल्य में थम जाता है नए जीवन का क्रम
स्वयं के स्वरूप में प्रतिष्ठित हो जाना है- कैवल्य
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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