अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान-1

अपनी बात आपसे

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परम पूज्य गुरुदेव एवं महर्षि पतंजलि में अद्भुत साम्य है। अध्यात्म जगत् में इन दोनों की उपस्थिति अत्यन्त विरल है। ये दोनों ही अध्यात्म के शिखर पुरुष हैं, परन्तु वैज्ञानिक हैं। वे प्रबुद्ध हैं—बुद्ध, कृष्ण, महावीर एवं नानक की भाँति, लेकिन इन सबसे पूरी तरह से अलग एवं मौलिक हैं। बुद्ध, कृष्ण, महावीर एवं नानक- ये सभी महान् धर्म प्रवर्तक हैं, इन्होंने मानव मन और इसकी संरचना को बिल्कुल बदल दिया है, लेकिन उनकी पहुँच, उनका तरीका वैसा सूक्ष्मतम स्तर पर प्रमाणितनहीं है। जैसा कि पतंजलि का है।

जबकि महर्षि पतंजलि एवं वेदमूर्ति गुरुदेव अध्यात्मवेत्ताओं की दुनिया के आइंस्टीन हैं। वे अद्भुत घटना हैं। वे बड़ी सरलता से आइंस्टीन, बोर, मैक्स प्लैंक या हाइज़ेनबर्ग की श्रेणी में खड़े हो सकते हैं। उनकी अभिवृत्ति और दृष्टि ठीक वही है, जो एकदम विशुद्ध वैज्ञानिक मन की होती है। कृष्ण कवि हैं, कवित्व पतंजलि एवं गुरुदेव में भी है। किन्तु इनका कवित्व कृष्ण की भाँति बरबस उमड़ता व बिखरता नहीं, बल्कि वैज्ञानिक प्रयोगों में लीन हो जाता है। पतंजलि एवं गुरुदेव वैसे रहस्यवादी भी नहीं हैं, जैसे कि कबीर हैं। ये दोनों ही बुनियादी तौर पर वैज्ञानिक हैं, जो नियमों की भाषा में सोचते- विचारते हैं। अपने निष्कर्षों को रहस्यमय संकेतों के स्वर में नहीं, वैज्ञानिक सूत्रों के रूप में प्रकट करते हैं।

अद्भुत है इन दोनों महापुरुषों का विज्ञान। ये दोनों गहन वैज्ञानिक प्रयोग करते हैं, परन्तु उनकी प्रयोगशाला पदार्थ जगत् में नहीं, अपितु चेतना जगत् में है। वे अन्तर्जगत् के वैज्ञानिक हैं और इस ढंग से वे बहुत ही विरल एवं विलक्षण हैं। क्योंकि जो लोग अन्तर्चेतना में प्रवेश करते हैं, वे प्रायः कवि हो जाते हैं और जो बाह्य जगत् में प्रवेश करते हैं, वे अक्सर हमेशा वैज्ञानिक होते हैं। परन्तु यहाँ यह नियम उलट- पुलट गया है। ये दोनों इस प्रकृति सत्य से परे और पार चले गए हैं।

         इस तरह से तपोमूर्ति गुरुदेव एवं महर्षि पतंजलि विधाता के, विश्व उद्यान के अति दुर्लभ पुष्प हैं। उनके पास वैज्ञानिक मस्तिष्क है, लेकिन उनकी यात्रा भीतरी है। उन्होंने अनेकों प्रयोग किए हैं, परन्तु उनके सारे प्रयोग पदार्थ जगत् में नहीं चेतना जगत् में किए गए हैं। उन्होंने मनुष्य के अंतस् जगत् के निरपेक्ष नियमों का निगमन करके सत्य और मानवीय मन की चरम कार्य प्रणाली के विस्तार का अन्वेषण और प्रतिपादन किया है। इनका अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि वे गणित के फार्मूले जैसी सटीक बात कहते हैं। यदि उनकी बात मानी जाए, जैसे वे कहते हैं, वैसा किया जाए, तो परिणाम निकलेगा ही। उनकी बातों में वैसा ही सुनिश्चय है- जैसा कि दो और दो का चार होना सुनिश्चित है।

        इसके लिए किसी आस्था की कोई जरूरत नहीं है। बस करो और जानो। प्रयोगों में डूबो और पाओ। यहाँ सब कुछ असंदिग्ध है, सुस्पष्ट है। किसी भी तरह के भ्रम एवं सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं है। यह कुछ ऐसा है, जिसे करके ही जाना जा सकता है। इसलिए यह बार- बार कहा जा सकता है कि महर्षि पतंजलि एवं परम पूज्य गुरुदेव अद्भुत हैं। महर्षि पतंजलि ने अपने सैकड़ों- सैकड़ों प्रयोग करके उनके निष्कर्षों को सूत्रबद्ध किया। इन सूत्रों के सहारे जब भी कोई चाहे प्रयोग को दुहरा सकता है और उन्हीं निष्कर्षों को पुनः पा सकता है। इसी तरह परम पूज्य गुरुदेव ने चेतना जगत् में असंख्य प्रयोग किए और अपने निष्कर्षों को प्रकाशित- प्रतिपादित किया। वे यहीं तक रुके नहीं, बल्कि इससे एक कदम और आगे जाकर ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान का निर्माण किया। अध्यात्म के वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए एक अद्भुत प्रयोगशाला बनायी। मानव चेतना के वैज्ञानिक अनुसन्धान के लिए क्रियाविधि निर्देशित की।        

