हमारी शरीर यात्रा जिस रथ पर सवार होकर चल रही है उसके कलपुर्जे कितनी विशिष्टताएं अपने अन्दर धारण किये हुए हैं, हम कितने समर्थ और कितने सक्रिय हैं, इस पर हमने कभी विचार ही नहीं किया। बाहर की छोटी-छोटी चीजों को देखकर चकित हो जाते हैं और उनका बढ़ा-चढ़ा मूल्यांकन करते हैं, पर अपनी ओर—अपने छोटे-छोटे कलपुर्जों की महत्ता की ओर—कभी ध्यान तक नहीं देते। यदि उस ओर भी कभी दृष्टिपात किया होता तो पता चलता कि अपने छोटे से छोटे अंग अवयव कितनी जादू जैसी विशेषता और क्रियाशीलता अपने में धारण किये हुए हैं। उन्हीं के सहयोग से हम अपना सुरदुर्लभ मनुष्य जीवन जी रहे हैं। विशिष्टता मानवी काया के रोम-रोम में संव्याप्त है। आत्मिक गरिमा पर विचार करना पीछे के लिए छोड़कर मात्र काय संरचना और उसकी क्षमता पर विचार करें तो इस क्षेत्र में भी सब कुछ अद्भुत दीखता है। वनस्पति तो क्या—पिछड़े स्तर के प्राणि—शरीरों में भी विशेषताएं नहीं मिलतीं जो मनुष्य के छोटे और बड़े अवयवों में सन्निहित हैं। कलाकार ने अपनी सारी कला को इसके निर्माण में झोंका है।
शरीर रचना से लेकर मनःसंस्थान और अन्तःकरण की भाव सम्वेदनाओं तक सर्वत्र असाधारण ही असाधारण दृष्टिगोचर होता है। यह सोद्देश्य होना चाहिए। अन्यथा एक ही घटक पर कलाकार का इतना श्रम और कौशल नियोजित होने की क्या आवश्यकता थी? यह मात्र संयोग नहीं है और न इसे रचनाकार का कौतुक—कौतूहल कहा जाना चाहिए। मनुष्य की विशेष प्रयोजन के लिए बनाया गया। इस ‘विशेष’ को सम्पन्न करने के लिए उसका प्रत्येक उपकरण इस योग्य बनाया गया है कि उसके कण-कण में विशेषता देखी जा सके।
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हमारी शरीर यात्रा जिस रथ पर सवार होकर चल रही है उसके कलपुर्जे कितनी विशिष्टताएं अपने अन्दर धारण किये हुए हैं, हम कितने समर्थ और कितने सक्रिय हैं, इस पर हमने कभी विचार ही नहीं किया। बाहर की छोटी-छोटी चीजों को देखकर चकित हो जाते हैं और उनका बढ़ा-चढ़ा मूल्यांकन करते हैं, पर अपनी ओर—अपने छोटे-छोटे कलपुर्जों की महत्ता की ओर—कभी ध्यान तक नहीं देते। यदि उस ओर भी कभी दृष्टिपात किया होता तो पता चलता कि अपने छोटे से छोटे अंग अवयव कितनी जादू जैसी विशेषता और क्रियाशीलता अपने में धारण किये हुए हैं। उन्हीं के सहयोग से हम अपना सुरदुर्लभ मनुष्य जीवन जी रहे हैं। विशिष्टता मानवी काया के रोम-रोम में संव्याप्त है। आत्मिक गरिमा पर विचार करना पीछे के लिए छोड़कर मात्र काय संरचना और उसकी क्षमता पर विचार करें तो इस क्षेत्र में भी सब कुछ अद्भुत दीखता है। वनस्पति तो क्या—पिछड़े स्तर के प्राणि—शरीरों में भी विशेषताएं नहीं मिलतीं जो मनुष्य के छोटे और बड़े अवयवों में सन्निहित हैं। कलाकार ने अपनी सारी कला को इसके निर्माण में झोंका है।
शरीर रचना से लेकर मनःसंस्थान और अन्तःकरण की भाव सम्वेदनाओं तक