इस दृष्टि से ये दोनों ही बेजोड़ हैं। उन जैसा होने की सम्भावना भी नहीं है। क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखना और आन्तरिक जगत् में प्रवेश करना करीब- करीब असम्भव सम्भावना है। वे अपने प्रयोगों के बारे में, प्रयोगों से प्राप्त निष्कर्ष के बारे में एक गणितज्ञ, एक तर्कशास्त्रज्ञ, एक महावैज्ञानिक की भाँति सत्यों को स्पष्ट करते हैं। लेकिन वे हैं—कबीर और हेराक्लाइट्स की भाँति रहस्यदर्शी। किसी रहस्यदर्शी का वैज्ञानिक होना अति विरल है। रहस्यदर्शी तो कवि होता है, कबीर की तरह, नानक की तरह। दरअसल परम आनन्द का, चरम ज्ञान का जो जगत् है, वह इतना सुन्दर- इतना भव्य है कि बरबस ही कविता उपजती है। उस अवस्था की सुन्दरता ऐसी है, उसका मंगल आशीष ऐसा है, उसका परम आनन्द ऐसा है कि सहज ही चेतना लयबद्ध हो जाती है। अपने आप ही छन्द बनते और काव्य प्रस्फुटित होता है।

     लेकिन महर्षि पतंजलि एवं परम पूज्य गुरुदेव अध्यात्म चेतना के इस शिखर पर पहुँच कर भी इसके सम्मोहन से बँधते नहीं। इसके सौन्दर्य के जादू को स्वयं पर हावी नहीं होने देते। हालाँकि यह बहुत कठिन है। ऐसी अवस्था में आज तक कोई भी स्वयं को रोक नहीं सका। बुद्ध, दादू, रज्जब सबके सब काव्यमय हो गए। यह अवस्था ही कुछ ऐसी ही है। जब उसकी अपार भव्यता और उसका परम सौन्दर्य अपनी अन्तर्चेतना में फूटता है, तो बरबस अपना समूचा अस्तित्त्व नाच उठता है। यह अवस्था उस प्रेमी की होती है, जो सारी सृष्टि के ही प्रेम में पड़ गया है। परन्तु पतंजलि एवं गुरुदेव दोनों ही ऐसी अवस्था पाने के बावजूद काव्य का प्रयोग नहीं करते। वे सौन्दर्य की नहीं सूत्रों की भाषा में बात करते हैं। वे ऐसा कुछ भी कहने का प्रयास नहीं करते, जिसे शब्दों में कहा न जा सके। उनमें लोक कल्याण की गहरी भावना है, मानव के प्रति अगाध प्रेम है। पर इसे वे काव्य में नहीं, क्रिया में व्यक्त करते हैं।
      वे साधना की, अनुशासन की नींव बनाते हैं। यह नींव सबके लिए है। यदि कोई उस नींव पर चल पड़े, तो उस शिखर पर निश्चित रूप से पहुँच जाएगा, जो अभी दिखता नहीं, सबसे परे है। उनके द्वारा कहा गया एक भी शब्द व्यर्थ नहीं है। अपनी अन्तर्यात्रा पर चलने के लिए उनके एक- एक शब्द को समझने की कोशिश करनी होगी। यह अति कठिन है, क्योंकि उनकी शब्दावली तर्क की, विवेचन की है। हालाँकि उनका संकेत प्रेम की ओर, मस्ती की ओर, परमात्मा की ओर है। उनकी शब्दावली उस व्यक्ति की है, जो वैज्ञानिक प्रयोगों में संलग्र है। हालाँकि उनकी प्रयोगशाला अन्तर्चेतना की है, आन्तरिक अस्तित्त्व की है।

        अतः उनके सूत्रों- निष्कर्षों में इस अनुभूति के साथ निमग्र होना होगा कि यह परम काव्य का गणित है। यह विरोधाभास तो है, पर यह सूत्रों को तनिक भी नहीं छू सका है। क्योंकि ये महावैज्ञानिक अपने कथन में बड़ी ही तर्क संगत पृष्ठभूमि बनाए रखते हैं। वे विच्छेदन करते हैं, विश्लेषण करते हैं, पर उनका मकसद संश्लेषण है। वे केवल संश्लेषण के लिए विश्लेषण करते हैं। उनकी अनुभूति में डूबने के लिए यह हमेशा ध्यान रखना होगा कि वे हमें वैज्ञानिक मार्ग से परम सत्य तक पहुँचाना चाहते हैं। वे बुद्धि से बातें करते हैं, पर उनका उद्देश्य, उनका लक्ष्य हृदय ही है। वे हमें तर्क के द्वारा तर्क के पार ले जाना चाहते हैं।

महर्षि पतंजलि एवं तपोमूर्ति गुरुदेव दोनों ही हमें धीरे- धीरे, कदम- दर बड़े ही धीरज के साथ, हमारी उँगली पकड़ कर चेतना के शिखरों की ओर ले जाते हैं। वे प्रत्येक कदम की महिमा समझाते हैं, उसकी फलश्रुति बतलाते हैं। ऐसा करने में जो बाधाएँ आएगी, उनसे सचेत करते हैं, उनके निराकरण के उपाय सुझाते हैं। वे हमें अपने अनुशासन में बाँधते हैं, पर उनका अनुशासन माँ के मातृत्व की तरह बड़ा प्यारा और मधुर है।

     इन पंक्तियों के पाठकों से एक बड़ा ही निजी सवाल है कि क्या आप इस अनुशासन को स्वीकारने के लिए तैयार हैं? यदि जवाब हाँ में है, तो ही महर्षि पतंजलि के सूत्रों- निष्कर्षों की व्याख्या परम पूज्य गुरुदेव के प्रयोगों एवं अनुभवों के परिप्रेक्ष्य में जानने का वास्तविक लाभ है। अन्तर्जगत् के दिव्य लोक में प्रवेश के इच्छुक यात्रियों से इतनी अपेक्षा तो की ही जा सकती है।

-डॉ० प्रणव पण्ड्या
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